किन लोगों को भारत की नागरिकता मिल सकती हैं?
नागरिकता कानून चर्चा में क्यों है?
कानून बनने के लगभग चार साल बाद 11 मार्च 2024 को नोटिफ़िकेशन जारी कर केंद्र सरकार ने भारतीय नागरिकता (संशोधन) अधिनियम यानि सिटीजनशिप एमेंडमेंट एक्ट (सीएए) 2019 को लागू कर दिया है। 2019 में जब यह कानून पारित किया गया था तब इसका देश भर में उग्र विरोध हुआ था और अभी इसके लागू करने का भी हो रहा है।
नागरिकता क्या होता है?
सामान्य शब्दों में नागरिकता का अर्थ होता है किसी किसी व्यक्ति को किसी राष्ट्र की राष्ट्रीयता। यह व्यक्ति और राष्ट्र के बीच एक कानूनी संबंध बनाता है जिससे उस व्यक्ति की विधिक स्थिति, उसके कर्तव्य और अधिकार निर्धारित होते हैं। देश में बहुत से ऐसे अधिकार हैं जो केवल यहाँ के नागरिकों को ही प्राप्त हैं यहाँ रहने वाले विदेशी या प्रवासियों को नहीं।
शरण क्या होता है?
शरण नागरिकता से अलग होता है। नागरिक उस देश के स्थायी निवासी होते हैं जब तक कि कानूनी प्रावधानों के तहत वह अपनी नागरिकता छोड़ दे या राज्य उसकी नागरिकता वापस ले ले। शरण में कोई व्यक्ति अपने देश में किसी समस्या के कारण किसी अन्य देश में कुछ समय के लिए रहने का अधिकार मांगता है। उसका उद्देश्य वहाँ अस्थायी रूप से रहने का होता है। वह अपने देश की स्थिति में सुधार हो जाने के बाद वहाँ लौटने का इरादा रखता है। इन्हें उस देश में रहने की अनुमति सामान्यतः मानवीय आधार पर दी जाती है। उनके कानूनी अधिकार सीमित होते हैं। जैसे, पिछले लगभग 70 सालों से तिब्बत के लोग चीन द्वारा अपने देश पर कब्जा कर लिए जाने के कारण यहाँ शरणार्थी के रूप में रह रहे हैं। पर वे यहाँ नागरिकों के समान अधिकार की मांग नहीं कर सकते बल्कि इस उम्मीद में समय बिता रहे हैं कि जब तिब्बत में हालात सामान्य हो जाएंगे तब वे फिर अपने देश चले जाएंगे।
अप्रवासी कौन होते हैं?
किसी कार्य विशेष से अस्थायी रूप से जो लोग दूसरे देशों में रहते हैं उन्हें वहां अप्रवासीकहते हैं। उदाहरण के लिए भारत भ्रमण पर आए पर्यटक, शिक्षा या शोध कार्य के लिए आए विद्यार्थी या शोधार्थी, नौकरी या किसी अन्य कार्य से अस्थायी रूप से यहाँ रहने वाले लोग।
नागरिक, शरणार्थी और अप्रवासीकी कानूनी स्थिति, उनके अधिकार और कर्तव्य में अंतर होता है।
किसी देश में आने के लिए एक विधिक प्रक्रिया होती है, इस प्रक्रिया को पूरा किए बिना देश के अंदर आना या जिसे देश के अंदर आने से रोका गया हो, उसका अंदर आना, या वीजा की अवधि पूरी हो जाने के बाद भी यहाँ रहना, अवैध अप्रवास कहा जाता है। इनकी स्थिति, गतिविधियां, आने का उद्देश्य आदि सरकार को ज्ञात नहीं होता है, इसलिए ये देश की सुरक्षा के लिए घातक माने जाते हैं। साथ ही प्रत्येक देश की जमीन और अन्य भौतिक संसाधन सीमित होते हैं। अगर असीमित रूप से बाहर से लोग आने लगे तो वहाँ के मूल लोगों के लिए इन संसाधनों की कमी हो जाएगी। इसलिए सभी देशों के पास यह अधिकार होता है कि वह अपने देश में आने के लिए एक निश्चित नियम बनाए और जिसे चाहे आने से रोकें। अवैध अप्रवासीदेश के लिए अपराधी होते हैं।
भारत में नागरिकता को विनियमित करने वाला मुख्य कानून कौन से हैं?
