पिता की मृत्यु पर अनुकंपा पर बेटी को नौकरी मिल सकती है क्या?
दिसंबर, 2021 से पहले शायद कोई सीधा कानूनी रास्ता नहीं था इसके लिए। लेकिन दिसंबर में दिए गए सुप्रीम कोर्ट के एक निर्णय के बाद अब ऐसा संभव हो गया है।
वास्तव में महिला का अधिकार पिता और पति- दोनों पर होता है। लेकिन अगर दोनों जगह उसे असीमित अधिकार दे दिया जाय तो उसे दोनों से लाभ मिलेगा लेकिन उसके भाई को पिता की संपत्ति में भी हिस्सा बंट जाएगा। इसलिए विवाहित महिला का प्रथम अधिकार पति पर और उसके बाद पिता या ससुर पर कुछ सीमित स्थितियों में ही दिया जाता है।
दूसरा तथ्य यह भी है कि महिलाओं को ससुराल के परिवार की भी जिम्मेदारी उठानी पड़ती है। अगर पिता के बदले विवाहित बेटी को नौकरी दे दी जाती तो संभव था कि वह मिलने वाले पैसे अपने भाई-बहन या माँ (जो कि उसके पिता पर आश्रित थे और उनके संपत्ति के प्रथम श्रेणी के अधिकारी थे) की ठीक से देखभाल नहीं करती, बल्कि अपने बच्चों और ससुराल वालों पर खर्च करती।
इसी सामान्य सिद्धांत के आधार पर सभी राज्य सरकारों ने अपने विनियमन इस तरह बनाए थे कि अनुकंपा के आधार पर नौकरी विवाहित बेटियों को नहीं दिया जाता।
लेकिन देश के कई हाई कोर्टस में कई ऐसे केस आए जब सेवारत माता-पिता की मृत्यु होने पर कोई अन्य कोई उत्तराधिकारी नहीं होने पर भी विवाहित बेटी को अनुकंपा के आधार पर नौकरी नहीं मिल सकी थी। हाई कोर्ट ने विवाहित बेटी को केवल विवाहित होने के आधार पर नौकरी नहीं देने, जबकि वह अन्य तरह से अर्हत हो, के विरुद्ध मत दिया।
इसी तरह के एक केस में कर्नाटक हाई कोर्ट के फैसले के विरुद्ध राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील किया। दिसंबर 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक हाई कोर्ट के फैसले को सही ठहराया। इसके एक महीने बाद ही राजस्थान हाई कोर्ट के इसी तरह के फैसले को भी सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने फिर से अपने निर्णय को दुहराया।
इन दोनों निर्णयों के बाद स्थिति यह है कि अगर बेटी अन्य तरह से योग्य है तो केवल विवाहित होने के आधार पर उसे अनुकंपा के आधार पर नौकरी से वंचित नहीं किया जा सकता है। लेकिन इन दोनों केस में नौकरी का कोई अन्य दावेदार नहीं था। अगर कोई अन्य दावेदार हो, और वह बहन के पक्ष में अपने अधिकार नहीं छोड़ना चाहे या छोड़ना चाहे, वैसी स्थिति में क्या होगा, वरीयता किसे मिलेगी, आदि प्रश्न अभी भी अनुत्तरित हैं।
सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के अनुसार सरकार (केंद्र सरकार या राज्य सरकार की नौकरियों के लिए राज्य सरकार) ने अभी तक नियमों में कोई संशोधन नहीं किया है। (कर्नाटक और राजस्थान में संबंधित धाराओं को हाई कोर्ट निरस्त कर चुका है, लेकिन अन्य राज्य में ऐसे नहीं हुआ है।)
उदाहरण के लिए बिहार सरकार या उसके विभाग ने अभी संभवतः ऐसा कोई संशोधन/दिशानिर्देश/आदेश जारी नहीं किया है। लेकिन चूँकि सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का महत्त्व देश भर के लिए कानून की तरह ही होता है। इसलिए अगर कोई बेटी नौकरी के लिए आवेदन करती है, और राज्य सरकार इसे ख़ारिज कर देती है, तो सुप्रीम कोर्ट का निर्णय उसकी सहायता करेगा। जिस केस में सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला दिया है उस केस का नाम है “कर्नाटक राज्य बनाम अपूर्वाश्री।
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