समाश्रित संविदा क्या है? (सेक्शन 31-36)- part 19
समाश्रित संविदा (Contingent Contract)
Indian Contract Act का सेक्शन 31 समाश्रित संविदा को परिभाषित करते हुए कहता है कि- “Contingent contract” defined.—A “contingent contract is a contract to do or not to do something, if some event, collateral to such contract, does or does not happen.
Illustration
A contract to pay B Rs. 10,000 if B’s house is burnt. This is a contingent contract.
जब कोई संविदा भविष्य में घटने वाली किसी घटना के होने या न होने पर निर्भर (आश्रित या समाश्रित) होती है तो वह समाश्रित संविदा कहलाती है। बीमा की संविदा इसका एक उदाहरण है।
लेकिन जीवन बीमा इसका अपवाद है क्योंकि अन्य बीमा द्वारा नुकसान के लिए क्षतिपूर्ति किया जाता है लेकिन जीवन के लिए क्षतिपूर्ति करना संभव नहीं है। पंद्यम करार (wagering agreement) भी समाश्रित संविदाएँ ही होती हैं लेकिन इन्हे सेक्शन 30 द्वारा शून्य घोषित किया गया है।
समाश्रित संविदा के लिए निम्नलिखित अनिवार्य तत्त्व हैं:
- कुछ करने या न करने की संविदा;
- यदि कोई घटना घटती है या नहीं घटती है; तथा
- यह घटना ऐसी संविदा की समपार्श्विक होनी चाहिए।
क्या समाश्रित संविदा (contingent contract) प्रवर्तनीय (enforceable) होती है?
अथवा, समाश्रित संविदाएँ कब शून्य होती हैं?
समाश्रित संविदाएँ निम्नलिखित परिस्थितियों में प्रवर्तनीय होती है:
1. संविदाएँ, जो किसी घटना के घटित होने पर आश्रित हो (contracts contingent on an event happening) (सेक्शन 32)
किसी कार्य को करने या न करने के लिए अगर कोई संविदा किसी ऐसी घटना पर निर्भर हो जो भविष्य में होने वाला हो, तो ऐसी स्थिति में दो बाते हो सकती है:
i. वह घटना घटित हो जाए– संविदा प्रवर्तनीय हो जाएगी।
ii. किसी कारणवश उस घटना का घटित होना असंम्भव हो जाए– संविदा शून्य हो जाएगा।
उदाहरण के लिए, A B से यह संविदा करता है कि अगर वह C से विवाह कर लेगा तो वह उसे एक निश्चित घनराशि देगा और B इसके लिए सहमत हो जाता है, लेकिन विवाह से पहले ही C की मृत्यु हो जाता है (अर्थात संविदा का पालन असंभव हो जाता है) तब यह संविदा शून्य हो जाएगा।
यानि अब B A से उस धनराशि के वसूली के लिए कोई वाद नहीं ला सकता है। पर यदि C जीवित रहे और B या A कोई भी पक्ष उससे विवाह के लिए मना कर दे (अर्थात संविदा भंग करे) तो दूसरा पक्ष उसके विरुद्ध न्यायालय में वाद ला सकता है। (सेक्शन 32 का दृष्टान्त)
2. संविदाएँ, जो किसी घटना के घटित न होने पर आश्रित हो (contracts contingent on an event not happening) (सेक्शन 33)
यदि कोई संविदा ऐसी हो जो किसी घटना के घटित नहीं होने पर निर्भर यानि समाश्रित हो तो ऐसी स्थिति में:
i. अगर वह घटना घटित हो जाए, तो संविदा प्रवर्तनीय नहीं होगा;
ii. अगर घटित होना असंभव हो जाए तो संविदा तत्काल प्रर्तनीय हो जाएगी और उसके लिए घटना के घटित नहीं होने के समय सीमा की प्रतीक्षा नहीं करनी होगी (क्योंकि संविदा घटना के घटित नहीं होने की शर्त पर आश्रित है) ।
उदाहरण के लिए, बीमा की संविदाएँ। एक बीमा कंपनी ने एक जहाज का बीमा इस शर्त पर किया है कि वह सकुशल वापस नहीं आ पाया तो उसकी बीमित राशि वह जहाज के मालिक को भुगतान करेगा (यानि संविदा जहाज के वापस नहीं आने की घटना पर निर्भर है)।
अगर जहाज सकुशल वापस आ गया (यानि घटना घट गई) तो स्वाभाविक रूप से संविदा प्रवर्तनीय नहीं होगी। लेकिन अगर जहाज समुद्र में डूब जाए (अर्थात घटना का नहीं घटित होना निश्चित हो जाए) तब संविदा प्रवर्तनीय हो जाएगा। यह प्रवर्तनीयता घटना के असंभव होने के समय से ही हो जाएगा।
