संविदा का उन्मोचन: संविदा-भंग द्वारा (सेक्शन 73, 74, 75)-part 22
संविदा-भंग (breach of contract)
संविदा-भंग (breach of contract) क्या होता है?
संविदा-भंग का अर्थ होता है संविदा को तोड़ देना अर्थात इसको मानने यानि इसका पालन करने से मना कर देना। दो पक्षों के बीच विधि द्वारा विधि द्वारा प्रवर्तनीय वचन ही संविदा (contract) कहलाता है।
दोनों पक्ष अपने वचनो का पालन करने के लिए विधि द्वारा बाध्य होते हैं। लेकिन जब कोई पक्षकार अपने (1) संविदात्मक दायित्व या वचन को पूरा करने में असफल रहता है, या (2) कोई ऐसा कार्य करता है कि संविदा का पालन असंभव हो जाए, या (3) संविदा के पालन से इनकार कर देता है, तब कहा जाता है कि उसने संविदा भंग किया है। संविदा-भंग होने पर दूसरे पक्ष को यह अधिकार हो जाता है कि वह विधि द्वारा निर्धारित राहत की माँग करे।
संविदा-भंग दो प्रकार से हो सकता है– (1) वास्तविक, जब निर्धारित तिथि तक संविदा का पालन नहीं किया गया हो, और (2) प्रत्याशित, जब इस तिथि से पहले ही ऐसी स्थिति उत्पन्न कर देता है या दूसरे पक्ष को बता देता है कि वह संविदा का पालन निश्चित तिथि तक नहीं करेगा और संविदा का पालन संभव नहीं रह जाता है। सेक्शन 73 से 75 तक संविदा भंग के परिणामों को बताता है।
प्रत्याशित संविदा भंग (anticipatory breach of contract) का क्या परिणाम होता है?
जब निर्धारित तिथि से पहले ही संविदा का विखंडन कर दिया जाता है, तो उसे प्रत्याशित भंग कहते हैं। सेक्शन 39 के अनुसार इस स्थिति में वचनग्रहिता अगर चाहे तो संविदा को रद्द कर सकता है। लेकिन वह वैसा तभी कर सकता है जब वचनदाता संविदा के पालन से पूर्णतः इनकार कर दे।
अगर वचनदाता ने वचन का कुछ हिस्सा पूरा किया हो और या करने का इच्छुक हो, तो यह संविदा का भंग नहीं कहलाएगा। यदि वचनग्रहीता चाहे तो या तो शब्दों के द्वारा या आचरण के द्वारा इस स्थिति में भी संविदा को बनाए रख सकता है। अगर उसने ऐसा किया हो यानि संविदा को जारी रखा हो, तब वह संविदा भंग के आधार पर इसे रद्द नहीं कर सकता है।
स्पष्टतः वचनदाता द्वारा संविदा-भंग करने पर वचनग्रहीता के पास दो विकल्प होते हैं: (1) वह संविदा को रद्द कर दे, या (2) उसे जारी रखे या निर्धारित तिथि तक प्रतीक्षा करे। पहला विकल्प चुनने पर वचनग्रहीता भी अपने वचन के पालन के लिए बाध्य नहीं होता है और विधिक रूप से यह माना जाता है कि उसके संविदात्मक दायित्व का उन्मोचन हो गया है।
एक बार दूसरा विकल्प चुन लेने के बाद वचनग्रहीता पुनः संविदा को रद्द नहीं कर सकता है, लेकिन इससे उसे जो हानि हुई है उसके लिए प्रतिकार प्राप्त कर सकता है।
उदाहरण के लिए अगर नाट्यगृह को एक प्रबंधक एक गायिका से उसके नाट्यगृह में सात दिन तक प्रतिदिन एक निश्चित राशि पर गाने के लिए संविदा करता है।
गायिका पाँच दिन आई लेकिन छठे दिन अनुपस्थित रही, फिर सातवे दिन आ गई। अब यह उस प्रबंधक के पास दो विकल्प है– या तो वह संविदा भंग कर दे और सातवें दिन उसे गाने की अनुमति नहीं दे।
पहली स्थिति में उसका दायित्व (पैसे देने का) भी समाप्त हो जाएगा लेकिन अगर वह सातवे दिन गाने की अनुमति दे देता है तो इसका अर्थ हुआ कि उसने संविदा को जारी रखने का विकल्प चुना। इस स्थिति में सातवे दिन के लिए निर्धारित राशि उसे देना होगा। पर वह चाहे तो छठे दिन गायिका के नहीं आने पर उसे जो हानि हुई उसके लिए प्रतिकार गायिका से वसूल सकता है।
संविदा भंग (breach of contract) कितने प्रकार का होता है?
