लैटरल एंट्री क्या आरक्षण खत्म करने का प्रयास है?

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लेटरल एंट्री क्या है?

लेटरल एंट्री का अर्थ है उच्च पदों पर सीधी भर्ती द्वारा नियुक्ति। सरकार इसके लिए कुछ अर्हता निश्चित कर देती है। फिर इंटरव्यू और उनके उपलब्धियों के आधार पर नियुक्ति की जाती है। यह सामान्य भर्ती प्रक्रिया से अलग होती है इसलिए इसे लेटरल यानि पार्श्व भर्ती कहते हैं। 

यह क्यों चर्चा में है?

भारत सरकार ने यूपीएससी यानि संघ लोक सेवा आयोग द्वारा 24 मंत्रालयों में 45 पदों के लेटरल एंट्री यानि पार्श्व भर्ती के लिए विज्ञप्ति (नोटिफ़िकेशन) निकाला है। आवेदन करने की अंतिम तिथि 17 सितंबर है। इन पदों में संयुक्त सचिव (जॉइंट सेक्रेटरी), उप सचिव (डिप्टी सेक्रेटरी) औरनिदेशक (डायरेक्टर) स्तर के पद हैं।

नियुक्ति के लिए आयु, अनुभव और विशेषज्ञता संबंधी कुछ अर्हताएँ दी गईं हैं। साक्षात्कार और अपनी पूर्व उपलब्धियों के आधार पर किसी व्यक्ति को इन उच्च पदों पर नियुक्ति की जा सकती है। किसी तरह का लिखित परीक्षा नहीं होगा जैसा की सामान्य प्रशासनिक परीक्षा के लिए होता है। 

केंद्र सरकार, राज्य सरकार, सरकारी या स्वायत्त उपक्रम, राष्ट्रीय या अंतराष्ट्रीय संगठन, शोध संस्थान, यूनिवर्सिटी, किसी कंपनी या संस्था के व्यक्ति भी इसके लिए नियुक्ति के पात्र हो सकते हैं भले ही वह सरकारी, स्वायत्त, या फिर प्राइवेट हो।

अभी तक तीन स्तर- प्रारम्भिक, मुख्य और साक्षात्कार- पर होने वाले कठिन प्रशासनिक सेवा परीक्षा से चुन कर आने और प्रशिक्षण लेने के बाद जब किसी आईएएस अधिकारी को कुछ निश्चित वर्षों की सेवा का अनुभव हो जाता था तब वह इन उच्च पदों पर चुना जाता था।

इन पदों पर नियुक्ति केवल तीन वर्षों के अनुबंध के आधार पर होगा। अगर उस अधिकारी का कार्य अच्छा रहा तो सरकार दो वर्षों के लिए उसका कार्यकाल बढ़ा सकती है। अर्थात इस तरह नियुक्त अधिकारियों का कार्यकाल 3 से 5 वर्षों का होगा।      

क्यों लेटरल एंट्री का विरोध हो रहा है?

विपक्षी दल इस लेटरल एंट्री का जबर्दस्त विरोध कर रही हैं। इसको लेकर के विपक्ष सवाल कर रहा है कि क्या भारत सरकार आरक्षण खत्म करना चाहती है? सरकार की सहयोगी लोक जन शक्ति ने सीधा विरोध नहीं किया है लेकिन इन भर्तियों में भी आरक्षण की मांग की है। विरोध के मुख्य आधार ये हैं:

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1. इन नियुक्तियों में आरक्षण का प्रावधान नहीं किया गया है। विरोधी दलों का कहना है कि सरकार ने जानबूझ कर 45 पदों पर संयुक्त नहीं बल्कि अलग-अलग मंत्रालयों के अनुसार आवेदन आमंत्रित किया है। इससे आरक्षण यहाँ लागू नहीं हो पाएगा। जबकि अगर एक साथ 45 पद होते तब आरक्षण लागू होता। इस तरह सरकार आरक्षण के प्रावधानों को बायपास कर रही है।

2. सीधी भर्ती होने से सरकार के पास यह अवसर होगा कि वह इन उच्च पदों पर अपने समर्थक लोगों को नियुक्त कर सके।

3. जो लोग कठिन परीक्षा और वर्षों की सेवा के बाद प्रमोशन से इन इन उच्च पदों पर नियुक्ति के हकदार थे, जिनमें आरक्षण का लाभ पाकर वह पहुंचे हुए अधिकारी भी शामिल हैं, उनका हक छीन कर किसी अन्य को सीधे उन पदों पर बैठा दिया जाना सही नहीं है। निजी क्षेत्रों से भी लोग आवेदन किया जा सकता है।   

लेटरल एंट्री में आरक्षण क्यों लागू नहीं किया जा सकता है?

