साधारण अपवाद: आवश्यकता, सहमति- part 4.4

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साधारण अपवाद का आशय है ऐसा अपवाद जो सामान्य या साधारण रूप से आईपीसी के सभी अपराधों के लिए लागू होता हो, भले ही उस धारा में अलग से इसका उल्लेख हो या न हो (धारा 6)। ये आपराधिक दायित्व से बचाव प्रदान करते हैं। चैप्टर 4 में जिन साधारण अपवादों का उल्लेख है उनमें अन्य के साथ-साथ आवश्यकता और सहमति भी प्रमुख है।  

आवश्यकता (necessity) (धारा 81, 92)

81. कार्य जिससे अपहानि कारित होना संभाव्य है, किन्तु जो आपराधिक आशय के बिना और अन्य अपहानि के निवारण के लिए किया गया है- कोई बात केवल इस कारण अपराध नहीं है कि वह यह जानते हुए की गई है कि उससे अपहानि होना संभाव्य है, यदि वह अपहानि कारित करने के किसी आपराधिक आशय के बिना और व्यक्ति और सम्पत्ति को अन्य अपहानि का निवारण या परिवर्जन करने के प्रयोजन से सद्भावपूर्वक की गई हो।

स्पष्टीकरण– ऐसे मामलों में यह तथ्य का प्रश्न है कि जिस अपहानि का निवारण या परिवर्जन किया जाना है क्या वह ऐसी प्रकृति की ओर इतनी आसन्न थी कि वह कार्य, जिससे यह जानते हुए कि उससे अपहानि कारित होना संभाव्य है, करने की जोखिम उठाना न्यायानुमत या माफी योग्य था।

दृष्टांत

(क) क, जो एक वाष्प जलयान का कप्तान है, अचानक या अपने किसी कसूर या उपेक्षा के बिना अपने आप को ऐसी स्थिति में पाता है यदि उसने जलयान का मार्ग नहीं बदला तो इससे पूर्व कि वह अपने जलयान को रोक सके वह बीस या तीस यात्रियों से भरी नाव को अनिवार्यतः टकराकर डुबो देगा, और कि अपना मार्ग बदलने में उसे केवल दो यात्रियों वाली नाव ग को डुबोने की जोखिम उठानी पड़ती है, जिसको वह संभवतः बचाकर निकल जाए।

यहाँ यदि क नाव ग को डुबाने के आशय के बिना और ख के यात्रियों के संकट का परिवर्जन करने के प्रयोजन से सद्भावपूर्वक अपना मार्ग बदल देता है तो यद्यपि वह नाव ग को ऐसे कार्य द्वारा टकराकर डुबो देता है, जिससे ऐसे परिणाम का उत्पन्न होना वह संभाव्य जानता था, तथापि तथ्यतः यह पाया जाता है कि कार्य, जिससे परिवर्जित करने का उसका आशय थाए ऐसा था जिससे नाव ग को डुबोने का जोखिम उठाना माफी योग्य है, तो वह किसी अपराध का दोषी नहीं है।

(ख) क एक बड़े अग्निकांड के समय आग को फैलने से रोकने के लिए गृहों को गिरा देता है। वह इस कार्य को मानव जीवन या सम्पत्ति को बचाने के आशय से सद्भावनापूर्वक करता है। यहाँ, यदि यह पाया जाता है कि निवारण की जाने वाली अपहानि इस प्रकृति की ओर इतनी आसन्न थी कि क का कार्य माफी योग्य है तथा क उस अपराध का दोषी नहीं है।

92. सम्मति के बिना किसी व्यक्ति के फायदे के लिए सद्भावपूर्वक किया गया कार्य- कोई बात, जो किसी व्यक्ति के फायदे के लिए सद्भावपूर्वक यद्यपि उसकी सम्मति के बिना, की गई है, ऐसी किसी अपहानि के कारण, जो उस बात से उस व्यक्ति को कारित हो जाये, अपराध नहीं है, यदि परिस्थितियाँ ऐसी हों कि उस व्यक्ति के लिए यह असम्भव हो कि वह अपनी सम्मति देने के लिए असमर्थ हो और उसका कोई संरक्षक या उसका विधिपूर्ण भार-साधक कोई दूसरा व्यक्ति न हो जिससे ऐसे समय पर सम्मति अभिप्राप्त करना सम्भव हो कि वह बात फायदे के साथ की जा सके;