भारत में नागरिकता संबंधी प्रावधान मूल रूप से संविधान के भाग दो में (अनुच्छेद 5 से 11 तक) दिया गया है। इसका अनुच्छेद 11 इस संबंध में कानून बनाने की शक्ति संसद को देता है। इसी शक्ति का उपयोग कर संसद ने 1955 में भारतीय नागरिकता अधिनियम (Indian Citizenship Act) बनाया। 1955 के अधिनियम में 1986, 1992, 2003, 2005 और 2015 में संशोधन किए गए है। 2019 में इसमें छठी बार संशोधन किया गया है।
भारतीय नागरिकता कानून की समस्याएँ
स्वतन्त्रता के बाद भारत के सामने जो मुख्य समस्याएँ समाधान के लिए थी उनमे से एक नागरिकता का प्रश्न भी था। 26 जनवरी 1950 यानि देश के गणतन्त्र घोषित होने के पहले से जो व्यक्ति भारत के भौगोलिक क्षेत्र में रहते थे वे तो स्वाभाविक रूप से भारत के नागरिक बन गए। लेकिन समस्या यह हुआ कि बँटवारे के बाद देश से अलग होने वाले क्षेत्रों से जो लोग आए उन्हें भारत की नागरिकता देने का क्या मापदंड हो? उनके लिए एक समय सीमा बनाना आवश्यक हो गया। अतः संविधान में बँटवारे की बाद की परिस्थितियों के लिए नागरिकता देने संबंधी कुछ तात्कालिक प्रावधान किए गए थे। देश की भौगोलिक सीमा के अंदर रहने वाले कुछ क्षेत्र; जैसे, गोवा, दमन, दीव- अभी देश का हिस्सा नहीं बने थे।
भारतीय नागरिकता पाने का आधार
भारत में किसी व्यक्ति को यहाँ की नागरिकता देने के चार आधारों को मान्यता दिया गया है:
a. जन्म
b. पंजीकरण
c. निवास
d. वंश
e. तीन पड़ोसी इस्लामिक देश- पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान- द्वारा घोषित छह धार्मिक अल्पसंख्यक समुदाय- हिन्दू, बौद्ध, जैन, सिक्ख, पारसी और ईसाई- जो कि 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत आ गए हों और यहाँ स्थायी रूप से रहना चाहते हों। (2019 में जोड़ा गया)
क्या है CAA यानि नागरिकता कानून में 2019 में किया गया संशोधन?
भारत का संविधान और 1955 का भारतीय नागरिकता अधिनियम भारत की नागरिकता के लिए जो चार आधार बनाते हैं यानि (1) जन्म (2) वंश (3) पंजीकरण, और (4) निवास, 2019 का संशोधन इसमें एक और आधार जोड़ता है। इन शर्तों के पूरा होने पर निश्चित प्रक्रिया अपना कर भारत की नागरिकता ग्रहण की जा सकती है। इस अधिनियम में 2019 से पहले पाँच संशोधन हुए थे लेकिन नागरिकता के आधारों को परिवर्तित नहीं किया गया था जबकि 2019 में हुए छठे संशोधन द्वारा इसमें एक और नया आधार जोड़ा गया।
पर 2019 में हुए छठे संशोधन द्वारा इनमें जोड़ा गया नया आधार यह है कि तीन पड़ोसी देशों- अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश से आए ऐसे छह धार्मिक समुदाय, जिन्हें इन देशों ने धार्मिक अल्पसंख्यक का दर्जा दे रखा है, अगर 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत में आ गए हैं और धार्मिक उत्पीड़न के आधार यहाँ नागरिकता मांगते हैं तो जरूरी प्रक्रिया पूरी करने के बाद उन्हें भारत की नागरिकता दी जा सकती हैं। ये छह धार्मिक समुदाय हैं- हिन्दू, बौद्ध, जैन, सिक्ख, ईसाई और पारसी। पहले से प्रचलित किसी कानूनी प्रावधान, या किसी के किसी अधिकार को खत्म नहीं किया गया है।
इस संशोधन द्वारा नागरिकता का एक आधार धर्म को बनाया गया और दूसरा निवास के आधार पर जो नागरिकता देने का प्रावधान था उसे एक विशेष वर्ग के अप्रावासियों के लिए 11 साल से कम कर छह वर्ष कर दिया गया है और यही विवाद का मूल कारण है।
| 2019 के अधिनियम से पहले की स्थिति | 2019 के अधिनियम द्वारा लाया गया परिवर्तन | |