लेटरल एंट्री के विरोध का सबसे बड़ा आधार यह है कि यूपीएससी की परीक्षाओं में एससी, एसटी, ओबीसी और ईडबल्यूएस को नियमानुसार आरक्षण मिलता है, वह यहाँ अलग-अलग वेकेंसी निकालने से समाप्त हो गया है।

वास्तव में आरक्षण तब मिल सकता है जब किसी नौकरी में या विश्वविद्यालय में वेकेंसी कम से कम 14 हो। इसे 13 पॉइंट रोस्टर कहते हैं।

13 पॉइंट रोस्टर का अर्थ व्यावहारिक रूप से समझने के लिए हम आरक्षण कोटा प्रतिशत को 100 से विभाजित कर देते हैं। ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण है। 27 को 100 से भाग देने पर आता है 3.7। इसका अर्थ हुआ वेकेंसी का हर चौथा पद ओबीसी को मिलेगा। इसी तरह एससी को 15 प्रतिशत आरक्षण है। 15 को 100 से विभाजित करने पर आता है 6.6 यानि की हर सातवाँ पद एससी को जाएगा। एसटी को 7.5 आरक्षण है। 7.5 को 100 से भाग देने पर आता है 13.33। यानि हर चौदहवाँ पद एसटी को मिलेगा। ईडबल्यूएस को 10 प्रतिशत आरक्षण हैं इसलिए हर दसवां पद उन्हें मिलेगा।

अगर कुल 24 पद होंगे तब ओबीसी को 4, 8, 12, 16, 20 और 24वां पद (कुल 6 पद) मिलेगा। एससी को 7वां, 17वां और 21वां यानि की कुल 3 पद मिलेगा। एसटी को केवल चौदहवाँ यानि एक पद मिलेगा क्योंकि 28वां वेकेंसी है ही नहीं। ईडबल्यूएस कोटा को दो पद मिलेगा (10वां और 20वां)      

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सरकार ने यद्यपि 45 पद निकाला है लेकिन इसे मिनिस्टरी वाइज़ निकाला है। यानि इस मिनिस्टरी या डिपार्टमेंट में 2 पोस्ट, इसमें 3 पोस्ट ऐसे। इसमें किसी एक मिनिस्टरी में 13 से अधिक पोस्ट ही नहीं हैं। इसलिए आरक्षण लागू नहीं हो पाएगा। अगर एक साथ 45 पद होता तो  रिज़र्वेशन लागू हो जाता।

यूपीएससी जब भर्ती के लिए वेकेंसी निकालती है तो एक साथ ही सारे पदों पर निकालती है। उदाहरण के लिए यूपीएससी एक साथ 1000 पदों के लिए वेकेंसी निकालती है। इसमें आईएएस, आईपीएस, आईआरएस, आईएफ़एस, रेलवे आदि के लिए पद होते हैं। अभ्यर्थी अपनी प्राथमिकता देते हैं। फिर रैंक के आधार पर उन्हें पद मिलता है। इनमें से समान्यतः ऊपर के 150-200 पद ही आईएएस के लिए होते हैं। बाकी अन्य पदों द्वारा भरे जाते हैं। आरक्षण इन सभी वेकेंसी यानि 1000 पदों के हिसाब से दिया जाता है।

राहुल गांधी, तेजस्वी यादव, प्रियंका चतुर्वेदी आदि सब का तर्क यही है। उनके अनुसार यहा अगर 45 पद बोले जाते तो 22 से 23 अभ्यर्थी ऐसे होते जो दलित पिछड़ा और आदिवासी समाज से होते।

इसके समर्थन में सरकार क्या तर्क दे रही है?

विशेषज्ञता का उपयोग

वर्तमान में टेक्नालजी हर जगह जरूरत बन चुका है। लगातार टेक्नोलॉजिकल एडवांसमेंट हो रहे हैं, इनोवेशन हो रहे हैं। विशेषज्ञों की मांग बढ़ रही है। विश्वीकरण हो चुका है। बहुत सारे पोस्ट ऐसे हैं जिन पर अगर कोई ऐसे व्यक्ति हो जो उस विशेष क्षेत्र से जुड़ा विशेष अनुभव रखता हो तो वह अधिक अच्छा सर्विस दे सकता है। उदाहरण के लिए कोई व्यक्ति वित्त, स्पेस, स्वास्थ्य या पर्यावरण क्षेत्र में प्रशासनिक कार्य कई वर्षों से कर रहा है यानि उसे उस क्षेत्र की विशेषज्ञता प्राप्त हो गई है। वह उस क्षेत्र का कार्य अच्छी तरह समझ सकता है। प्रोमोट होकर आने वाला अधिकारी हो सकता है उस क्षेत्र का विशेष अनुभव नहीं रखता हो।