संविदा भंग मुख्य रूप से चार प्रकार का हो सकता है:
- तुच्छ संविदा भंग (minor breach);
- तात्त्विक संविदा भंग (material breach);
- मौलिक संविदा भंग (fundamental breach); और
- प्रत्याशित संविदा भंग (anticipatory breach)
1. तुच्छ संविदा-भंग (minor breach): अगर संविदा का कोई पक्षकार संविदागत दायित्व के किसी एक भाग को पूरा करने में असफल रहता है लेकिन पूरे संविदा का पालन करता है। जिस भाग का पालन नहीं होता है वह इस प्रकृति का नहीं होता है जिससे संविदा के स्वरूप प्रभावित नहीं होता है।
2. तात्त्विक संविदा-भंग (material breach): इस तरह संविदा भंग में संविदा का कोई पक्षकार संविदा के उस भाग के पालन मे असफल रहते है जिसकी प्रकृति संविदा के लिए सारवान होती है, लेकिन फिर भी संविदा बिल्कुल निरर्थक नहीं हो जाता और इसका अस्तित्व रहता है।
3. मौलिक संविदा भंग (fundamental breach): इस तरह के संविदा भंग में जिस भाग का पालन नहीं होता है उससे संपूर्ण संविदा ही निरर्थक हो जाती है।
4. प्रत्याशित संविदा-भंग (anticipatory breach): जब निर्धारित तिथि से पहले ही संविदा का विखंडन कर दिया जाता है, तो उसे प्रत्याशित भंग कहते हैं।
संविदा भंग के क्या परिणाम होते हैं?
अथवा, अगर संविदा का एक पक्ष अपने वचन का पालन करने में असफल रहता है तो दूसरे पक्ष के पास क्या विधिक अनुतोष (relief) होता है?
संविदा भंग की स्थिति में दूसरे पक्ष के पास निम्नलिखित अधिकार होते हैं:
1. नुकसानी (damages) या क्षतिपूर्ति प्राप्त करने का अधिकार (सेक्शन 73)
नुकसानी सामान्यतः दो तरह के होते हैं: अनुतोषात्मक नुकसानी (compensatory damages) और दंडात्मक नुकसानी (punitive damages)।
अनुतोषात्मक नुकसानी सबसे सामान्य अनुतोष या राहत है जो न्यायालय संविदा के अपालन से नुकसान सहने वाले किसी पक्षकार को देती है। यह राशि न्यायालय संविदा में निर्धारित किए गए राशि के रूप में तय करती है या वादी पक्षकार को हुए नुकसान के अनुरूप तय करती है।
कभी-कभी कुछ स्थितियों में जब न्यायालय को लगता है कि दूसरे पक्षकार ने जानबूझ कर या उपेक्षा के कारण ऐसा व्यवहार किया यह या संविदा का अपालन किया है जिससे वादी को हानि हुई है, तो वह वादी के पक्ष में अनुतोषात्मक के साथ-साथ दंडात्मक (punitive) नुकसानी के लिए भी आदेश कर सकता है भले ही वह संविदा में उल्लेखित हो या नहीं।
2. विनिर्दिष्ट पालन और व्यादेश (specific performance and injunction):
अगर वादी पक्षकार चाहे, और ऐसा संभव हो, तो वह न्यायालय से प्रतिवादी को संविदा का पालन करने के लिए कोई कार्य करने या किसी कार्य को करने के लिए रोकने (व्यादेश-injunction) के लिए विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम (Specific Relief Act), 1963 के अंतर्गत माँग भी कर सकता है।
3. जितना काम, उतना दाम (quantum meruit):
अगर वादी पक्षकार ने संविदा के अपने हिस्से का कार्य (पूर्णतः या भागतः) कर दिया हो लेकिन दूसरे पक्ष ने अपना कार्य नहीं किया हो या किसी तरह संविदा भंग किया हो, या अब संविदा को जारी नहीं रखना चाहत हो, तब वादी पक्षकार के पास यह अधिकार भी है कि वह अपने द्वारा किए गए कार्य के लिए मूल्य वसूल सके, भले ही संपूर्ण सविदा का पालन हो, या न हो। लेकिन वह उतने ही हिस्से के लिए दाम वसूल सकता है, जितना उसने वास्तव में किया है।