संविदा में भूल के विधिक परिणाम क्या हैं?- Part 16 (सेक्शन 20, 21, 22)

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संविदा पर भूल (mistake) का प्रभाव   

संविदा में भूल का प्रभाव निर्णायक होता है। The Indian Contract Act का सेक्शन 20, 21 और 22 संविदा करने मे हुए भूलों के विधिक परिणामों से संबंधित है।

सेक्शन 20 उस स्थिति के विषय में बताता है जब दोनों ही पक्षों से तथ्य संबंधी किसी भूल हुई हो। ऐसी संविदा शून्य (void) होती है। सेक्शन 21 उन भूलों के बारे में उपबंध करता है जो विधि की (mistake of law) हो। जबकि सेक्शन 22 उस स्थिति के लिए है जब भूल किसी एक पक्ष को हुआ हो।

संविदा में भूल (mistake) का क्या आशय होता है?

अगर संविदा का कोई एक पक्षकार या दोनों ही पक्षकार किसी भूल के कारण इसके लिए सहमति देते है, अगर ये भूल नहीं होती तो वे संभवतः सहमति नहीं देते। ऐसी स्थिति में यह सहमति स्वतंत्र नहीं मानी जाएगी। यह भूल कई तरह की हो सकती है, जैसे:

1. जब बात तो एक ही हो लेकिन दोनों पक्ष उसका आशय अलग-अलग समझ रहे हो

अर्थात एक ही बात पर एक ही अर्थ में मतैक्य नहीं हो– सेक्शन 13 के अनुसार अगर दोनों पक्ष एक ही भाव में एक ही वस्तु पर सहमत नहीं तो उनके द्वारा दी गई सहमति वास्तव में सहमति नहीं मानी जाएगी। ऐसी स्थिति में दोनों में मस्तिष्क का मेल नहीं होता। इसलिए किसी वैध संविदा का निर्माण नहीं होता है अर्थात यह संविदा शून्य (void) होगी ।

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2. करार के लिए आवश्यक विषय (तथ्य) के बारे में भूल (mistake of facts)

1.  दोनों पक्ष भूल कर रहे हों– सेक्शन 20 के अनुसार अगर दोनों पक्षकारों को करार के किसी मर्मभूत तथ्य के विषय में भूल हो, तो वह करार शून्य होगा। लेकिन इस सेक्शन के स्पष्टीकरण के अनुसार अगर केवल मूल्य के विषय में गलत राय हो तो यह तथ्य की भूल नहीं समझी जाएगी। सेक्शन 20 दोनों पक्षकारों के द्वारा भूल के विषय में प्रावधान करता है।

2. कोई एक पक्षकार भूल कर रहा हो– सेक्शन 22 स्पष्ट करता है कि अगर तथ्य की भूल कोई एक पक्षकार करता है तो संविदा इस कारण शून्यकरणीय नहीं होगी। लेकिन यह भूल तथ्य के विषय में होना चाहिए न कि विधि के विषय में। विधि के भूल के विषय में सेक्शन 21 उपबंध करता है।

3. विधि के विषय में भूल (mistake of law)

सेक्शन 21 के अनुसार यदि भारत में लागू किसी कानून के विषय में भूल के कारण कोई सविदा की गई है तो वह शून्यकरणीय नहीं होगी। पर अगर ऐसी भूल किसी विदेशी विधि के विषय में हो तो इसका वही प्रभाव होगा जैसा तथ्य के भूल का होता है।   

करार के लिए मर्मभूत भूल (mistake essential to the agreement) का क्या आशय है?

सेक्शन 20 के अनुसार अगर दोनों पक्ष तथ्य संबंधी किसी भूल के कारण करार के लिए अपनी सहमति देते हैं तो यह करार शून्य होगा बशर्ते वह भूल करार के लिए मर्मभूत हो। मर्मभूत शब्द का सामान्य आशय होता है ऐसा तथ्य जिससे संविदा के स्वरूप में परिवर्तन आ जाता।

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उदाहरण के लिए अगर केवल विषय वस्तु के किसी गुण के बारे में कोई भूल हो तो उसे मर्मभूत भूल नहीं कहा जाएगा और ऐसी भूल के अंतर्गत दी गई सहमति करार को शून्य नहीं बनाएगी। विभिन्न न्यायायिक निर्णयों में निम्न को मर्मभूत भूल माना गया है-

  1. विषय वस्तु के विद्यमानता के संबंध में भूल;
  2. संविदा के पालन की संभावना के विषय में भूल (mistake as to the possibility);
  3. हक की भूल (mistake as to title)
  4. वचन की भूल (mistake as to promise)
  5. पक्षकारों की पहचान की भूल (mistake as to the identity of the parties)
  6. किसी तात्विक तथ्य की विद्यमानता की भूल (mistake as to the existence of a material fact) – यदि भूल संविदा के किसी मर्मभूल तथ्य के विषय में है तो करार शून्य होगी लेकिन अगर भूल संविदा की विषय-वस्तु से संबंधित किसी तात्विक तथ्य की विद्यमानता से संबंधित नहीं है तो संविदा की विधिमान्यता उससे प्रभावित नहीं होगी (बेल बनाम लीवर ब्रदर्स लि.– 1932 AC 161)।
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