यही समस्या आती अगर सरकार सभी 45 पद एक साथ संयुक्त रूप से वेकेंसी घोषित कर देती। सरकार को स्पेस विभाग के अधिकारी की जरूरत होती और उस पर कोई मेडिकल अनुभव वाला व्यक्ति आवेदन कर देता। अब सरकार ने यह स्पष्ट कर दिया है तो इससे जिस की जिस विषय में विशषज्ञता होगी वह उसी में आवेदन करेगा।

सामान्य आईएएस अधिकारी जब सर्विस में आ जाते हैं तब उनमें किसी एक क्षेत्र की विशेषज्ञता नहीं रह जाती है। एक आईएएस अगर सामान्य प्रशासन का अनुभव रख रहा होता है उतने दिनों तक किसी अन्य ने किसी विशेष क्षेत्र में अनुभव रखा है, तो उसके अनुभवों का लाभ सरकार को उठाना चाहिए। अगर कोई व्यक्ति आईटी सैक्टर, इंजीनियर सैक्टर या एडुकेशन सैक्टर में 15 वर्ष से कार्य कर रहा हो, तो उसे उस क्षेत्र की ज्यादा जानकारी होगी उस अधिकारी की तुलना में जो 15 वर्षों से सर्विस में तो हैं लेकिन उनका कार्यक्षेत्र कुछ दूसरा रहा है।

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इस प्रक्रिया से अलग-अलग क्षेत्रों में अनुभव रखने वाले विशेषज्ञों की विशेषज्ञता का लाभ अधिक उठाया जा सकता है।   

प्रशासनिक अधिकारियों के अधिकारों का उल्लंघन नहीं

अगर किसी अधिकारी का कोई विशेष योग्यता का क्षेत्र हो या किसी विशेष विभाग का अनुभव हो तो वह लेटरल एंट्री में भी आवेदन कर सकता है। सरकार विपक्ष से सवाल करती है कि क्या वह मानता है कि एससी/एसटी/ओबीसी/ईडबल्यूएस वर्ग के अधिकारियों को कोई योग्यता नहीं हो सकती है क्या? अगर विशेषज्ञता उन्हें हैं तो वह भी तो आवेदन कर सकते हैं।

अभी तक लेटरल एंट्री से नियुक्त कुल 63 अधिकारियों में 35 को छोड़ कर सभी सरकारी उच्चाधिकारी ही थे।  

ये अनुबंध आधारित अस्थायी नियुक्ति हैं

लेटरल एंट्री से आने वाले अधिकारी आईएएस अधिकारियों की तरह स्थायी नियुक्ति पर नहीं आते हैं। बल्कि 3 या 5 साल के बाद उन्हें वापस भेज दिया जाता है।

अनुभव और सिफ़ारिशे

ऐसी नियुक्ति के लिए सिफ़ारिश कई आयोगों ने किया है। 2018 से अभी तक 63 ऐसी नियुक्तियाँ की गई हैं और सभी अधिकारियों ने अच्छा कार्य किया है। अन्य देशों में भी ऐसे सफल प्रयोग हुए हैं।

ऐसी नियुक्ति पहले भी होती रही हैं

ऐसी नियुक्ति बिलकुल नहीं नहीं है। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह इसके सबसे प्रसिद्ध उदाहरण हैं। वह प्रोफेसर थे लेकिन उन्हें उनके वित्तीय विशेषज्ञता का लाभ लेने के लिए सीधे सचिवालय सलाहकार और सचिव बनाया गया था। 

इस भारत में कब शुरू किया गया था?

वर्ष 2018 में भारत सरकार के द्वारा पहली बार लेटरल एंट्री से वैकेंसी की शुरुआत की गई थी। उस समय जाइंट सेक्रेटरी के 10 पदों के विरुद्ध 6077 एप्लीकेशन प्राप्त हुए थे। 2019 में अलग-अलग मंत्रालयों में ऐसी 9 नियुक्तियां हुई। 2021 और 2022 मे फिर ऐसी नियुक्तियाँ हुई। इन चार सालों में ऐसे 63 लोग लेटरल रूप से नियुक्त हो चुके हैं। 2024 में ऐसी 5वीं नोटिफ़िकेशन है यह।

भारत में लेटरल एंट्री की सिफ़ारिश किसने की थी?

सिविल सेवा रिव्यू कमिटी ने 2002 में यह सिफ़ारिश की थी। इसके अध्यक्ष थे योगेन्द्र अलघ।

दूसरी प्रशासनिक सुधार आयोग ने लेटेरल एंट्री की सिफ़ारिश 2005 के अपने रिपोर्ट में किया था। इस आयोग के अध्यक्ष थे कॉंग्रेस के विरप्पा मोइली।

ऐसी नियुक्तियों के लिए 2017 में नीति आयोग ने सरकार को सलाह दी थी। आयोग ने कुछ अधिकारियों को लेटरल एंट्री के जरिए लाने का सुझाव दिया था।

इसके बाद ही 2018 से ऐसी नियुक्ति शुरू की गई।

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