परन्तुक-

पहला– इस अपवाद का विस्तार साशय मृत्यु कारित करने का प्रयत्न करने पर न होगा,

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दूसरा– इस अपवाद का विस्तार मृत्यु या घोर उपहति के निवारण या किसी रोग या अंग शैथिल्य से मुक्त करने के प्रयोजन से भिन्न किसी प्रयोजन के लिए ऐसी किसी बात के करने पर न होगा, जिससे करने वाला व्यक्ति जानता हो कि उससे मृत्यु कारित होना सम्भाव्य है,

तीसरा– इस अपवाद का विस्तार मृत्यु या उपहति के निवारण के प्रयोजन के भिन्न किसी प्रयोजन के लिए स्वेच्छया उपहति कारित करने या उपहति कारित करने के प्रयत्न पर न होगा,

चौथा- इस अपवाद का विस्तार किसी ऐसे अपराध के दुष्प्रेरण पर न होगा जिस अपराध के किए जाने पर इसका विस्तार नहीं है।

दृष्टांत

(क)  य अपने घोड़े से गिर गया और मूर्छित हो गया। क एक शल्य चिकित्सक का यह विचार है कि य के कपाल पर शल्य क्रिया आवश्यक है। क, य की मृत्यु कारित करने का आशय न रखते हुए, सद्भावपूर्वक य के फायदे के लिए, य के स्वयं किसी निर्णय पर पहुँचने से पूर्व ही कपाल पर शल्य क्रिया करता है। क ने कोई अपराध नहीं किया।

(ख)  य को एक बाघ उठा ले जाता है। यह जानते हुए कि सम्भाव्य है कि गोली लगने से य मर जाये, किन्तु य का वध करने का आशय न रखते हुए और सद्भावपूर्वक य के फायदे के लिए क उस बाघ पर गोली चलाता है। क की गोली से य को मृत्यु कारक घाव हो जाता है। क ने कोई अपराध नहीं किया।

(ग) क, एक शल्य चिकित्सक, यह देखता है कि एक शिशु की ऐसी दुर्घटना हो गई है जिसका प्राणांतक साबित होना संभाव्य है, यदि शल्यकर्म तुरन्त न कर दिया जाये। इतना समय नहीं है कि उस शिशु के संरक्षक से आवेदन किया जा सके। क सद्भावपूर्वक शिशु के फायदे का आशय रखते हुए शिशु के अन्यथा, अनुनय करने पर भी शल्यकर्म करता है। क ने कोई अपराध नहीं किया।

(घ)  एक शिशु य के साथ क एक जलते हुए गृह में है। गृह के नीचे लोग एक कम्बल तान लेते हैं। क उस शिशु को यह जानते हुए भी कि सम्भाव्य है कि गिरने से वह मर जाए किन्तु उस शिशु को मार डालने का आशय न रखते हुए और सद्भावपूर्वक शिशु के फायदे के आशय से उसे गृह के छत से नीचे गिरा देता है। यहाँ यदि गिरने से वह शिशु मर भी जाता है, तो भी क ने कोई अपराध नहीं किया।

स्पष्टीकरण- केवल धन सम्बन्धी फायदा वह फायदा नहीं है, जो धारा 88ए 89 और 92 के भीतर आता है।

आवश्यकता आपराधिक दायित्व से सुरक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण साधारण अपवाद है। इसका आशय यह है कि अगर कोई कार्य किसी व्यक्ति के हित के लिए आवश्यक हो। तो उसके लिए कोई ऐसा कार्य करना पड़े जिससे उस व्यक्ति को कोई ख़तरा हो, तो भी यह कार्य विधिमान्य होगा।

आईपीसी की धारा 92 किसी रोगी का जीवन बचाने के लिए उसका जीवन खतरे में डालना या किसी पीड़ा के मुक्ति के लिए पीड़ा पहुँचाने के लिए किए गए किसी ऐसे कार्य को आपराधिक दायित्व से सुरक्षा के लिए साधारण अपवाद है और जो धारा 88 (किसी व्यक्ति के फायदे के लिए सद्भावपूर्वक दिया गया सम्मति जिसमें मृत्यु का आशय न हो) या 78 (न्यायालय के निर्णय या आदेश के अनुसारण में किया गया कार्य) में नहीं आते हैं।

