भारत में दहेज निरोधक कानून

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दहेज निरोधक कानून द्वारा पहली बार दहेज लेना और देना दोनों गैर कानूनी घोषित किया गया। फिर भी दहेज संबंधी मृत्यु और उत्पीड़न मे वृद्धि हुई। इस कारण 1985 ई में इस अधिनियम संशोधन किया गया।

दहेज निरोधक कानून में इस संसोधन द्वारा जो नए प्रावधान जोड़े गए उनमे सबसे महत्वपूर्ण यह है कि वर और वधू दोनों पक्षों को शादी के समय मिले उपहारों की एक लिस्ट बनानी होगी जिसमें उपहार का मूल्य, देने वाले का नाम तथा उसका वर और वधू से संबंध लिखना होगा । इस पर दोनों पक्षों के हस्ताक्षर होने चाहिए। पर व्यवहार मे बहुत ही कम शादियों में ऐसी लिस्ट बनाई जाती है ।

दहेज के संबंध मे लोगों के मन में सामान्यतया जो सवाल उठते हैं, वे है –

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आईपीसी में दहेज उत्पीड़न के विरुद्ध प्रावधान

क्या पत्नी से किया गया किसी भी तरह की मांग, चाहे वह पैसे का हो, या किसी सामान का, दहेज की मांग या गैर कानूनी मांग माना जाएगा?

इसका जवाब है नहीं, ऐसे मामले कोर्ट के सामने आए हैं जब पति एवं सास-ससुर ने पत्नी एवं उसके माता-पिता पर पैसे देने के लिए दवाब बनाया । एक ऐसा ही मामला था शोभा रानी बनाम मधुकर रेड्डी [1988 AIR 121] का । इस मामले मे सुप्रीम कोर्ट का जज़मेंट आया था 12 नवंबर, 1987 को। इस मामले में हाई कोर्ट का मानना था कि पति द्वारा आवश्यकता होने पर अपने व्यक्तिगत उपयोग के लिए पत्नी से पैसों की मांग करना गैरकानूनी नहीं है क्योंकि पति और पत्नी दोनों को आवश्यकता के समय एक-दूसरे की मदद करनी चाहिए ।

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लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस तर्क को उलट दिया । सुप्रीम कोर्ट का तर्क था कि जब दहेज कि मांग करना अपने आप मे गैर कानूनी है तो ‘पति को पैसो कि “आवश्यकता” इसे सही कैसे बना सकता है। पर पति द्वारा अपने ससुराल के रिश्तेदारों से आवशयकता के समय पैसो का सामान्य लेनदेन दहेज के अंतर्गत नहीं आता है।

अगर शादी के तुरंत बाद दहेज की मांग नहीं की जाती है लेकिन कुछ सालों बाद ऐसी मांग की जाती है। क्या यह मांगे भी दहेज के परिभाषा में आती है ?

पंजाब राज्य बनाम दलजीत सिंह [1999 Cri LJ 2723] मामले में शादी के बाद चार सालों तक सब कुछ सामान्य रहा । कभी कोई मांग नहीं की गई थी । पर शादी के 4 साल बाद पति को किसी काम के लिए पैसे की जरुरत हुई । अब वह पत्नी पर मायके से पैसे लाने के लिए दवाब बनाने लगा । मांग पूरी नहीं होने पर प्रताड़णा बढ़ती गई । इस से तंग आकर पत्नी ने आत्महत्या कर ली । पति को दहेज उत्पीड़न के लिए IPC की धारा 498A के तहत सजा दी गई ।

दहेज के लिए उत्पीड़ित होने वाली महिलाओं की सहायता के लिए क्या महत्वपूर्ण कानूनी प्रावधान है ?

