मिथ्या साक्ष्य और न्याय के विरूद्ध अपराधों के विषय में (सेक्शन 166-229क)- अध्याय 11
166. मिथ्या साक्ष्य देना– जो कोई शपथ द्वारा या विधि के किसी अभिव्यक्त उपबन्ध द्वारा सत्य कथन करने के लिए वैध रूप से आबद्ध होते हुए, या किसी विषय पर घोषणा करने के लिए विधि द्वारा आबद्ध होते हुए, ऐसा कोई कथन करेगाए जो मिथ्या है, और या तो जिसके मिथ्या होने का उसे ज्ञान या विश्वास है, या जिसके सत्य होने का उसे विश्वास नहीं है, वह मिथ्या साक्ष्य देता है, यह कहा जाता है।
स्पष्टीकरण 1- कोई कथन चाहे वह मौखिक हो, या अन्यथा किया गया हो, इस धारा के अर्थ के अन्तर्गत आता है।
स्पष्टीकरण 2- अनुप्रमाणित करने वाले व्यक्ति के अपने विश्वास के बारे में मिथ्या कथन इस धारा के अर्थ के अन्तर्गत आता है और कोई व्यक्ति यह कहने से कि उसे इस बात का विश्वास है, जिस बात का उसे विश्वास नहीं है तथा यह कहने से कि इस बात को जानता है कि जिस बात को वह नहीं जानता, मिथ्या साक्ष्य देने का दोषी हो सकेगा।
दृष्टांत
(क) क एक न्यायसंगत दावे के समर्थन में, जो य के विरूद्ध ख ने एक हजार रूपये के लिए है, विचारण के समय शपथ पर मिथ्या कथन करता है कि उसने य को ख के दावे का न्यायसंगत होना स्वीकार करते हुए सुना था। क ने मिथ्या साक्ष्य दिया है।
(ख) क सत्य कथन करने क लिए शपथ द्वारा आबद्ध होते हुए कथन करता है कि वह अमुक हस्ताक्षर के सम्बन्ध में यह विश्वास करता है कि वह य का हस्तलेख है, जबकि वह उसे य का हस्तलेख होने का विश्वास नहीं करता है। यहाँ क वह कथन करता है, जिसका मिथ्या होना वह जानता है और इसलिए मिथ्या साक्ष्य का देता है।
(ग) य के हस्तलेख के साधारण स्वरूप को जानते हुए क यह कथन करता है कि अमुक हस्ताक्षर के सम्बन्ध में उसका विश्वास है कि वह य का हस्तलेख है। क उसके ऐसा होने का विश्वास सद्भावपूर्वक करता है। यहाँ क का कथन केवल अपने विश्वास के सम्बन्ध में है, और उसके विश्वास के सम्बन्ध में सत्य है, और इसलिए, यद्यपि वह हस्ताक्षर य का हस्तलेख न भी हो, क ने मिथ्या साक्ष्य नहीं दिया है।
(घ) क शपथ द्वारा सत्य कथन करने के लिए आबद्ध होते हुए यह कथन करता है कि वह जानता है कि य एक विशिष्ट दिन एक विशिष्ट स्थान पर था, जबकि वह उस विषय में कुछ भी नहीं जानता। क मिथ्या साक्ष्य देता है, चाहे बतलाए हुए दिन य उस स्थान पर रहा हो या नहीं।
(ङ) क एक दुभाषिया या अनुवादक किसी कथन या दस्तावेज के, जिसका यथार्थ भाषान्तरण या अनुवाद करने के लिए वह शपथ द्वारा आबद्ध है, ऐसे भाषान्तरण या अनुवाद को, जो यथार्थ भाषान्तरण या अनुवाद नहीं है और जिसके यथार्थ होने का वह विश्वास नहीं करता, यथार्थ भाषान्तरण या अनुवाद के रूप में देता या प्रमाणित करता है। क ने मिथ्या साक्ष्य दिया है।
[इस धारा के तहत अपराध के गठन के लिए निम्नलिखित अवयव अनिवार्य है –
(1) कोई व्यक्ति, जो सत्य कथन करने के लिए-
क. शपथ द्वारा; या
ख. विधि के किसी स्पष्ट प्रावधान द्वारा
ग. विधिक रूप से बाध्य है;
(2) उसने मिथ्या कथन किया है;
(3) वह ऐसा मिथ्या कथन यह
घ. जानते हुए कि यह मिथ्या है, या
