आईपीसी की प्रवर्तनीयता और न्यायाधिकार-part 1.5
आईपीसी की प्रवर्तनीयता (enforceability)
आईपीसी की प्रवर्तनीयता आईपीसी का चैप्टर एक बताता है। जिस चैप्टर में 1 से 5 तक कुल पाँच धाराएँ (sections) है। ये धाराएँ इस संहिता की प्रवर्तनीयता (enforceability) या न्यायाधिकार (jurisdiction) के बारे मे बताते है। अर्थात इनसे यह पता चलता है कि यह संहिता किन विषयों, किन व्यक्तियों और किन क्षेत्रों पर लागू होता है।
दूसरे शब्दों मे इस संहिता के अंतर्गत जिन कृत्यों को अपराध माना गया है, उनके लिए किन व्यक्तियों को, और कहाँ मुकदमा चला कर दंडित किया जा सकता है, इसे ही आपराधिक न्यायालय का न्यायाधिकार कहते है।
चैप्टर एक के पांचों धाराओं को साथ पढ़ने से यह स्पष्ट होता है कि आईपीसी के न्यायाधिकार को दो श्रेणियों मे रखा जा सकता है:
1. भारत के अंदर आईपीसी की प्रवर्तनीयता
2019 से पहले सेक्शन 1 के अनुसार यह जम्मू-कश्मीर को छोड़ कर समस्त देश मे लागू होता था। लेकिन अब यह वहाँ भी लागू है।
सेक्शन 2 के अनुसार “हर व्यक्ति इस संहिता के उपबंधों के प्रतिकूल हर कार्य या लोप के लिए जिसका वह भारत के भीतर दोषी होगा, इसी संहिता के तरत दोषी होगा, अन्यथा नहीं। जबकि सेक्शन 5 कहता है “इस संहिता मे की कोई बात भारत सरकार की सेवा के ऑफिसरों, सैनिकों, नौसैनिको, या वायुसैनिकों द्वारा विद्रोह और अभित्यजन को दंडित करने वाले किसी अधिनियम के उपबंधों पर प्रभाव नहीं डालेगी”।
जैसा कि इसके नाम से ही स्पष्ट है यह भारत मे रहने वाले “हर व्यक्ति (every person)” (सेक्शन 2) पर लागू होता है, जिसमे विदेशी और कंपनी भी शामिल है। इसका अर्थ यह हुआ कि कोई विदेशी व्यक्ति अगर भारत मे कोई अपराध करता है तो यह बचाव नहीं ले सकता है कि विदेशी होने के कारण उसे भारतीय कानूनों का ज्ञान नहीं था।
दुसरे शब्दों मे वह “विधि की भूल” (mistake of mistake of law) का बचाव नहीं ले सकता है लेकिन दंड की मात्रा (quantum of punishment) पर विचार करते समय न्यायालय उसके विदेशी होने के तथ्य पर विचार कर सकता है। (नजीर मोहम्म्द बनाम पंजाब राज्य, एआईआर 1953, पंजाब 227)।
सेक्शन 2 मे प्रयुक्त “हर व्यक्ति” शब्द मे कंपनी भी शामिल है क्योंकि इसी संहिता के सेक्शन 11 के अनुसार कंपनी भी (विधिक) व्यक्ति है। पर कंपनी ऐसे अपराधों के लिए दंडनीय नहीं हो सकती जिसके लिए कारावास के दंड का प्रावधान हो क्योंकि यह प्रकृतिक रूप से संभव नहीं है। इसीलिए कंपनी द्वारा किए जाने वाले ऐसे आपराधिक कार्यों के लिए ऐसे प्रकृतिक व्यक्ति को उत्तरदायी माना जाता है जिसने वास्तव मे वह अपराध किया हो। लेकिन कंपनी क्षतिपूर्ति देने के लिए उत्तरदायी ठहराई जा सकती है।
उपर्युक्त प्रावधानों से यह स्पष्ट है कि भारत के अंदर किए जाने वाले अपराधों के लिए प्रत्येक व्यक्ति को आईपीसी के तहत दंडित किया जा सकता है जिसमे कानूनी व्यक्ति और विदेशी व्यक्ति भी शामिल है।
अपवाद:
लेकिन निम्नलिखित सात व्यक्ति इसके अपवाद है, जिनपर भारत के अंदर भी यह लागू नहीं होगा। ये है:
(1) भारत के राष्ट्रपति और राज्यों के राज्यपाल (संविधान का अनुच्छेद 361);
(2) भारत के सशस्त्र बल (आईपीसी सेक्शन 5);
(3) विदेशी सार्वभौम (अर्थात अन्य देशों के राष्ट्रपति/प्रधानमंत्री/राजा/रानी);
(4) भारत मे अन्य देशों के राजदूत;
(5) विदेशी शत्रु;
(6) विदेशी सेना; और
(7) विदेशी युद्धपोत
2. भारत से परे और भारत से बाहर आईपीसी