इसके पीछे सिद्धांत धारा 89 जैसे ही हैं। दोनों में मुख्य अंतर यह है कि जहाँ धारा 89 में संरक्षक की सहमति होती है वहीं धारा 92 में ऐसा नहीं होता है। चूँकि सहमति लेना संभव नहीं होता है और वह कार्य किया जाना आवश्यक है इसलिए सहमति को विवक्षित मानते हुए धारा 92 कार्य की अनुमति देता है। अर्थात स्पष्ट सहमति नहीं होने पर भी यह साधारण अपवाद में शामिल है।   

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धारा 92 के लागू होने के लिए अर्थात इस धारा के तहत साधारण अपवाद का बचाव लेने के लिए ये अनिवार्य अवयव हैं–

  1. कार्य उस व्यक्ति के फायदे के लिए हो;
  2. कार्य सद्भावनापूर्वक किया गया हो;
  3. परिस्थिति के अनुरूप कार्य युक्तिसंगत होना चाहिए;
  4. कार्य बिना उसकी सहमति के या उसके बदले किसी अन्य व्यक्ति की सहमति के बिना किया गया हो–

(1) यदि परिस्थितियाँ ऐसी हो कि उस व्यक्ति के लिए सम्मति देना असंभव हो, या

(2) सहमति देने में असक्षम व्यक्ति का कोई संरक्षक या संरक्षक का विधितः प्रभार धारण करने वाले किसी व्यक्ति से सहमति लेना भी संभव न हो

इसका स्पष्टीकरण बताता है कि धारा 92 निम्नलिखित मामलों में लागू नहीं होगा अर्थात साधारण अपवाद का बचाव नहीं लिया जा सकेगा-

1. साशय मृत्यु कारित करने

2. कोई ऐसा कार्य जिसे कर्ता जानता था कि मृत्यु कारित हो सकती है, निम्नलिखित के अतिरिक्त किसी प्रयोजन हेतु:

(1) मृत्यु या गंभीर चोट को अपवर्जित करने हेतु, या

(2) किसी घातक बीमारी या व्याधि के उपचार के लिए

3.  मृत्यु या चोट को अपवर्जित करने के अतिरिक्त अन्य किसी उद्देश्य हेतु स्वेच्छापूर्वक चोट कारित करना या कारित करने का प्रयास करना

सहमति (consent) (धारा 87-91)

