संविदा के लिए स्वतंत्र सहमति क्या है?(सेक्शन 13-22)- Part 10
स्वतंत्र सहमति
स्वतंत्र सहमति का अर्थ है ऐसी सहमति जिसमें ये पाँच कमियाँ न हो (सेक्शन 14)- प्रपीड़न, असम्यक प्रभाव, कपट, दुर्व्यपदेशन और भूल। स्वतंत्र सहमति (free consent) एक वैध संविदा के लिए अनिवार्य शर्त है (सेक्शन 10)। सेक्शन 13 से सेक्शन 22 तक सहमति और स्वतंत्र सहमति का विवरण है.
सेक्शन | प्रावधान |
सेक्शन 10 | स्वतंत्र सहमति वैध संविदा के लिए अनिवार्य |
सेक्शन 13 | सहमति (समान विषय-वस्तु पर समान आशय से सहमति) |
सेक्शन 14 | स्वतंत्र सहमति (जिसमें (1) coercion (2) undue influence (3) Fraud (4) misrepresentation और (5) mistake नहीं हो।) |
सेक्शन 15 | अवपीडन (coercion) |
सेक्शन 16 | असम्यक प्रभाव (Undue influence) |
सेक्शन 17 | कपट (Fraud) |
सेक्शन 18 | दुर्व्यप्देशन (Misrepresentation) |
सेक्शन 18, 20, 21, 22 | भूल (Mistake) |
संविदा अधिनियम में सहमति (consent) क्या है?
सेक्शन 13 “सहमति” (consent) को परिभाषित करता है– “Two or more persons are said to consent when they agree upon the same thing in the same sense”.
अर्थात सहमति के दो मूल बिन्दु हैं– 1. दोनों पक्ष एक ही विषय पर सहमत हो, और 2. दोनों पक्ष एक ही आशय से सहमत हो।
अगर दोनों में से किसी एक तत्त्व की कमी होगी तो सहमति नहीं मानी जाएगी। उदाहरण के लिए अगर A और B दोनों 100 लीटर तेल के सप्लाइ के लिए सहमत होते है। लेकिन A जहाँ इसका आशय सारसो के तेल से ले रहा था वहीं B सोयाबीन के तेल से। ऐसी स्थिति में यह सहमति वास्तविक सहमति नहीं मानी जाएगी।
स्वतंत्र सहमति से क्या तात्पर्य है?
अथवा, या सहमति में दोष (flaw in consent) क्या हैं?
सेक्शन 14 स्वतंत्र सहमति कि परिभाषा देते हुए पाँच ऐसे कमियों या कारणों को बताता जो किसी सहमति को दूषित करते हैं अर्थात इन पाँचों में से कोई भी एक या अधिक तत्व अगर किसी सहमति का कारण हो, तो वह स्वतंत्र सहमति नहीं मानी जाएगी और ऐसी सहमति से हुआ संविदा सेक्शन 10 के अनुसार वैध संविदा नहीं होगा और उसे विधि द्वारा प्रवर्तित नहीं कराया जा सकेगा।
ये पाँच कारण हैं- (1) प्रपीड़न (coercion) (2) असम्यक प्रभाव (undue influence) (3) कपट (Fraud) (4) दुर्व्यपदेशन (misrepresentation), और (5) भूल (mistake)।
इसका आशय यह हुआ कि इन पाँचों तत्वों की अनुपस्थिति में दिया गया कोई सहमति ही स्वतंत्र सहमति कहलाता है।
अगर सहमति दोषपूर्ण हो तो इसके लिए पीड़ित पक्ष के पास क्या उपचार होता है?
सम्मति के दोष का प्रभाव:
1. संविदा के विखंडन का अधिकार (पर इसकी सीमाएँ भी हैं– (1) जब संविदा की अभिपुष्टि हो गई हो, (2) समय व्यपगत हो गया हो, (3) किसी पर-व्यक्ति (third person) द्वारा अधिकार का अर्जन, (4) वस्तुओं को प्रत्यावर्तित करने की असमर्थता)
2. संविदा के विखंडन के बदले नुकसानी
3. प्रतिकर के लिए दावे का अधिकार: 1. कपट के मामलों में नुकसानी 2. निष्कपट दुर्व्यपदेशनों के मामलों में नुकसान 3. संविदा को विखंडित करने वाले पक्षकार का प्रतिकर के संदाय का कर्तव्य।
अगर कोई संविदा के लिए दी गई सहमति स्वतंत्र नहीं हो यानि सेक्शन 14 में दिए गए किसी कारण से दूषित हो तो उसका क्या परिणाम होगा?
सेक्शन 19 इस तरह के संविदा को शून्य घोषित करवाने की परिस्थितियों को बताता है। सहमति के दोष का प्रभाव निम्नलिखित तरह से होता है:
1. संविदा को शून्य घोषित करवाने यानि रद्द करवाने का अधिकार;
लेकिन पक्षकार इन चार स्थितियों में ऐसा नहीं कर सकते
- i. जब संविदा की अभिपुष्टि हो गई हो,
- ii. जब समय व्यपगत हो चुका हो,
- iii. जब उस विषय-वस्तु पर किसी अन्य व्यक्ति ने अधिकार प्राप्त कर लिया हो,
- iv. जब वह दूसरा पक्ष वस्तु का प्रत्यावर्तन करने में असमर्थ हो।
2. उपर्युक्त चार स्थितियों में संविदा का विखंडन नहीं हो सकता है। ऐसी स्थिति में ऐसी स्थिति में नुकसानी या क्षतिपूर्ति (damages) के लिए दावा किया जा सकता है।
संविदा को विखंडित करने वाले पक्षकार के लिए सेक्शन 64 यह आवश्यक करता है कि उसने यदि इस संविदा से कोई लाभ उठाया है तो उसे वह उसे दूसरे पक्ष को लौटाए। विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम (Specific Relief Act), 1963 का सेक्शन 30 भी न्यायालयों को इस तरह उठाए गए लाभ को लौटने का अधिकार देता है।
प्रपीड़न (coercion) क्या है?