आईपीसी का सेक्शन 3 और 4 इसके क्षेत्रातीत प्रवर्तन के विषय मे प्रावधान करता है अर्थात यह ऐसी परिस्थितियों का को बताता है जब भारत के भौगोलिक सीमा से बाहर भी आईपीसी लागू हो सकता है।
इस संहिता के सेक्शन 1 के अनुसार यह जम्मू-कश्मीर मे लागू नहीं होगा, जबकि सेक्शन 4 “भारत के बाहर और परे” (without and beyond India) के लिए प्रावधान करता है। हमारे संविधान का अनुच्छेद 1 कहता है कि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है। अर्थात यह “भारत के बाहर और परे” (without and beyond India) नहीं है, इसलिए सेक्शन 4 जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं होगा।
ऐसी छह स्थितियाँ है, जब यह भारत की भौगोलिक सीमा से बाहर भी आईपीसी लागू होता है:
भारत का कोई नागरिक भारत से बाहर यदि कोई अपराध करता है;
- विदेशों मे भारतीय दूतावास;
- भारत मे पंजीकृत किसी जहाज या वायुयान पर उच्च समुद्र मे किसी व्यक्ति (भारतीय या विदेशी) द्वारा किया गया अपराध;
- भारतीय जहाज मे उच्च समुद्र मे किया गया अपराध;
- भारतीय क्षेत्रीय समुद्र मे विदेशी जहाज पर किया जाने वाला अपराध; और
- भारत मे कम्प्युटर को लक्षित कर किया जाने वाला अपराध।
इस तरह आईपीसी की प्रवर्तनीयता इसके चैप्टर 1 की धारा 1 से 5 तक से पता चलता है। इनसे यह पता चलता है कि यह किन विषयों, किन व्यक्तियों और किन क्षेत्रों पर लागू होगा।
जनरल क्लॉज एक्ट, 1897 की धारा 3 (38) अपराध को परिभाषित करती है “any act or omission made punishable by any law for the time being in force” अर्थात् इसमें कार्य और लोप दोनों शामिल हैं, जो न केवल आईपीसी द्वारा बल्कि अन्य विशेष या स्थानीय कानूनों द्वारा दण्डनीय हों। स्थानीय या विशेष कानूनों के तहत अपराध धारा 2 के अनुसार आईपीसी से दण्डनीय नहीं है लेकिन उस विधि के अनुसार दण्डनीय होगी और यह प्रावधान धारा 5 करता है। पर यदि विशेष प्रावधान नहीं हो तो सामान्य प्रावधान (जेनेरल प्रोविजन यानि आईपीसी) प्रभावी होंगे। [B Sarvase, In Re, AIR 1950 Mad 5991 (1905) 51 Cr L J 1518]
यह कॉमन लॉ का सिद्धान्त है कि सभी अपराध स्थानीय होते हैं जब तक संसद उन्हें क्षेत्रातीत (having effect outside the territory of the legislature) घोषित नहीं करती। इसीलिए आईपीसी की धारा 4 इसके क्षेत्रातीत अधिकार का प्रावधान करती है। सेक्शन 3 और 4 के अनुसार संहिता के क्षेत्रातीत प्रवर्तन (extra-territorial operation of the code) के लिए ये शर्ते पूरी होनी जरूरी है:
(1) ऐसा कार्य अगर भारत में किया जाता तो दंडनीय होता;
(2) ऐसी दंडनीयता किसी भारतीय विधि के तहत होती;
अर्थात अगर ये दो शर्ते पूरी हो तो व्यक्ति आईपीसी के तहत दंडिनीय होगा अगर वह कार्य भारत से बाहर इन जगहों पर किया गया हो:
(1) भारत के किसी नागरिक द्वारा भारत से बाहर और परे किसी स्थान पर कोई कृत्य किया जाय;
(2) किसी व्यक्ति द्वारा ऐसे जहाज या एयरक्राफ्ट में किया जाय जो कि भारत में रजिस्टर्ड हों;
(3) किसी व्यक्ति द्वारा भारत से बाहर एवं परे लेकिन भारत के अंदर अवस्थित कम्प्यूटर को लक्ष्य करके किया जाय। चूंकि सेक्शन 4(1) “भारत से परे” की बात करता है, इसलिए 2019 से पहले जब जम्मू-कश्मीर पर आईपीसी लागू नहीं था तब वहाँ यह सेक्शन लागू नहीं होता था क्योंकि संविधान के अनुच्छेद 1 के अनुसार जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अनंग है। [Virender Singh V General Officer Commanding, 1974, J & K L R 101 (FB)]