| 1. | पहले अवैध रूप से भारत में आने वालों या रहने वालों को नागरिकता देने के लिए प्रावधान नहीं था। उन्हे हिरासत में लेकर उनके देश भेज दिया जाता था। | अब जो 31 दिसंबर 2014 तक अवैध रूप से भारत आए है या अवैध रूप से यहाँ रह रहे हैं, उन्हे भी नागरिकता देने का प्रावधान हो गया है। उदाहरण के लिए पाकिस्तान से जो वैध रूप से तीर्थयात्रा के लिए धार्मिक वीजा लेकर यहाँ आए थे लेकिन वीजा की अवधि समाप्त होने के बाद भी यहाँ रह गए और यहाँ शरण मांग रहे है। |
| 2. 2 | पहले नागरिकता के लिए जन्म, वंश, निवास और पंजीकरण– केवल ये चार आधार थे। अर्थात जो कोई भी इन मापदण्डों पर खड़ा उतरता उसे भारत की नागरिकता मिल जाती, भले ही वह किसी भी धर्म का क्यों न हो। | इस अधिनियम द्वारा पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आने वाले छह धार्मिक समुदायों को नागरिकता देने का प्रावधान है– हिन्दू, बौद्ध, जैन, सिक्ख, पारसी और ईसाई। अर्थात केवल मुस्लिम अप्रवासी इससे अलग रखे गए हैं। |
| 3. 3 | स्वतन्त्रता के बाद के समय मे जिन आप्रवासियों के लिए विशेष प्रावधान थे वे अविभाजित भारत से आने वाले लोगों के लिए थे। लेकिन बाद में बने कानून किसी विशेष देश के लिए नहीं थे। | इसमें पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आने वाले वहाँ अल्पसंख्यक दर्जा प्राप्त लोगों के लिए ही प्रावधान किया गया है। |
| 4. 4 | अभी तक निवास के आधार पर नागरिकता के लिए 11 वर्ष भारत में रहने का प्रावधान था। | इस कानून द्वारा यह सीमा एक विशेष वर्ग के लिए कम कर दिया गया है। ये वर्ग है इन तीन देशों से आए हुए छह अल्पसंख्यक समुदायों के अप्रवासी। |
नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 (2019 का अधिनियम संख्यांक 47)
यह अधिनियम लोक सभा द्वारा 10 दिसंबर को और राज्यसभा द्वारा 11 दिसंबर 2019 को पारित किया गया। तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द द्वारा 12 दिसम्बर को सहमति मिलने के बाद इस विधेयक (Bill) को अधिनियम (Act) यानि कानून की स्थिति प्राप्त हो गई। अब इसके लागू होने के लिए केवल गज़ट नोटिफ़िकेशन की जरूरत थी जो कि 11 मार्च 2024 को कर दिया गया है।
यह कानून 2016 में भी लोक सभा में प्रस्तुत किया गया था जिसे कि असहमति के कारण 12 अगस्त, 2016 को संयुक्त संसदीय समिति (Joint Parliamentary Committee) को सौंप दिया गया। इस समिति ने अपनी रिपोर्ट 7 जनवरी, 2019 को दिया। जिसे लोक सभा ने 8 जनवरी को मंजूरी दे दी। पर 16वीं लोकसभा भंग होने के कारण यह उस समय पारित नहीं हो पाया। इसलिए नई लोक सभा गठन के बाद इसे फिर से दोनों सदनों से पारित करवाया गया।
2019 से पहले भारत की नागरिकता पाने के चार आधार
1955 के अधिनयम द्वारा भारत की नागरिकता पाने के वही चार आधार रखे गए जो संविधान के भाग 2 में है। ये चार आधार निम्नलिखित हैं:
1. जन्म (birth): जन्म के आधार पर कोई व्यक्ति भारत का नागरिक है अगर उसका जन्म
(1) 26 जनवरी 1950 से 1 जुलाई 1987 के बीच भारत में हुआ हो, या
(2) 1 जुलाई 1987 के बाद हुआ हो और उसके जन्म के समय उसके माता या पिता में से कोई एक भारत के नागरिक हो;
(3) 7 जनवरी 2004 के बाद हुआ हो और उसके जन्म के समय (a) उसके माता-पिता दोनों भारत के नागरिक हो, अथवा (b) दोनों में से एक भारत का नागरिक हो और दूसरा गैर कानूनी अप्रवासीनहीं हो
2. वंश: अगर किसी व्यक्ति का जन्म भारत के बाहर हुआ हो तो वह इन परिस्थितियों में भारत का नागरिक होगा:
(1) उसका जन्म 26 जनवरी 1950 से 10 दिसंबर 1992 के बीच हुआ हो और उसके जन्म के समय उसके पिता भारत के नागरिक हो, या