ड़ जिसके सत्य होने के विषय में विश्वास नहीं रखता है।]
167. मिथ्या साक्ष्य गढ़ना- जो कोई इस आशय से किसी परिस्थिति को अस्तित्व में लाता है, या किसी पुस्तक या अभिलेख या इलेक्ट्रॉनिक अभिलेख में कोई मिथ्या प्रविष्टि करता है, या मिथ्या कथन अन्तर्विष्ट रखने वाला कोई दस्तावेज या इलेक्ट्रॉनिक अभिलेख रचता है कि ऐसी परिस्थिति, मिथ्या प्रविष्टि या मिथ्या कथन न्यायिक कार्यवाही में, या ऐसी किसी कार्यवाही में, जो लोक सेवक के समक्ष उसके नाते या मध्यस्थ के समक्ष विधि द्वारा की जाती है, साक्ष्य में दर्शित हो और कि इस प्रकार साक्ष्य में दर्शित होने पर ऐसी परिस्थिति, मिथ्या प्रविष्ट या मिथ्या कथन के कारण कोई व्यक्ति, जिसे ऐसी कार्यवाही में साक्ष्य के आधार पर राय कायम करनी है, ऐसी कार्यवाही के परिणाम के लिए तात्विक किसी बात के सम्बन्ध में गलत राय बनाए, वह “मिथ्या साक्ष्य गढ़ता है” यह कहा जाता है।
दृष्टांत
(क) क, एक बॉक्स में, जो य का है, इस आशय से आभूषण रखता है कि वे उस बॉक्स में पाए जाएं, और इन परिस्थितयों से य चोरी के लिए दोषसिद्ध ठहराया जाए। क ने मिथ्या साक्ष्य गढ़ा है।
(ख) क अपनी दुकान की बही में एक मिथ्या प्रविष्टि इस प्रयोजन से करता है कि वह न्यायालय में सम्पोषक साक्ष्य के रूप में काम में लाई जाए। क ने मिथ्या साक्ष्य गढ़ा है।
(ग) य को एक आपराधिक षड्यंत्र के लिए दोषसिद्ध ठहराया जाने के आशय से क एक पत्र य के सह अपराधी को संबोधित किया है उस पत्र को ऐसे स्थान पर रख देता, जिसके सम्बन्ध में वह यह जानता है कि पुलिस ऑफिसर संभाव्यतः उस स्थान की तलाशी लेंगे। क ने मिथ्या साक्ष्य गढ़ा है।
[इस धारा के तहत अपराध के गठन के लिए निम्नलिखित अवयव अनिवार्य है:
(1) किसी परिस्थिति को उत्पन्न करना, या किसी पुस्तक अथवा अभिलेख में मिथ्या प्रविष्टि करना, या कथन से निहित कोई दस्तावेज रचना;
(2) उपर्युक्त वर्णित कार्यों में से कोई एक कार्य इस आशय से करना कि ये किसी लोक सेवक या मध्यस्थ के समक्ष किसी न्यायिक या विधि द्वारा सम्पन्न की जा रही कार्यवाही में साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किये जाएंगे।
(3) इन कार्यों को इस आशय से करना कि इनके कारण, कोई ऐसा व्यक्ति, जिसे उपर्युक्त कार्यवाहियों में साक्ष्य के आधार पर अपने मत का निर्माण करना हैए इन साक्ष्यों के आधार पर गलत मत ग्रहण करेगा।]
168. मिथ्या साक्ष्य के लिए दण्ड- जो कोई साशय किसी न्यायिक कार्यवाही के किसी प्रक्रम में मिथ्या साक्ष्य देगा या किसी न्यायिक कार्यवाही के किसी प्रक्रम में उपयोग में लाए जाने के प्रयोजन से मिथ्या साक्ष्य गढ़ेगा, वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा, और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा;
और जो कोई किसी अन्य मामले में साशय मिथ्या साक्ष्य देगा या गढ़ेगा, वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा, और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।
स्पष्टीकरण 1- सेना न्यायालय के समक्ष विचारण न्यायिक कार्यवाही है।