- अगर कोई व्यक्ति भारत से परे किसी कार्य को कारित करता है, लेकिन भारत में पकड़ा जाता है तो:
(1) उसे या तो विचरण के लिए उस देश को दे दिया जाएगा, जहां अपराध हुआ है (extradition या प्रत्यावर्तन);
(2) भारत में उस पर मुकदमा चल सकता है।
अगर कोई भारतीय नागरिक कोई अपराध आंशिक रूप से भारत के अंदर और आंशिक रूप से भारत के बाहर करता है तो उस पर भारत में विचरण होगा बशर्ते उसने इस संहिता के तहत अपराध किया हो। भले ही वह उस देश में अपराध नहीं है जहां उसने अपराध किया है। भारत में उस पर मुकदमा किसी भी जगह चल सकता है जहां वह पकड़ा जाएगा।
सैद्धान्तिक रूप से अपराध के मामले में अपराधी का आवास या मूल स्थान नहीं बल्कि अपराध का मूल स्थान देखा जाता है। इसलिए अपराधी के वहाँ के निवासी नहीं होने से कोर्ट का न्यायाधिकार खत्म नहीं होता है। इसी कारण अगर उच्च समुद्र में एक विदेशी जहाज पर एक विदेशी व्यक्ति ने दूसरे विदेशी व्यक्ति को घायल किया जिसकी मृत्यु भारत में हुई। अपराधी भारत में पकड़ा गया। तो उस पर भारत में मुकदमा चलाया जा सकता है।
भारतीय समुद्री सीमा के 12 नॉटिकल माइल के भीतर एक विदेशी जहाज पर एक विदेशी व्यक्ति दूसरे विदेशी व्यक्ति की हत्या कर देता है। भारत इस पर विचारण कर सकता है क्योंकि अन्तर्राष्ट्रीय कानून के अनुसार किसी देश का समुद्री सीमा उसकी जल रेखा (water line) से 3 नॉ मा. और समुद्री सीमा से 12 नॉटिकल माइल तक होता है।
आईपीसी भारत में रहने वाले सभी व्यक्तियों पर लागू होता है जिसमें विदेशी भी शामिल हैं। इसका आशय यह है कि अगर देश में रहने वाला कोई विदेश व्यक्ति ऐसा कोई कार्य करे इसे आईपीसी ने अपराध घोषित किया है, तो वह भी भारत में भारतीय कोर्ट द्वारा विचारण के बाद दंडित किया जा सकता है। कानून का सामान्य सिद्धान्त यह है कि “विधि की भूल” बचाव नहीं हो सकता है। अर्थात कोई व्यक्ति, जिसमें विदेशी व्यक्ति भी शामिल है, यह नहीं कह सकता कि उसे उस कानून की जानकारी नहीं थी, इसलिए उसने जानबूझ कर कोई अपराध नहीं किया है। कानून यह अवधारणा (presumption) रखता है कि सभी व्यक्ति उसे जानते हैं। लेकिन दण्ड की मात्रा (quantum of punishment) पर विचार करते समय कोर्ट अभियुक्त के विदेशी होने पर विचार कर उस विशेष अपराध के लिए निर्धारित न्यूनतम दण्ड दे सकता है। (नाजिर मोहम्म्द बनाम राज्य, एआईआर 1953 पंजाब 227: 1953 क्रिमिनल लॉ जनरल 1542, इसे पंजाब केस भी कहते हैं)
आईपीसी के क्षेत्रातीत प्रवर्तन के कुछ व्यावहारिक उदाहरण:
उदाहरण 1:
A एक भारतीय है जो दिल्ली मे रहता है। B और C पाकिस्तानी नागरिक हैं जो लाहौर मे रहते है। A ने दिल्ली से पत्र लिख कर B को C की हत्या करने के लिए दुष्प्रेरित किया । क्या A आईपीसी के तहत दंडनीय है?
उत्तर – अगर कोई भारतीय नागरिक कोई अपराध आंशिक रूप से देश के अंदर और आंशिक रूप से देश के बाहर करे तो उस पर भारत मे विचारण (trial) होगा, बशर्ते उसने आईपीसी के तहत दंडनीय अपराध किया हो। आईपीसी के हत्या के लिए दुष्प्रेरित करने को अपराध मानता है भले ही उस दुष्प्रेरण की परिणामस्वरूप वह आपराधिक कार्य हुआ हो या नहीं। इसलिए A को भारत मे मुकदमा चला कर दंडित किया जा सकता है।
उदाहरण 2:
A एक भारतीय है जो दिल्ली मे रहता है। वह घूमने के लिए इन्डोनेशिया गया, जहां उसने होटल मे कोई चीज चोरी की। क्या वह भारत मे दंडित किया जा सकता है? उस पर मुकदमा कहाँ चलाया जाएगा?