सेक्शन 15 प्रपीड़न को परिभाषित करता है। अगर किसी संविदा के लिए कोई व्यक्ति इन में से किसी कारण से अपनी सहमति देता है, तो वह प्रपीड़न से दिया गया सहमति कहलाता है:
- 1. आईपीसी द्वारा निषिद्ध कोई कार्य करना या करने की धमकी देना;
- 2. किसी संपत्ति का विधि विरुद्ध विरोध करना या करने की धमकी देना;
- 3. यह कार्य या धमकी किसी व्यक्ति पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाला हो।
यह आवशयक नहीं है कि यह धमकी या प्रतिकूलता केवल पक्षकारों के लिए हो बल्कि किसी भी व्यक्ति के लिए हो सकता है। जैसे किसी के पुत्र को बंधक बना कर उसके पिता से किसी संविदा पर हस्ताक्षर करवाना। यह हो सकता है कि दुसरे पक्ष ने स्वयं उसके पुत्र को नहीं रखा हो अपितु किसी और से बाधक करवाया हो, फिर भी यह प्रपीड़न होगा।
उदाहरण: एक व्यक्ति की मृत्यु हो जाने पर उसके विधवा को प्रतिवादियों ने तब तक उसके पति का दाह-संस्कार नहीं करने दिया जब तक उस विधवा ने प्रतिवादियों के एक पुत्र को गोद नहीं ले लिया। कोर्ट ने माना कि गोदनामा (दत्तक ग्रहण) प्रपीड़न द्वारा प्राप्त किया गया था। (रंगानायकम बनाम अलवारा सट्टी – एआईआर (1989) 13 मद्रास 214)
एक हिन्दू पुरुष ने आत्महत्या करने की धमकी देकर अपनी पत्नी और पुत्र से अपनी संपत्ति को अपने भाई के नाम करने की सहमति ले ली। न्यायालय ने बहुमत से इसे प्रपीड़न माना। (यद्यपि अल्पमत के अनुसार आत्महत्या करने का प्रयत्न आईपीसी की धारा 309 के अनुसार दंडनीय है लेकिन इसकी धमकी देना किसी धारा के तहत नहीं आता इसलिए संविदा अधिनियम की धारा 15 के लागू होने के लिए आवश्यक तत्व पूरा नहीं हुआ)। (चीखम अमीराजू बनाम चीखम शेषम्मा– एआईआर (1918) 41 मद्रास 33)।
इस धारा के तहत यह आवश्यक है कि धमकी या कार्य विधिविरुद्ध कार्य के लिए हो। अगर कोई कार्य ऐसा नहीं है तो भले ही उस पक्ष के लिए प्रतिकूल प्रभाव वाला हो, पर यह प्रपीड़न नहीं होगा। जैसे हड़ताल की धमकी देकर अपनी माँगे मनवाना (वर्कमैन ऑफ एपिन टी स्टेट बनाम इंडस्ट्रियल ट्रिब्यूनल– एआईआर 1966 आसाम 115)। इसी तरह कानूनी बाध्यता भी प्रपीड़न नहीं है।
प्रपीड़न (coercion) और विबाध्यता (duress) में क्या अन्तर है?
भारतीय कानून में जिसे प्रपीड़न कहा गया है वह इंग्लिश कानून के विबाध्यता से बहुत मिलता-जुलता है, पर दोनों एक नहीं है। लेकिन दोनों में ये अन्तर हैं:
1. प्रपीड़न में सहमति प्राप्त करने के लिए कोई ऐसा कार्य किया जाता है या इसके लिए धमकी दी जाती है जो आईपीसी द्वारा निषिद्ध हो। लेकिन कॉमन लॉ में विबाध्यता तब हुआ माना जाता है जबकि सहमति के लिए किसी व्यक्ति को वास्तविक हिंसा या हिंसा की धमकी द्वारा विवश कर प्राप्त किया गया हो। इसमे अवैध कार्य के साथ अपकृत्य भी शामिल होता है। लेकिन प्रपीड़न तभी होगा जब वह कार्य आईपीसी के विरुद्ध हो।
2. प्रपीड़न संपत्ति के खिलाफ कोई विधि विरुद्ध कार्य द्वारा भी हो सकता है। लेकिन विबाध्यता शारीरिक क्षति के कार्य या इसके धमकी द्वारा ही हो सकता है संपत्ति के विरुद्ध किसी कार्य द्वारा नहीं।
3. प्रपीड़न किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा या ऐसे व्यक्ति के प्रति भी हो सकता है जो संविदा के पक्षकार नहीं हो। लेकिन विबाध्यता किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा ही किया जा सकता है जो संविदा के पक्षकार हो। यह केवल उनके प्रति किया जा सकता है जो स्वयं या तो संविदा का पक्षकार हो या उसकी पत्नी, बच्चे या निकट संबंधी हो।