स्पष्टीकरण 2- न्यायालय के समक्ष कार्यवाही प्रारम्भ होने से पूर्व जो विधि द्वारा निर्दिष्ट अन्वेषण होता है, वह न्यायिक कार्यवाही का एक प्रक्रम है, चाहे वह अन्वेषण किसी न्यायालय के सामने न भी हो।
दृष्टांत
यह अभिनिश्चय करने के प्रयोजन से कि क्या य को विचारण के लिए सुपुर्द किया जाना चाहिए, मजिस्ट्रेट के समक्ष जाँच में क शपथ पर कथन करता है, जिसका वह मिथ्या होना जानता है। यह जाँच न्यायिक कार्यवाही का एक प्रक्रम है; इसलिए क ने मिथ्या साक्ष्य दिया है।
स्पष्टीकरण 3-न्यायालय द्वारा विधि के अनुसार निर्दिष्ट और न्यायालय के प्राधिकार के अधीन संचालित अन्वेषण न्यायिक कार्यवाही का एक प्रक्रम है, चाहे वह अन्वेषण किसी न्यायालय के सामने न भी हो।
दृष्टांत
सम्बन्धित स्थान पर जाकर भूमि की सीमाओं को अभिनिश्चित करने के लिए न्यायालय द्वारा प्रतिनियुक्त आफिसर के समक्ष जाँच में क शपथ पर कथन करता है जिसका मिथ्या होना वह जानता है। यह जाँच न्यायिक कार्यवाही का एक प्रक्रम है; इसलिए क ने मिथ्या साक्ष्य दिया है।
169. मृत्यु से दण्डनीय अपराध के लिए दोषसिद्ध कराने के आशय से मिथ्या साक्ष्य देना या गढ़ना- जो कोई भारत में तत्समय प्रवृत्त विधि के द्वारा मृत्यु से दण्डनीय अपराध के लिए किसी व्यक्ति को दोषसिद्ध कराने के आशय से या सम्भाव्यतः तद्द्वारा दोषसिद्ध कराएगा, यह जानते हुए मिथ्या साक्ष्य देगा या गढ़ेगा, वह आजीवन कारावास से, या कठिन कारावास से जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।
यदि निर्दोष व्यक्ति तद्द्वारा दोषसिद्ध किया जाए और उसे फाँसी दी जाए- और यदि किसी निर्दोष व्यक्ति को ऐसे मिथ्या साक्ष्य के परिणामस्वरूप दोषसिद्ध किया जाए, और उसे फाँसी दे दी जाए तो उस व्यक्ति को, जो ऐसा मिथ्या साक्ष्य देगा, या तो मृत्युदण्ड से या एतस्मिन्पूर्व वर्णित दण्ड दिया जाएगा।
170. आजीवन कारावास या कारावास से दण्डनीय अपराध के लिए दोषसिद्ध कराने के आशय से मिथ्या साक्ष्य देना या गढ़ना– जो कोई इस आशय से या सम्भाव्य जानते हुए कि एतद्द्वारा वह किसी व्यक्ति को, जो ऐसे अपराध के लिएए जो भारत में तत्समय प्रवृत्त विधि द्वारा मृत्यु से दण्डनीय न हो किन्तु आजीवन कारावास या सात वर्ष या उससे अधिक की अवधि के कारावास से दण्डनीय हो, दोषसिद्ध कराए, मिथ्या साक्ष्य देगा या गढ़ेगा वह वैसे ही दण्डित किया जाएगा, जैसे वह व्यक्ति दण्डनीय होता जो उस अपराध के लिए दोषसिद्ध होता।
दृष्टांत
क न्यायालय के समक्ष इस आशय से मिथ्या साक्ष्य देता है कि एतद्द्वारा य डकैती के लिए दोषसिद्ध किया जाए। डकैती का दण्ड जुर्माना सहित या रहित, आजीवन कारावास या ऐसा कठिन कारावास है, जो दस वर्ष तक की अवधि का हो सकता है। क इसलिए जुर्माने सहित या रहित आजीवन कारावास या कारावास से दण्डनीय है।
195क. किसी व्यक्ति को मिथ्या साक्ष्य देने के लिए धमकाना या उत्प्रेरित करना- जो कोई किसी दूसरे व्यक्ति कोए उसके शरीर, ख्याति या सम्पत्ति को अथवा ऐसे व्यक्ति के शरीर या ख्याति को, जिसमें वह व्यक्ति हितबद्ध है, यह कारित करने के आशय से कोई क्षति करने की धमकी देता है, कि वह व्यक्ति मिथ्या साक्ष्य दे तो वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी या जुर्माने से या दोनों से दण्डित किया जाएगा;