सेक्शन 87सम्मति से किया गया कार्य जिससे मृत्यु या घोर उपहति कारित करने का आशय न हो और न उसकी संभाव्यता का ज्ञान हो कोई बात, जो मृत्यु या घोर उपहति कारित करने के आशय से न की गई हो और जिसके बारे में कर्त्ता को यह ज्ञान न हो कि उससे मृत्यु या घोर उपहति कारित होना सम्भाव्य है, किसी ऐसे अपहानि के कारण अपराध नहीं है, जो उस बात को अठारह वर्ष से अधिक के आयु के व्यक्ति को, जिसने अपहानि सहन करने को चाहे अभिव्यक्त चाहे विवक्षित सम्मति दे दी हो, कारित हो या कारित होना कर्त्ता द्वारा आशयित हो अथवा जिसके बारे में कर्त्ता को ज्ञात हो कि वह उपर्युक्त जैसे किसी व्यक्ति को, जिसने उस अपहानि को उठाने की सम्मति दे दी है, उस बात द्वारा कारित होना सम्भाव्य है। दृष्टांत क और य आमोदार्थ आपस में पटेबाजी करने को सहमत होते हैं। इस सहमति में किसी अपहानि को, जो ऐसे पटेबाजी में खेल के नियम के विरूद्ध न होते हुए कारित हो, उठाने की हर एक की सम्मति विवक्षित है, और यदि क यथानियम पटेबाजी करते हुए य को उपहति कारित कर देता है, तो क कोई अपराध नहीं करता है।  
सेक्शन  88किसी व्यक्ति के फायदे के लिए सम्मति से सद्भावपूर्वक किया गया कार्य जिससे मृत्यु कारित करने का आशय नहीं है कोई बात, जो मृत्यु कारित करने के आशय से न की गई हो, किसी ऐसी अपहानि के कारण अपराध नहीं है जो उस बात से किसी व्यक्ति को, जिसके फायदे के लिए वह बात सद्भावर्पूक की जाये और जिसने उस अपहानि को सहने, या उस अपहानि की जोखिम उठाने के लिए चाहे अभिव्यक्त चाहे विवक्षित सम्मति दे दी हो, कारित हो या कारित करने का कर्त्ता का आशय हो या कारित होने की सम्भाव्यता कर्त्ता को ज्ञात है। दृष्टांत क, एक शल्य चिकित्सक, यह जानते हुए कि एक विशेष शल्यकर्म से य को, जो वेदनापूर्ण व्याधि से ग्रस्त है, मृत्यु कारित होने की सम्भाव्यता है, किन्तु य की मृत्यु कारित करने का आशय न रखते हुए और सद्भावपूर्वक य के फायदे के आशय से, य की सम्मति से य पर वह शल्यकर्म करता है। क ने कोई अपराध नहीं किया है।  
सेक्शन  89संरक्षक द्वारा या उसकी सम्मति से शिशु या उन्मत्त व्यक्ति के फायदे के लिए सद्भावपूर्वक किया गया कार्य कोई बात, अपराध बारह वर्ष से कम आयु के या विकृतचित्त  व्यक्ति के फायदे के लिए सद्भावपूर्वक उसके संरक्षक या विधिपूर्ण भारसाधक किसी दूसरे व्यक्ति के द्वारा, या कि अभिव्यक्त या विवक्षित सम्मति से, की जाये, किसी अपहानि के कारण, अपराध नहीं है जो उस बात से उस व्यक्ति को कारित हो, या कारित करने का कर्त्ता का आशय हो या कारित हो या कारित हाने की सम्भाव्यता कर्त्ता को ज्ञात होः परन्तुक- परन्तु- पहला– इस अपवाद का विस्तार साशय मृत्यु कारित करने या मृत्यु कारित करने का प्रयत्न करने पर न होगा; दूसरा– इस अपवाद का विस्तार मृत्यु या घोर उपहति के निवारण के या किसी घोर रोग या अंग शैथिल्य से मुक्त करने के प्रयोजन से भिन्न किसी प्रयोजन के लिए किसी ऐसी बात के करने पर न होगा जिसे करने वाला व्यक्ति जानता हो कि उससे मृत्यु कारित होना सम्भाव्य है;  तीसरा– इस अपवाद का विस्तार स्वेच्छया घोर उपहति कारित करने या घोर उपहति कारित करने का प्रयत्न करने पर न होगा जब तक कि वह मृत्यु या घोर उपहति के निवारण के, या किसी घोर रोग या अंग शैथिल्य से मुक्त करने के प्रयोजन से न की गई हो; चौथा– इस अपवाद का विस्तार किसी ऐसे अपराध के दुष्प्रेरण पर  न होगा जिस अपराध के किए जाने पर इसका विस्तार नहीं है। दृष्टांत क सद्भावपूर्वक, अपने शिशु के फायदे के लिए शिशु की सम्मति के बिना, यह सम्भाव्य जानते हुए कि शल्यकर्म से उस शिशु की मृत्यु कारित होगी, न कि इस आशय से कि उस शिशु की मृत्यु कारित कर दे, शल्य चिकित्सक द्वारा अपने शिशु की शल्यक्रिया करवाता है। क का उद्देश्य शिशु को रोगमुक्त करना था, इसलिए वह इस अपवाद के अन्तर्गत आता है।  
सेक्शन  90सम्मति, जिसके सम्बन्ध में यह ज्ञात हो कि वह भय या भ्रम के अधीन दी गई है कोई सम्मति ऐसी सम्मति नहीं है जैसी इस संहिता की किसी धारा से आशयित है, यदि वह सम्मति किसी व्यक्ति ने क्षति, भय के अधीन या तथ्य के भ्रम के अधीन दी हो, और यदि कार्य करने वाला व्यक्ति यह जानता हो या उसके पास विश्वास करने का कारण हो कि ऐसे भय या भ्रम के परिणामस्वरूप वह सम्मति दी गई थी; अथवा उन्मत व्यक्ति की सम्मति- यदि वह सम्मति ऐसे व्यक्ति ने दी है जो चित्तविकृति या मत्तता के कारण उस बात की, जिसके लिए वह अपनी सम्मति देता है, प्रकृति और परिणाम को समझने में असमर्थ हो; अथवा शिशु की सम्मति- जब तक संदर्भ से प्रतिकूल प्रतीत न हो, यदि वह सम्मति ऐसे व्यक्ति ने दी हो जो बारह वर्ष से कम आयु का है।  
सेक्शन  91ऐसे कार्यो का अपवर्जन जो कारित अपहानि के बिना भी स्वतः अपराध है धारा 87, 88 और 89 के अपवादों का विस्तार उन कार्यो पर नहीं है जो उस अपहानि के बिना भी स्वतः अपराध है जो उस व्यक्ति को, जो सम्मति देता है, या जिसकी ओर से सम्मति दी जाती है, उन कार्यों से कारित हो, या कारित किए जाने का आशय हो, या कारित होने की संभाव्यता ज्ञात हो। दृष्टांत गर्भपात कराना (जब तक कि उस स्त्री का जीवन बचाने के प्रयोजन से सद्भावपूर्वक कारित न किया गया हो) किसी अपहानि के बिना भी, जो उनसे उस स्त्री को कारित करने का आशय हो, स्वतः अपराध है। इसलिए वह “ऐसी अपहानि के कारण” अपराध नहीं है और ऐसा गर्भपात कराने की उस स्त्री की या उसके संरक्षक की सम्मति उस कार्य को न्यायानुमत नहीं बनाती।

