आईपीसी में दण्ड से संबंधित प्रावधान- part 9
अध्याय 3- “दण्डों के विषय में”
आईपीसी में दण्ड से संबंधित प्रावधान इसके चैप्टर 3 में दिए गए हैं। आईपीसी यानि भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) पाँच तरह के दण्ड का प्रावधान करती है। पूर्व में प्रचलित निर्वासन, सम्पूर्ण सम्पत्ति को अधिकृत करने और सार्वजनिक रूप से दण्ड देने का प्रावधान इसके द्वारा समाप्त कर दिया गया है। ये पाँच तरह के दण्ड हैं –
(1) मृत्युदण्ड
मृत्युदण्ड निम्नलिखित अपराधों के लिए किसी अपराधी को दिया जा सकता है:
- भारत सरकार के विरूद्ध युद्ध के लिए (धारा 121)
- ऐसे विद्रोह के लिए दुष्प्रेरित करना जो वास्तव में हुआ हो (धारा 132)
- किसी निर्दोष व्यक्ति के विरूद्ध ऐसा साक्ष्य देना जिससे उसे मृत्युदण्ड मिले (धारा 194)
- हत्या (धारा 302)
- किसी अव्यस्क, पागल या मदोन्मत्त व्यक्ति को आत्महत्या के लिए दुष्प्रेरित करना (धारा 305)
- डकैती का ऐसा अपराध जिसमे हत्या भी हुआ हो (धारा 396)
- कोई ऐसा व्यक्ति जो आजीवन कारावास का दण्ड भोग रहा हो, किसी की हत्या का प्रयास करे और इस प्रयास के फलस्वरूप वह व्यक्ति घायल हो जाय (धारा 307)
(2) आजीवन कारावास
आजीवन कारावास अब निर्वासन के दण्ड के स्थान पर दिया जाता है। दण्ड के रूप में निर्वासन को भारतीय दण्ड संहिता मान्यता नहीं देती है। इस संहिता के तहत आजीवन कारावास का आशय कठोर कारावास से है साधारण कारावास से नहीं।
विभिन्न कानूनी उपबंधों और न्यायिक निर्णयों से आजीवन कारावास के संबध मे जो प्रावधान परिलक्षित हुए हैं उनमें से निम्नलिखित प्रमुख हैं:
आजीवन कारावास की समय अवधि
आजीवन कारावास का आशय दण्डादिष्ट व्यक्ति के सम्पूर्ण प्राकृतिक जीवन के लिए कारावास से है जब तक कि समुचित सरकार औपचारिक रूप से यह दण्डावधि कम न कर दे। यह बीस वर्ष की अवधि या किसी विशेष अवधि पूर्ण होने पर अपनेआप समाप्त नहीं होती है।
विभिन्न राज्यों के जेल मैन्युअल में आजीवन कारावास के लिए किसी निश्चित अवधि का उल्लेख है लेकिन समुचित सरकार द्वारा औपचारिक रूप से प्रत्येक मामले में पृथक् रूप से जब तक यह अवधि कम न कर दी जाय तब तक इसका अर्थ शेष संपूर्ण प्राकृतिक जीवन से रहेगा।
ऐसी औपचारिकता के बिना जेल मैन्युअल में उल्लेख के बावजूद आजीवन कारावास अपनेआप एक निश्चित समय के लिए कारावास में परिवर्तित नहीं हो सकता है।
माननीय उच्चतम न्यायालय ने यह दृष्टिकोण मध्यप्रदेश राज्य विरूद्ध रतन सिंह (1976 Cri. L.J. 1192) और अब्दुल आजाद विरूद्ध राज्य (1976 Cri. L.J. 315) तथा कई अन्य मामलों में स्पष्ट रूप से प्रतिपादित किया है।
अब्दुल आजाद मामले में उच्चतम न्यायालय ने यह भी कहा कि यदि समुचित सरकार आजीवन कारावास की सजा अवधि कम कर देती है तो निश्चित सजा में वह अवधि भी गिना जाएगा जो उसने केस के विचारण या अनुसंधान के दौरान जेल में बिताया था।
आजीवन कारावास के अवधि में छूट
जिस राज्य के अन्तर्गत वह व्यक्ति दोषसिद्ध हुआ और उसे दण्ड मिला केवल उसी राज्य को यह अधिकार है कि वह सजा की अवधि में कमी कर सके।
सजा की अवधि में कमी करने वाले जो नियम प्रिजन एक्ट या जेल मैन्युअल में हैं वे केवल प्रशासनिक निर्देश हैं और इस संहिता के विधिक प्रावधानों से वरीय नहीं हो सकते हैं।
उदाहरण के लिए दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 433क यह सीमा लगाती है कि आजीवन कारावास के लिए दण्डादिष्ट व्यक्ति की दण्डावधि सरकार 14 वर्ष से कम नहीं कर सकती है। यद्यपि इसी संहिता की धारा 432 और 433 सरकार को मृत्युदण्ड सहित सभी दण्डों के लघुकरण, निलम्बन या परिहार की शक्ति देती है।
आजीवन कारावास किन अपराधों के लिए है?