और यदि कोई निर्दोष व्यक्ति ऐसा मिथ्या साक्ष्य के परिणामस्वरूप मृत्यु से या सात वर्ष से अधिक के कारावास से दोषसिद्ध और दण्डादिष्ट किया जाता है तो ऐसा व्यक्तिए जो धमकी देता है, उसी दण्ड से दण्डित किया जाएगा और उसी रीति में और उसी सीमा तक दण्डादिष्ट किया जाएगा जैसे निर्दोष व्यक्ति दण्डित और दण्डादिष्ट किया गया है।
171. उस साक्ष्य को काम में लाना जिसका मिथ्या होना ज्ञात है- जो किसी साक्ष्य को, जिसका मिथ्या होना या गढ़ा होना वह जानता है, सच्चे या असली साक्ष्य के रूप में भ्रष्टतापूर्वक उपयोग में लाएगा, या उपयोग में लाने का प्रयत्न करेगा, वह ऐसे दण्डित किया जाएगा मानो उसने मिथ्या साक्ष्य दिया हो या गढ़ा हो।
172. मिथ्या प्रमाणपत्र जारी करना या हस्ताक्षरित करना- जो कोई ऐसा प्रमाणपत्र, जिसका दिया जाना या हस्ताक्षरित किया जाना विधि द्वारा अपेक्षित हो, या किसी ऐसे तथ्य से संबंधित हो जिसका वैसा प्रमाणपत्र विधि द्वारा साक्ष्य में ग्राह्य हो, यह जानते हुए या विश्वास करते हुए वह किसी तात्विक बात के बारे में मिथ्या है, वैसा प्रमाणपत्र जारी करेगा या हस्ताक्षरित करेगा, वह उसी प्रकार दण्डित किया जाएगा, मानों उसने मिथ्या सााक्ष्य दिया हो।
173. प्रमाणपत्र को जिसका मिथ्या होना ज्ञात है, सच्चे के रूप में काम में लाना- जो कोई किसी ऐसे प्रमाणपत्र को यह जानते हुए कि वह किसी तात्विक बात के सम्बन्ध में मिथ्या है, सच्चे प्रमाणपत्र के रूप में भ्रष्टतापूर्वक उपयोग में लाएगा या उपयोग में लाने का प्रयत्न करेगा, वह ऐसे दण्डित किया जाएगा, मानों उसने मिथ्या सााक्ष्य दिया हो।
174. ऐसी घोषणा में, जो साक्ष्य के रूप में विधि द्वारा ली जा सके, किया गया मिथ्या कथन- जो कोई अपने द्वारा की गई या हस्ताक्षरित किसी घोषणा में, जिसको किसी तथ्य के साक्ष्य के रूप में लेने के लिए कोई न्यायालय, या कोई लोक सेवक या अन्य व्यक्ति विधि द्वारा आबद्ध या प्राधिकृत हो, कोई ऐसा कथन करेगा, जो किसी ऐसी बात के सम्बन्ध में, जो उस उद्देश्य के लिए तात्विक हो जिसके लिए वह घोषणा की जाए या उपयोग में लाई जाए, मिथ्या है और जिसके मिथ्या होने का उसे ज्ञान या विश्वास है, या जिसके सत्य होने का उसे विश्वास नहीं है वह उसी प्रकार दण्डित किया जाएगा, मानों उसने मिथ्या सााक्ष्य दिया हो।
[इस धारा के अन्तर्गत अपराध गठित करने के लिए अनिवार्य अवयव है:
- किसी ऐसे उद्घोषणा का किया जाना जिसे साक्ष्य के अन्तर्गत ग्रहण करने के लिए कोई न्यायालय या लोक सेवक विधि द्वारा आबद्ध या प्राधिकृत है;
- ऐसी उद्घोषणा में मिथ्या कथन किया जाना जिसे उद्घोषक जानता था या जिसके लिए उसे विश्वास था, कि वह मिथ्या है;
- ऐसा मिथ्या कथन उस उद्देश्य के किसी महत्वपूर्ण बिन्दू को छू रहा हो जिनके लिए उद्घोषणा की गई या उपयोग में लाई गयी।]
175. ऐसी घोषणा का मिथ्या होना जानते हुए सच्ची के रूप में काम में लाना- जो कोई किसी ऐसी घोषणा को, यह जानते हुए कि वह किसी तात्विक बात के सम्बन्ध में मिथ्या है, भ्रष्टतापूर्वक सच्ची के रूप में उपयोग में लाएगा, या लाने का प्रयत्न करेगा, वह उसी प्रकार दण्डित किया जाएगा, मानो उसने मिथ्या सााक्ष्य दिया हो।