इसका अर्थ यह हुआ कि जैसे ही जहाज डूब जाएगा वैसे ही जहाज का मालिक बीमा राशि के लिए दावा कर सकता है, उसे उस समय तक प्रतिक्ष करने की आवश्यकता नहीं होगी जब तक जहाज अगर अस्तित्व में रहता हो समुद्र तक पहुँचता (सेक्शन 33 का दृष्टान्त)
3. संविदाएँ, जो किसी जीवित व्यक्ति के भावी आचरण पर निर्भर हो (contract contingent on the future conduct of a living person) (सेक्शन 34)
सेक्शन 32 उन स्थितियों के लिए प्रावधान करता है जब किसी संविदा का पालन असंभव हो जाए, सेक्शन 33 उस स्थिति के लिए बताता है जब किसी घटना का घटित होना असंभव हो जाए।
सेक्शन 34 यह स्पष्ट करता है कि अगर कोई संविदा किसी जीवित व्यक्ति के आचरण से संबंधित हो तो उसका पालन कब असंभव माना जाएगा।
यह सेक्शन एक उपधारणा देता है। उदाहरण के लिए अगर A B को यह वचन देता है कि वह C से विवाह करेगा। अगर ऐसा नहीं करेगा तो इसके लिए वह एक निश्चित धनराशि A को देगा। अगर C से विवाह करने के बदले वह किसी और से विवाह कर ले तो उसी समय वह संविदा प्रवर्तनीय हो जाएगा
यानि B न्यायालय में उस निश्चित धनराशि के वसूली के लिए वाद ला सकता है। यहाँ इस सेक्शन के कारण यह माना जाएगा कि संविदा का पालन असंभव हो गया है, यद्यपि यह संभव है कि A की पत्नी की मृत्यु हो जाए या उससे तलाक हो जाए और वह C से विवाह कर ले।
यहाँ यह बात ध्यान देने की है सेक्शन 32 में भी घटना का घटित होना (विवाह का होना) असंभव हो जाता है लेकिन वहाँ यह किसी ऐसे कारण से होता है जिस पर दूसरी पार्टी का कोई नियंत्रण नहीं होता है (जैसे जिससे विवाह होना हो उसकी मृत्यु) लेकिन सेक्शन 33 में यह किसी पार्टी के किसी कार्य के द्वारा असंभव होता है (जैसे एक पार्टी द्वारा किसी अन्य से विवाह कर लेना)।
इसलिए सेक्शन 32 में संविदा पालन असंभव हो जाने पर संविदा शून्य हो जाता है अर्थात किसी पक्ष को इस संविदा के तहत कोई अधिकार नहीं रह जाता है लेकिन सेक्शन 34 में संविदा के पालन के असंभव हो जाने पर दूसरी पार्टी को यह अधिकार होता है कि वह न्यायालय द्वारा अपने अधिकारों का प्रवर्तन करा सके। दोषी पार्टी यह बचाव नहीं ले सकता है कि संविदा का पालन अभी असंभव नहीं हुआ है और इसके पालन की कुछ संभावनाएँ बनी हुई है।
4. संविदाएँ, जो किसी नियत समय से भीतर किसी निश्चित घटना के घटित होने पर आश्रित हो (contract contingent on happening of specified event within fixed time) (सेक्शन 35)
अगर संविदा किसी अनिश्चित घटना के एक निश्चित समय सीमा के अंदर घटित होने पर निर्भर हो, तो:
i. उस समय सीमा के अंदर घटना घटित हो जाए– संविदा प्रवर्तनीय हो जाएगी;
ii. उस समय सीमा के अंदर कुछ ऐसा हो जाए– जिससे संविदा का पालन असंभव हो जाए तो इस तरह असंभव होने के साथ ही संविदा शून्य हो जाएगी अर्थात इसके शून्य होने के लिए उस निर्धारित समय सीमा के पूरा होने की प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ेगी।
iii. उस समय सीमा तक वह घटना घटित न हो – संविदा शून्य हो जाएगा।
उदाहरण के लिए, A B से यह संविदा करता है कि अगर उसका जहाज 1 दिसंबर तक वापस आ जाएगा तो वह B को एक निश्चित धनराशि देगा। यदि जहाज एक दिसंबर तक वापस आ जाता है तो वह संविदा प्रवर्तनीय हो जाएगा अर्थात B इस धनराशि के वसूली के लिए A के विरुद्ध न्यायालय में वाद ला सकता है।
लेकिन अगर जहाज 15 अक्तूबर को ही डूब जाए, तो 15 अक्तूबर से ही यह संविदा शून्य हो जाएगा। ऐसा भी सकता है कि जहाज 1 दिसंबर तक नहीं आए (यानि इस तिथि के बाद के किसी तिथि को आ सकता है) लेकिन 1 दिसंबर को यह संविदा शून्य हो जाएगी।
5. संविदाएँ, जो किसी असंभव घटना पर आश्रित हो (agreement contingent to impossible event) (सेक्शन 36)
जो कार्य या घटना किसी भी कारण से असंभव हो उसे करने के लिए किया गया संविदा शून्य होता है अर्थात इसे न्यायालय द्वारा प्रवर्तित नहीं कराया जा सकता है।