भारतीय दण्ड संहिता लगभग पचास अपराधों के लिए आजीवन कारावास का उपबंध करती है;जैसे, धारा 311, 121,124क इत्यादि।
(3) कारावास
निम्नलिखित दो मामलों में कारावास की न्यूनतम अवधि इस संहिता द्वारा ही निश्चित कर दिया गया है –
- 1. यदि डकैती या लूट मृत्यु या घोर उपहति कारित करने के प्रयत्न के साथ की जाय तो उसे 7 वर्ष से कम की सजा नहीं मिलेगी। (धारा 397)
- 2. यदि डकैती या लूट घातक हथियार से सज्जित होकर की जाय तो उसे 7 वर्ष से कम सजा नहीं मिलेगी। (धारा 398)
इस संहिता में कुछ ऐसे अपराध है जिनके लिए केवल कठोर कारावास का उपबंध है और इनके लिए साधारण कारावास नहीं दिया जा सकता है। ऐसे अपराध निम्नलिखित हैं:
- 1. मृत्यु से दण्डनीय अपराध के लिए दोषसिद्ध कराने के आशय से मिथ्या साक्ष्य देना या गढ़ना। (धारा 194)
- 2. मृत्यु से दण्डनीय अपराध को करने के लिए गृहअतिचार करना। (धारा 449)
उपर्युक्त के विपरीत निम्नलिखित अपराध के लिए केवल साधारण कारावास का प्रावधान है और इन मामलों में कठोर कारावास नहीं दिया जा सकता है:
- 1. लोकसेवक द्वारा विधिविरूद्ध रूप से व्यापार में लगना या विधिविरूद्ध रूप से सम्पत्ति क्रय करना या उसके लिए बोली लगाना। (धारा 168 और 169)
- 2. समन की तामिल या अन्य कार्यवाही का या उसके प्रकाशन का निवारण करना और लोकसेवक का आदेश न मानकर गैरहाजिर रहना। (धारा 173 और 174)
- 3. दस्तावेज या इलेक्ट्रॉनिक अभिलेख पेश करने के लिए वैध रूप से आबद्ध व्यक्ति द्वारा लोकसेवक को इसे पेश करने से लोप करना और सूचना या इत्तला देने के लिए आबद्ध व्यक्ति द्वारा लोकसेवक को सूचना या पुलिस को इत्तला देने से लोप करना। लोक सेवक की सहायता देने के लिए विधि द्वारा आबद्ध व्यक्ति द्वारा ऐसे लोकसेवक को सहायता देने से लोप करना भी इसी तरह दण्डनीय है। (धारा 175,176 और 187)
- 4. लोकसेवक द्वारा सम्यक् रूप से अपेक्षा करने के बावजूद शपथ या प्रतिज्ञान लेने से इंकार करना, प्रश्न करने के लिए प्राधिकृत लोकसेवक को उत्तर देने से इंकार करना और कथन पर हस्ताक्षर करने से इंकार करना। (धारा 178,179 और 180)
- 5. लोकसेवक द्वारा सम्यक् रूप से प्रख्यापित आदेश की अवज्ञा। (धारा 188)
- 6. किसी लोकसेवक द्वारा किसी ऐसे व्यक्ति का जिसे अपराध के लिए आरोपित कर अभिरक्षा में रखने के लिए विधिपूर्वक सुपुर्द किया गया है, का निकल भागना सहन करना या उसे पकड़़ने का लोप करना। (धारा 223 और 225क)
- 7. न्यायिक कार्यवाही में बैठे लोकसेवक का साशय अपमान करना या उसके कार्य मे विघ्न डालना। (धारा 228)
- 8. न्यूसेंस बन्द करने के व्यादेश के बावजूद उसका चालू रखना। (धारा 291)
- 9. सदोष अवरोध। (धारा 341)
- 10. मानहानि करना अथवा मानहानिकारक जानी हुई बात को मुद्रित या उत्कीर्ण करना अथवा ऐसे पदार्थ को बेचना। (धारा 500, 501 और 502)
- 11. ऐसे शब्द, अंग विक्षेप या कार्य करना जो किसी स्त्री की लज्जा का अनादर करने के लिए आशयित हो। (धारा 509)
- 12. मत्त व्यक्ति द्वारा लोकस्थान मे अवचार करना। (धारा 510)
कारावास – दो तरह की – सादा और काठोर या सश्रम (धारा 53) | |
धारा 57 | दण्डावधियों की भिन्नें |
धारा 60 | कुछ भाग सादा और कुछ कठोर हो सकता है |
धारा 71 | कई अपराधों से मिलकर बने अपराध के लिये दण्ड की अवधि |
धारा 73 | एकान्त परिरोध |
दण्डावधि में वृद्धि