सहमति से किए गए कार्यों के लिए आपराधिक दायित्व से बचाव का साधारण अपवाद मुख्यतः रोमन उक्ति पर आधारित है– ‘‘सहमति से कारित क्षति को क्षति नहीं कहते है‘‘ (volenti non fit injuria)। इस संबंध में दूसरी उक्ति है– ‘‘जो सहमति देता है उसे क्षति नहीं पहुँचती है (he who consents suffers no injury)।

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सहमति द्वारा बचाव दो अवधारणाओं पर आधारित है। पहला, प्रत्येक व्यक्ति अपने हितों का सबसे अच्छा निर्णायक है। दूसरा, कोई भी व्यक्ति जिस कार्य को अपने लिए हानिकारक समझता है उसके लिए सहमति नहीं देगा।

सम्पत्ति के विरूद्ध सभी अपराध अन्य संक्राम्य अधिकारों के विरूद्ध अपराध है। ऐसे अपराध यदि स्वामी की सहमति से किए जाते हैं तो सिविल तथा आपराधिक दोनों ही प्रकार की कार्यवाहियों के लिए बचाव है यानि साधारण अपवाद है। किंतु मानव शरीर के विरूद्ध अपराध के मामले में सहमति का सिद्धांत एक सीमित प्रतिरक्षा है क्योंकि जीवित रहना अधिकार ही नहीं बल्कि दायित्व भी है।

अतः सहमति सम्पत्ति के विरूद्ध अपराधों के लिए एक अच्छा बचाव है परन्तु मानव शरीर के विरूद्ध अपराधों में मृत्यु या गंभीर चोट कारित करने के अलावा अन्य में बचाव है।

धारा 87, 88 और 89 साधारण अपवाद सम्पत्ति संबंधी अपराध तथा बलात्संग संबंधी अपराधों से संबंधित नहीं है क्योंकि इनमें अपराध गठित करने के लिए सहमति महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है और अपराधों को शून्य बना देती है।

धारा 300 का अपवाद 5 सम्मति से कारित मृत्यु को हत्या से अपवादित करता है। धारा 314 सहमति से किए गए कार्य के लिए आपराधिक दायित्व से प्रतिरक्षा नहीं होने के लिए एक और स्थिति का उपबंध करता है, वह है गर्भपात।

धारा 314 गर्भपात कारित करने के आशय से किए गए कार्यों द्वारा कारित मृत्यु के लिए दण्ड का प्रावधान करता है। गर्भपात अगर उस महिला की सहमति से हुआ हो तो 10 वर्ष और अगर बिना सहमति से हुआ है तो आजीवन कारावास के दण्ड का प्रावधान है।

दी गई सहमति उपखण्डित की जा सकती है अर्थात् इसे वापस लिया जा सकता है लेकिन ऐसा तभी किया जा सकता है जबकि वह कार्य आरंभ नहीं हुआ हो अर्थात् सहमति के अधीन एक बार कार्य आरंभ होने के बाद सहमति वापस नहीं ली जा सकती है।

धारा 87

इस धारा के अनिवार्य अवयव निम्नलिखित हैं अर्थात् इन तत्वों की उपस्थिति साबित होने पर ही किसी व्यक्ति को उसके आपराधिक दायित्व से मुक्ति (साधारण अपवाद) मिल पाएगा–