इसके लिए सबसे महत्वपूर्ण प्रावधान इंडियन पीनल कोड अर्थात भारतीय दंड संहिता के सेक्शन 498A मे है । यह सेक्शन किसी महिला के पति या उसके किसी रिश्तेदार द्वारा महिला के प्रति दहेज के लिए क्रूरता के लिए दंड की व्यवस्था करता है। इसमें शारीरिक और मानसिक दोनों तरह की क्रूरता शामिल है।

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आईपीसी की ये धाराएँ 1961 के दहेज निरोधक कानून के अतिरिक्त है। 1961 के दहेज निरोधक कानून में मुख्य रूप से दहेज और इससे संबंधी अपराधों को परिभाषित किया गया है। 

 IPC की धारा 498A के तहत क्रूरता किसे माना जाता है अर्थात इसमें किस-किस तरह की क्रूरता शामिल होती है ?

पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा जानबूझकर किया गया कोई भी ऐसा कार्य जो महिला के जीवन, स्वस्थ्य, या उसके किसी अंग को क्षति पहुंचाए, इस धारा के तहत क्रूरता माना जाता है । इसमे किसी गैर कानूनी मांग के लिए महिला पर दवाब डालना या उसे प्रताड़ित करना भी इसमे शामिल है।

दहेज मृत्यु क्या है ? दहेज मृत्यु मे किस-किस तरह कि मृत्यु शामिल होती है ? केवल हत्या या आत्महत्या भी दहेज मृत्यु माना जाता है ? दहेज मृत्यु सामान्य मृत्यु से किस तरह अलग है ?

दहेज मृत्यु मे मृतक और अपराधी दोनों एक ही घर मे रहते है। ऐसे मे पुलिस तक सूचना पहुचने से पहले ही अपराधी सारे सबूत मिटा देते हैं । अतः हत्या के लिए सामान्यतः जो प्रक्रिया है, उसके तहत दहेज हत्या को साबित करना बहुत ही मुश्किल होगा और अपराधी बच जाएंगे। इसलिए IPC में संसोधन कर धारा 304 बी समाविष्ट किया गया है ।यह धारा अपराध की एक अलग श्रेणी “दहेज मृत्यु” (dowry death) की व्यवस्था करता है।

              आईपीसी की धारा 304B के अनुसार अगर किसी महिला की मृत्यु किसी तरह से जलने या किसी तरह के शारीरिक जख्म से होती है, तो उसे दहेज मृत्यु माना जाता है, इस के लिए केवल दो शर्ते हैं –

पहला, मृत्यु शादी के सात वर्षो क अंदर हुआ हो । लेकिन सुप्रीम कोर्ट का निर्णय है कि सात साल की समय सीमा कोई बहुत सख्त नहीं है। अगर पर्याप्त साक्ष्य हो, तो सात साल के बाद होने वाली मृत्यु को भी दहेज मृत्यु माना जा सकता है।
दूसरा, महिला को मृत्यु से पहले पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा दहेज के लिए प्रताडित किया गया हो।

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यह हत्या हो सकती है, आत्महत्या हो सकती है, या यह भी हो सकता है कि मृत्यु के सही कारणों का पता ही नहीं चले । कई बार ऐसा होता है जब पुलिस को सूचना मिलती है, उससे पहले ही ससुराल वाले लाश को जला देते हैं । ऐसे मैं मृत्यु के सही कारणों का पता नहीं चल पाता। ऐसे केस भी दहेज मृत्यु ही माने जाते है।

आईपीसी में दहेज मृत्यु के अपराधियों के लिए सजा कि अवधि क्या है ?

                  दहेज मृत्यु की अपराधियों के लिए सजा की अवधि होती है कम से कम 7 साल, जो आजीवन कारावास तक हो सकता है।

  दहेज निरोधक कानून बनने के लगभग छह दशक बाद भी दहेज संबंधी अपराध रुके नहीं है। इसलिए आईपीसी में भी दहेज निरोधक प्रावधान किए गए है। फिर भी आज भी बड़ी संख्या में दहेज उत्पीड़न और साथ ही दहेज निरोधक कानून के दुरुपयोग के मामले आ रहे हैं। 

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