इसकी धारा 75 अधिकतम दण्डादेश के लिए विशेष स्थिति का उपबंध करती है। यह न तो न्यूनतम दण्ड का प्रावधान करती है और न ही कोई विशेष अपराध का गठन करती है बल्कि यह केवल दण्डावधि में वृद्धि की स्थितियाँ बताती है। इस धारा के तहत दण्ड में वृद्धि के लिए तीन शर्तों का पूरा होना आवश्यक है –
- वह कृत्य अध्याय 12 या अध्याय 17 के तहत अपराध हो (अध्याय 12 – सिक्कों और सरकारी स्टाम्पों के संबंधित अपराध, अध्याय 17 – सम्पत्ति के विरूद्ध अपराध),
- पूर्ववर्ती अपराध ऐसा हो जो कम से कम तीन वर्ष के कारावास का दण्ड निर्धारित हो,
- पश्चात्वर्ती अपराध भी ऐसा हो जो कम से कम तीन वर्ष के कारावास के दण्ड से दण्डनीय हो। इन तीनों शर्तों के पूरा होने पर ही धारा 75 के अनुसार दण्ड में वृद्धि की जा सकेगी।
(4) सम्पत्ति अधिकृत कर लेना
संहिता की मूल धारा 61 और 62 सम्पत्ति के अधिग्रहण के दण्ड से संबंधित थी लेकिन अब इन दोनों धाराओं को निरसित कर सम्पूर्ण सम्पत्ति को अधिकृत करने का दण्ड समाप्त कर दिया गया है। वर्तमान में केवल तीन ऐसे अपराध हैं जिसके लिए उस विशेष सम्पत्ति (न कि सम्पूर्ण सम्पत्ति का) अधिग्रहण कर लिया जाता है। ये अपराध धारा 126, 127 और 169 में वर्णित हैं।
(5) जुर्माना
वर्तमान में निम्नलिखित अपराध केवल जुर्माने से दण्डनीय है:
- 1. किसी ऐसे वाणिज्यिक जलयान का, जिसपर भारत सरकार की सेना, नौसेना या वायुसेना का कोई अभित्याजक छिपा हुआ हो जबकि उस जलयान का मास्टर या भारसाधक व्यक्ति इस तथ्य से अनभिज्ञ हो तो वह 500 रू के जुर्माने से दण्डनीय है। (धारा 137)
- 2. उस भूमि के स्वामी या अधिभोगी, जिस पर विधिविरूद्ध जमाव किया गया है, 1000 रू से अनधिक जुर्माने से दण्डनीय होगा। (धारा 154)
- 3. वह व्यक्ति जिसके फायदे के लिए बल्वा किया जाता है, जुर्माने से दण्डनीय होगा। (धारा 155)
- 4. उस स्वामी या अधिभोगी के अभिकर्ता का दायित्व भी जुर्माने तक ही होगा जिसके फायदे के लिए बल्वा किया जाता है। (धारा 156)
- 5. निर्वाचन के सिलसिले में मिथ्या कथन के लिए भी संहिता में केवल जुर्माने का प्रावधान है। (धारा 171छ)
- 6. निर्वाचन के सिलसिले में अवैध संदाय के लिए जुर्माना का प्रावधान है जो 500 रू तक का हो सकेगा। (धारा 171ज)
- 7. निर्वाचन लेखा रखने में असफलता के लिए भी जुर्माना का प्रावधान है जो 500 रू तक का हो सकेगा। (धारा 171झ)
- 8. वायुमण्डल को स्वास्थ्य के लिए अपायकर बनाने का अपराध केवल जुर्माने से दण्डनीय है जो 500 रू तक हो सकता है। (धारा 278)
- 9. लोकमार्ग या नौ परिवहन पथ में संकट या बाधा डालना जुर्माने से दण्डनीय है रू 200 तक। (धारा 283)
- 10. अन्यथा अनुपबन्धित मामलों में लोक न्यूसेंस के लिए 200 रू तक के जुर्माना का प्रावधान है। (धारा 290)
- 11. किसी लॉटरी निकालने से संबंधित कोई प्रस्थापना प्रकाशित करने के लिए 1000 से अनधिक जुर्माने का प्रावधान संहिता में है। (धारा 294क)
जुर्माना (धारा 53, 63 – 70) | |
धारा 63 | कारावास की समाप्ति (धारा 68) – (1) या तो जुर्माना दिया जाय, या (2) या जुर्माना उद्ग्रहित कर लिया जाय, (3) आनुपातिक भाग चुका दिया जाय (धारा 69) |
धारा 64 | जुर्माना नहीं देने पर कारावास |
धारा 66 | कारावास का प्रकार |
धारा 68-69 | कारावास की समाप्ति (धारा 68) – (1) या तो जुर्माना दिया जाय, या (2) या जुर्माना उद्ग्रहित कर लिया जाय, (3) आनुपातिक भाग चुका दिया जाय (धारा 69) |
धारा 70 | जुर्माना चुकाने की अवधि |