उत्तर – कोई भारतीय नागरिक किसी अन्य देश मे अगर कोई ऐसा कार्य करे जिसे आईपीसी दंडनीय अपराध बनाता है तो उस पर भारत मे मुकदमा चलाया जा सकता है और दोषी पाए जाने पर उसे दंडित किया जा सकता है। भारत मे जहां वह पाया जाएगा उस पर वह मुकदमा (विचारण – trial) चलाया जा सकता है। क्योंकि अपराध विधि मे अपराधी का मूल स्थान नहीं बल्कि अपराध का मूल स्थान देखा जाता है, लेकिन स्थान के कारण न्यायालय का न्यायाधिकर (jurisdiction) समाप्त नहीं होता है।
इसका आशय यह हुआ कि यदि अपराध का स्थान भारत मे न हो तो भी भारतीय न्यायालय का न्यायाधिकार बना रहेगा। इसलिए A भारत मे जहाँ भी पकड़ा जाएगा, वहाँ के न्यायालय मे उसपर विचारण होगा और दोषी पाए जाने पर आईपीसी के तहत दंडित किया जाएगा।
उदाहरण 3:
A एक विवाहित भारतीय हिन्दू है। वह किसी व्यावसायिक कार्य से सऊदी अरब गया। वहाँ उसने दूसरा विवाह कर लिया। सऊदी अरब मे दूसरा विवाह करना गैर-कानूनी नहीं है। क्या A को भारत मे दंडित किया जा सकता है?
उत्तर – भारत का कोई नागरिक किसी अन्य देश मे कोई ऐसा कार्य करता है, जो उस देश मे अपराध नहीं है लेकिन आईपीसी उसे अपराध मानता है, तो उस स्थिति मे भी उस पर भारत मे मुकदमा चल सकता है और उसे दंडित किया जा सकता है। चूंकि आईपीसी हिन्दू समुदाय के व्यक्ति के लिए एक पति/पत्नी के जीवित रहते दूसरा विवाह करने को अपराध मानता है। इसलिए A भारत मे इस अपराध के लिए दंडित हो सकता है।
उदाहरण 4:
उच्च समुद्र (high sea) मे एक विदेशी जहाज पर एक विदेशी नागरिक ने दूसरे विदेशी नागरिक को गोली मार कर घायल कर दिया। वह जहाज जब भारतीय बन्दरगाह पर पहुँचा, तब उस घायल व्यक्ति की मृत्यु हो गई। क्या उस विदेशी अपराधी को भारत मे दंडित किया जा सकता है?
उत्तर – प्रस्तुत मामले मे अपराध यानि मृत्यु भारत की भूमि पर घटित हुआ, इसलिए आईपीसी लागू होगा और उस विदेशी अपराधी को जहाँ वह पकड़ा जाएगा वहाँ के न्यायालय मे विचारण के बाद दोषी पाए जाने पर उसे आईपीसी के तहत दंड दिया जाएगा। भारत चाहे तो उस देश को जहाँ का वह अपराधी नागरिक है,मुकदमा चलाने के लिए प्रत्यर्पित भी कर सकता है।
उदाहरण 5:
भारतीय समुद्री सीमा के 12 नॉटिकल माइल्स के अंदर एक विदेशी जहाज पर एक विदेशी नागरिक ने दूसरे विदेशी नागरिक की हत्या कर दी। क्या उस पर भारत मे मुकदमा चलाया जा सकता है?
उत्तर – अंतर्राष्ट्रीय कानून के अनुसार किसी देश की समुद्री सीमा उसकी जलरेखा से 3 नॉटिकल माइल्स या समुद्री सीमा से 12 नॉटिकल माइल्स तक होती है और वहाँ तक उस देश का कानून लागू होता है। इसलिए प्रस्तुत मामले मे भारत मे मुकदमा चल सकता है और आईपीसी के तहत दंडित किया जा सकता है। लेकिन उदाहरण 4 की तरह यहाँ भी भारत के पास यह विकल्प होगा कि या तो वह उसे अपने कानून का अनुसार यहाँ दंडित करे या उसे उसे देश को सौंप दे जहाँ का वह नागरिक है ताकि उस देश के अनुसार उसे दंडित किया जा सके।