शून्य संविदा और शून्यकरणीय संविदा क्या है? (सेक्शन 10, 14, 19A, 20, 23-30)- Part 18

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शून्य और शून्यकरणीय संविदा

शून्य और शून्यकरणीय संविदा ऐसी संविदाएँ हैं जो विधिक रूप से मान्य संविदा की सभी शर्तों को पूरा नहीं करती। शून्य संविदा किसी विधिक अर्हता को पूरा नहीं कर पाने के कारण अपनेआप शून्य यानि अप्रभावी होती है। इससे किसी तरह के अधिकार या दायित्व नहीं उत्पन्न होते हैं।

शून्य संविदा से भिन्न शून्यकरणीय संविदा ऐसी संविदाएँ होती है आरंभ में वैध संविदा थी लेकिन अगर कोई एक पक्ष चाहे तो उसे शून्य घोषित करवाने के लिए न्यायालय से माँग कर सकता है। अगर न्यायालय इसे शून्य घोषित कर देती है तो उस समय से वह शून्य हो जाएगा। लेकिन ऐसा घोषित होने से पहले यह वैध संविदा होता है।

शून्य और शून्यकरणीय संविदा दोनों के ऐसा मानने के आधार अलग-अलग हैं।

शून्य संविदा (void contract) क्या है?

शून्य संविदा का अर्थ है ऐसा संविदा जो विधि की दृष्टि में संविदा नहीं हो यानि जिसे उस देश का कानून संविदा नहीं मानता हो। इसलिए इससे कोई दायित्व या अधिकार की उत्पत्ति भी नहीं होता है। इसका आशय यह हुआ कि एक वैध संविदा के विपरीत ऐसे संविदा को लागू करने के लिए इसके पक्षकार न्यायालय में दावा नहीं कर सकते।      

न्यायिक निर्णयों से यह स्पष्ट है कि अवयस्क द्वारा किया गया संविदा आरंभतः शून्य (void ab initio) होता है। सेक्शन 23 विधिविरुद्ध उद्देश्य या प्रतिफल होने पर संविदा को शून्य घोषित करता है। सेक्शन 20 के अनुसार अगर दोनों पक्षकार तथ्य संबंधी किसी भूल के कारण कोई करार कर ले, तो वह शून्य माना जाएगा। सेक्शन 24 से 30 तक विशेष रूप से कुछ प्रकार से संविदाओं का उल्लेख है जो शून्य होते है।

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ये संविदाएँ है:  

अगर किसी करार का उद्देश्य और प्रतिफल अंशतः विधि विरुद्ध हो- सेक्शन 24- 1.प्रतिफल के बिना करार- सेक्शन 25 (लेकिन इसके तीन अपवाद हैं–

A. नैसर्गिक प्रेम और स्नेह के कारण दिया गया वचन (1) निकट संबंधी (2) नैसर्गिक प्रेम और स्नेह के कारण (3) वचन लिखी एवं रजिस्ट्रीकृत होना चाहिए।  

B. पूर्वकालिक स्वेच्छिक सेवा के लिए प्रतिकर

C. काल अवरोधित ऋण 2. विवाह का अवरोधक करार– सेक्शन 26 3. व्यापार का अवरोधक करार– सेक्शन 27 4. विधिक कार्यवाहियों का अवरोधक करार– सेक्शन 28 (इसके ये अपवाद हैं–  

  1. भविष्य के विवाद को माध्यस्थम (mediation) को निर्देशित करने की संविदा
  2. उपस्थित प्रश्नों को माध्यस्थम (mediation) को निर्देशित करने की संविदा। ये अपवाद 1997 के संशोधन द्वारा जोड़े गए हैं।
  3. विधिक कार्यवाहियों के अत्यंतिकतः अवरोधक करार– शून्य, विधिक कार्यवाही के लिए समय 4. परिसीमित करने वाला करार– परिसीमा अधिनियम (Limitation Act) के विरुद्ध होने पर शून्य होगा।

5. ऐसा करार जिसका अर्थ निश्चित नही है– सेक्शन 29
6. पंध्यम (wager) से उत्पन्न करार– सेक्शन 30
[पंद्यम करार (wagering agreement) के आवश्यक तत्व–  

  1. पक्षकारों में किसी अनिश्चित घटना के लिए विभिन्न मत (opposite views about an uncertain event)
  2. पक्षकारों के जीतने या हारने की संभावनाएँ (chances of gain or lose to the parties)
    शर्त की राशि के अलावा घटना में और कोई अन्य स्वार्थ नहीं (no other interest in the event except the amount of bet)। पंद्यम करार यद्यपि शून्य होते हैं लेकिन इनके सांपार्श्विक व्यवहार (collateral transactions) विधिमान्य हो सकते हैं अगर वे इस प्रकृति के नहीं हो तो।
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इनके अतिरिक्त न्यायालयों ने विभिन्न वादों में इन करारों को भी शून्य माना है–   

1. अनुरक्षण और जायांश-क्रय करार (agreement of maintenance and champerty);
2. किसी शत्रु के साथ व्यापार करना (trading agreement with an enemy);
3. विवाह की दलाली की संविदा (marriage brokerage contract);
4. लोक सेवा को क्षति पहुँचाने वाला करार (agreement tending to injure the public service) इत्यादि।

प्रतिफल (consideration) के बिना करार कब शून्य होता है?