स्पष्टीकरण- कोई घोषणा, जो केवल किसी अप्ररूपिता के आधार पर अग्राह्य है, धारा 199 और धारा 200 के अर्थ के अन्तर्गत घोषणा है।
176.अपराध के साक्ष्य का विलोपन, या अपराधी को प्रतिच्छादित करने के लिए मिथ्या इत्तिला देना- जो कोई यह जानते हुए, या यह विश्वास रखने का कारण रखते हुए कि कोई अपराध किया गया है, उस अपराध के किए जाने के किसी साक्ष्य का विलोप इस आशय से कारित करेगा कि अपराधी वैध दण्ड से प्रतिच्छादित करे या उस आशय से उस अपराध से सम्बन्धित कोई ऐसी इत्तिला देगा जिसके मिथ्या होने का उसे ज्ञान या विश्वास है।
यदि अपराध मृत्यु से दण्डनीय हो- यदि वह अपराध जिसके किए जाने का उसे ज्ञान या विश्वास है, मृत्यु से दण्डनीय हो, तो वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।
यदि आजीवन कारावास से दण्डनीय हो- यदि वह अपराध आजीवन कारावास से, या ऐसे कारावास से, जो दस वर्ष तक की हो सकेगा, दण्डनीय हो, तो वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।
यदि दस वर्ष से कम के कारावास से दण्डनीय हो- और यदि वह अपराध ऐसे कारावास से उतनी अवधि के लिए दण्डनीय हो, जो दस वर्ष तक की न हो, वह उस अपराध के लिए उपबन्धित भाँति के कारावास से उतनी अवधि के लिए, जो उस अपराध के लिए उपबन्धित कारावास की दीर्घत्तम अवधि की एक-चौथाई तक हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।
दृष्टांत
क यह जानते हुए कि ख ने य की हत्या की हैए ख को दण्ड से प्रतिच्छादित करने के आशय से मृत शरीर को छिपाने में ख की सहायता करता है। क सात वर्ष तक के लिए दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, और जुर्माने से भी दण्डनीय है।
177. इत्तिला देने के लिए आबद्ध व्यक्तियों द्वारा अपराध की इत्तिला देने का साशय लोप- जो कोई यह जानते हुए या यह विश्वास करने का कारण रखते हुए कि कोई अपराध किया गया है, उस अपराध के बारे में कोई इत्तिला जिसे देने के लिए वह वैध रूप से आबद्ध हो, देने का साशय लोप करेगा, वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से दण्डित किया जाएगा।
178. किए गए अपराध के विषय में मिथ्या इत्तिला देना- जो कोई यह जानते हुए, या विश्वास करने का कारण रखते हुए, कि कोई अपराध किया गया है उस अपराध के बारे में कोई ऐसी इत्तिला देगा, जिसके मिथ्या होने का उसे ज्ञान या विश्वास हो, वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।
स्पष्टीकरण 1- धारा 201 और 202 में और इस धारा में “अपराध” शब्द के अन्तर्गत भारत से बाहर किसी स्थान पर किया गया कोई भी ऐसा कार्य आता, जो यदि भारत में किया जाता तो निम्नलिखित धारा अर्थात् 302, 204, 382, 392, 393, 394, 395, 396, 397, 398, 399, 402, 435, 436, 449, 350, 457, 358, 459 तथा 460 में से किसी भी धारा के अधीन दण्डनीय होता।