(1) क्षति किसी व्यक्ति को उसकी सहमति से कारित की गई है;

(2) क्षति कारित करते समय इस बात का न तो आशय था और न ही ज्ञान था कि इस कार्य से मृत्यु या गंभीर चोट कारित हो सकती है;

(3) सहमति देने वाला 18 वर्ष से अधिक आयु का है;

(4) समति स्पष्ट या विवक्षित हो सकती है।

धारा 88

इस धारा के लिए अनिवार्य अवयव है–

(1)  कार्य उस व्यक्ति की सहमति से किया गया है, किस वह अपहानि सहन करेगा;

(2)  सहमति अभिव्यक्त या विवक्षित हो सकती है;

(3)  कार्य सद्भावपूर्वक किया गया है भले ही उसे कारित करते समय यह आशय रहा हो कि ऐसी अपहानि करित हो सकती है जिससे मृत्यु संभाव्य है;

(4)  इस लाभ का आशय आर्थिक लाभ नहीं है।

धारा 87 और 88 में अंतर
 धारा 87धारा 88
 मृत्यु और घोर उपहति के अतिरिक्त कोई भी उपहति कारित की जा सकती है।मृत्यु के अतिरिक्त कोई भी क्षति कारित की जा सकती है।
 सहमति देने वाले की आयु 18 वर्ष से अधिक होनी चाहिए।इसमें आयु का उल्लेख नहीं है।

धारा 89:

इस धारा के तहत साधारण अपवाद का इस के लेने के लिए अनिवार्य अवयव हैं:

(1)  कार्य 12 वर्ष से कम आयु के शिशु या विकृत चित्त व्यक्ति के लाभ के लिए किया गया हो;

(2)  कार्य सद्भावपूर्वक किया गया हो;

(3)  कार्य अभिभावक द्वारा, या अभिभावक की सहमति से या उस व्यक्ति पर विधिक अधिकार रखने वाले व्यक्ति द्वारा किया गया हो;

(4)  सहमति या तो अभिव्यक्त हो या विवक्षित।

धारा 90:

इस धारा का उद्देश्य यह है कि जहाँ सहमति किसी आपराधिक आरोप के लिए बचाव प्रदान करती है, वहाँ वह सहमति वास्तविक होनी चाहिए और अव्यस्कता, गलत अवधारणा, भ्रम, भय अथवा धोखे इत्यादि द्वारा दूषित नहीं होनी चाहिए। सहमति बचाव का आधार तभी हो सकता है जब ऐसे व्यक्ति द्वारा स्वतंत्रतापूर्वक दी जाय जो सहमति देने के लिए विधिक रूप से सक्षम हो।

यह धारा पाँच तरह की सहमति को वास्तविक सहमति नहीं मानने का प्रावधान करती है और इसे बचाव का आधार नहीं बनाती है। ये हैं:

  1. अपहानि के भय से दी गई सहमति;
  2. तथ्य के भ्रम के अन्तर्गत दी गई सहमति;
  3. विकृतचित्त व्यक्ति द्वारा दी गई सहमति;
  4. मत्त व्यक्ति द्वारा दी गई सहमति;
  5. 12 वर्ष से कम आयु के बच्चे द्वारा दी गई सहमति।

धारा 91:

यह धारा उस कार्य के लिए सहमति को साधारण अपवाद नहीं बनाता है जो कार्य अपहानि के बिना भी एक अपराध हो। इसका कारण यह है कि सहमति केवल उस कार्य को क्षमा योग्य बनाता है जो कार्य अन्यथा अपराध होता लेकिन इस कार्य द्वारा अपहानि सहने के लिए कोई व्यक्ति स्वतंत्र सहमति देता है और इसलिए यह अपराध क्षम्य हो जाता है।

इसलिए जो अपराध किसी अपहानि के बिना भी स्वतः अपराध है उसे सहमति से प्रतिरक्षा नहीं मिल सकता है। भारत में जो अपराध किसी अपहानि के बिना भी स्वतः अपराध है, उनमें शामिल हैं– गर्भपात कराना, लोक न्यूसेंस, लोक सुरक्षा एवं नैतिक आचरण के विरूद्ध अपराध कारित करना इत्यादि। इस तरह धारा 91 धारा 87, 88 और 89 में वर्णित साधारण अपवाद का एक प्रकार से अपवाद है।

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