(2) उसका जन्म 10 दिसंबर, 1992 के बाद हुआ हो लेकिन उसके जन्म के समय उसके पिता या माता में से कोई एक भारत का नागरिक हो।
(3) 3 दिसंबर 2004 के बाद भारत से बाहर जन्मे बच्चे के अभिभावक के लिए यह आवश्यक है कि उसके जन्म के एक वर्ष के अंदर भारतीय वाणिज्य दूतावास में पंजीकृत करवाए और यह घोषित करे कि उस बच्चे के पास किसी अन्य देश का पासपोर्ट नहीं है। (भारत सरकार को यह अधिकार है कि कुछ विशेष परिस्थिति में एक साल के बाद भी पंजीकृत करने के लिए अनुमति दे।)
3. पंजीकरण: सरकार भारतीय नागरिकता अधिनियम 1955 की धारा 5 के तहत निम्नलिखित तरह के व्यक्तियों को आवेदन करने पर भारत की नागरिकता दे सकती है बशर्ते वह गैर कानूनी अप्रवासी नहीं हो:
(1) वह भारतीय मूल का हो और आवेदन करने से पहले सात साल से भारत में रह रहा हो; या
(2) उसने भारत के नागरिक से विवाह किया हो और आवेदन करने से पहले सात साल से भारत में रह रहा हो;
(3) वह वयस्क और मानसिक रूप से सक्षम हो और पहले कभी स्वयं या उसके माता पिता में से कोई एक या दोनों- स्वतंत्र भारत के नागरिक रहे हों, और आवेदन करने से पहले एक वर्ष से भारत में रह रहा हो;
(4) वह व्यस्क और मानसिक रूप से सक्षम हो और सात सालों से भारत में विदेश नागरिक के रूप में पंजीकृत हो और पिछले एक साल से भारत में रह रहा हो।
4. निवास: अगर कोई विदेशी नागरिक पिछले 11 सालों से भारत में रह रहा हो। इन 11 सालों में से पिछले सात सालों में से कम से कम 5 साल भारत में रहा हो। (अर्थात इस दौरान वह अन्य देश में कुल मिला कर 2 साल से अधिक नहीं रहा हो) और पिछले एक साल से लगातार भारत में रहा हो, तो उसे भारत की नागरिकता मिल सकती है।
एकल नागरिकता: भारतीय नागरिकता की विशेषताएँ
यहाँ एकल नागरिकता का प्रावधान है अर्थात कोई भारतीय नागरिक किसी अन्य देश की नागरिकता नहीं ले सकता है। अर्थात वह एक साथ दो देश का नागरिक नहीं हो सकता है।
भारतीय नागरिकता का समापन
भारत में एकल नागरिकता है इसलिए अगर कोई भारतीय नागरिक जानबूझकर किसी अन्य देश की नागरिकता ले लेता है तो उसकी भारत के नागरिकता रद्द हो जाएगी। अमेरिका में जन्म के साथ ही नागरिकता मिलने का कानून है। अर्थात अगर कोई भारतीय दंपति किसी कारण से अस्थायी रूप से अमेरिका में रहते हैं और उन्हे जो बच्च होंगे वे अमेरिकी कानून के अनुसार स्वतः ही वहाँ के नागरिक मान लिए जाएंगे। लेकिन ऐसी स्थिति में उनका भारतीय नागरिकता स्वतः समाप्त नहीं होगा क्योंकि उन्होने स्वेच्छा से ऐसा नहीं किया है। इसके लिए अलग विनियम (regulations) हैं।
गोवा, दमन और दीव यद्यपि वर्तमान में भारत के अभिन्न अंग हैं लेकिन ये भारत में बाद में शामिल हुए है। उससे पहले ये भारत की जमीन में होते हुए भी किसी अन्य देश के कब्जे में थे इसलिए इनके लिए अलग से विशेष प्रावधान की जरूरत थी। नागरिकता नियम (Citizenship Regulation) 1956 के रेग्युलेशन 3A, के अनुसार “एक व्यक्ति जो नागरिकता अधिनियम 1955 की धारा 7 के तहत जारी, दादर, नगर और हवेली (नागरिकता) आदेश 1962, अथवा गोवा, दमन और दीव (नागरिकता) आदेश 1962 के आधार पर भारतीय नागरिक बन गया है और उसके पास किसी अन्य देश के द्वारा जारी किया या पासपोर्ट है. तथ्य कि उसने 19 जनवरी 1963 से पहले अपना पासपोर्ट नहीं लौटाया है, यह इस बात का निर्णायक प्रमाण होगा कि उसने इस दिनांक से पहले स्वेच्छा से उस देश की नागरिकता को प्राप्त कर लिया है। भारत का अंग बनाने के बाद यहाँ के नागरिकों को अपना पुराना पासपोर्ट लौटना होगा।”
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