सेक्शन 25 के अनुसार कोई भी ऐसा करार जिसमे प्रतिफल नहीं दिया गया हो, विधिक दृष्टि से शून्य होगा। लेकिन इसी सेक्शन में इसके अपवाद भी दिए गए है जहाँ प्रतिफल नहीं होने पर भी करार वैध होगा। ये अपवाद हैं:

  1. प्रतिफल के बिना विधिमान्य करार के अपवाद (धारा 25)
  2. नैसर्गिक प्रेम और स्नेह के कारण दिया गया वचन [(1) निकट संबंधी (2) नैसर्गिक प्रेम और स्नेह के कारण (3) वचन लिखी एवं रजिस्ट्रीकृत होना चाहिए।]
  3. पूर्वकालिक स्वेच्छिक सेवा के लिए प्रतिकार
  4. काल अवरोधित ऋण चुकाने का वचन

अगर किसी संविदा का उद्देश्य और प्रतिफल दोनों ही या कोई एक आंशिक रूप से विधि विरुद्ध हो तो उस संविदा की विधिक स्थिति क्या होगी?

सेक्शन 23 विधि विरुद्ध प्रतिफल और उद्देश्य को परिभाषित करता है, साथ ही यह भी बताता है कि किसी सविदा का उद्देश्य या प्रतिफल दोनों में से कोई एक विधिविरुद्ध होने की स्थिति में वह प्रतिफल शून्य होगा। सेक्शन 24 ऐसी स्थिति के लिए उपबंध करता है जब दोनों में से किसी एक का या दोनों का कोई एक भाग विधिविरुद्ध होता है। इस सेक्शन और विभिन्न न्यायिक निर्णयों से यह स्पष्ट है कि इस तरह से संविदा को दो भागों में रखा गया है-

  1. अगर विधिविरुद्ध भाग इस प्रकृति का हो कि इसे शेष भाग से अलग किया जा सके तो वह भाग शून्य और शेष भाग वैध रहेगा;
  2. विधिविरुद्ध भाग इस प्रकृति का हो कि इसे शेष भाग से अलग नहीं किया जा सके तो समस्त संविदा शून्य यानि अविधिमान्य होगा।
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शून्यकरणीय (voidable contract) संविदा क्या है?

ऐसी संविदा जो शून्य संविदा की तरह आरंभ से ही शून्य नहीं होती है लेकिन अगर इसका कोई पक्षकार चाहे तो वह इसे न्यायालय से शून्य घोषित करवा सकता है। शून्य घोषित हो जाने पर इसका विधिक दृष्टि से कोई महत्व नहीं होगा यानि किसी तरह का दायित्व या अधिकार इससे उत्पन्न नहीं होगा। लेकिन जब तक ऐसा नहीं किया जाय तब तक यह पूर्णतः विधिक होगा।

सेक्शन 10 एक वैध करार के लिए स्वतंत्र सहमति को अनिवार्य बनाता है। लेकिन अगर किसी संविदा के लिए सहमति स्वतंत्र नहीं हो, जैसा कि सेक्शन 14 में परिभाषित किया गया है तो वह सेक्शन 19 के अनुसार शून्यकरणीय होगा। यानि जिस पक्ष कि सहमति इस प्रकार से (प्रपीड़न, कपट, दुर्व्यपदेशन द्वारा) प्राप्त की गई है वह न्यायालय में जाकर संविदा को शून्य घोषित करवा सकता है।

यद्यपि इसके कुछ अपवाद है जैसे अगर सहमति दुर्व्यपदेशन द्वारा या कपटपूर्ण मौन द्वारा प्राप्त किया जाता है और इस तरह सहमति देने वाले पक्ष के पास इसका अवसर होता है कि वह मामूली तत्परता से इसका पता लगा सकता था, तो ऐसी स्थिति में वह संविदा शून्यकरणीय नहीं होगी। इसका दूसरा अपवाद यह है कि अगर वह कपट या दुर्व्यपदेशन के कारण सहमति नहीं दी गई हो तो भी संविदा इस आधार पर शून्यकरणीय नहीं है।

सेक्शन 19A असम्यक प्रभाव (undue influece) के कारण किए जाने वाले संविदा को शून्य करने की शक्ति न्यायालय को देता है।

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