179. साक्ष्य के रूप में किसी दस्तावेज या इलेक्ट्रॉनिक अभिलेख का पेश किया जाना निवारित करने के लिए उसको नष्ट करना- जो कोई किसी दस्तावेज या इलेक्ट्रॉनिक अभिलेख को छिपाएगा या नष्ट करेगा जिसे किसी न्यायालय में या ऐसी कार्यवाही में, जो किसी लोक सेवक के समक्ष उसकी वैसी हैसियत में विधिपूर्वक की गई है, साक्ष्य के रूप में पेश करने के लिए उसे विधिपूर्वक विवश किया जा सके, या पूर्वोक्त न्यायालय या लोक सेवक के समक्ष साक्ष्य के रूप में पेश किए जाने के उपयोग में लाए जाने से निवारित करने के आशय से, या उस प्रयोजन के लिए उस दस्तावेज या इलेक्ट्रॉनिक अभिलेख को पेश करने को उस विधिपूर्वक समनित या अपेक्षित किए जाने के पश्चात् ऐसे सम्पूर्ण दस्तावेज या इलेक्ट्रॉनिक अभिलेख को, या उसके किसी भाग को मिटाएगा, या ऐसा बनाएगा, या पढ़ा न जा सके, वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।
[2000 के अधिनियम सं 21 की धारा 91 और पहली अनुसूची द्वारा (17.10.2000 से)]
180. वाद या अभियोजन में किसी कार्य या कार्यवाही के प्रयोजन से मिथ्या प्रतिरूपण- जो कोई किसी दूसरे का मिथ्या प्रतिरूपण करेगा और ऐसे धरे हुए रूप में किसी वाद या आपराधिक अभियोजन में कोई स्वीकृति या कथन करेगा, या दावे की संस्वीकृति करेगा, या कोई आदेशिका निकलवाएगा या जमानतदार या प्रतिभू बनेगा, या कोई अन्य कार्य करेगा, वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।
181. सम्पत्ति को समपहरण किए जाने में या निष्पादन में अभिगृहीत किए जाने से निवारित करने के लिए उसे कपटपूर्वक हटाना या छिपाना- जो कोई किसी सम्पत्ति को, या उसमें से किसी हित को इस आशय से कपटपूर्ण हटाएगा, छिपाएगा या किसी व्यक्ति को अन्तरित या परिदत्त करेगा, कि एतद्द्वारा वह उस सम्पत्ति या उसमें के किसी हित का ऐसे दण्डादेश के अधीन जो न्यायालय या अन्य सक्षम प्राधिकारी द्वारा सुनाया जा चुका है या जिसके बारे में वह जानता है कि न्यायालय या अन्य सक्षम प्राधिकारी द्वारा उसका सुनाया जाना सम्भाव्य है, समपहरण के रूप में या जुर्माने को चुकाने के लिए लिया जाना या ऐसी डिक्री या आदेश के निष्पादन में, जो सिविल वाद में न्यायालय द्वारा दिया गया हो या जिसके बारे में वह जानता है कि सिविल वाद में न्यायालय द्वारा सुनाया जाना सम्भाव्य है लिया जाना निवारित करे, वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।
182. सम्पत्ति पर उसके समपहरण किए जाने या निष्पादन में अभिगृहीत किए जाने से निवारित करने के लिए कपटपूर्वक दावा- जो कोई सम्पत्ति को, या उसमें के किसी हित को, यह जानते हुए कि ऐसी सम्पत्ति या हित पर उसका कोई अधिकार या अधिकारपूर्ण दावा नहीं है, कपटपूर्वक प्रतिगृहित करेगा, प्राप्त करेगा, या उस पर दावा करेगा अथवा किसी सम्पत्ति या उसमें के किसी हित पर किसी अधिकार के बारे में इस आशय से प्रवंचना करेगा कि तद्द्वारा वह उस सम्पत्ति या उसमें के किसी हित पर किसी अधिकार के बारे में इस आशय से प्रवंचना करेगा कि तद्द्वारा वह उस सम्पत्ति या उसमें के हित का ऐसे दण्डादेश के अधीन, जो न्यायालय या किसी अन्य सक्षम प्राधिकारी द्वारा उसका सुनाया जाना सम्भाव्य है, समपहरण के रूप में या जुर्माने को चुकाने के लिए लिया जाना, या ऐसी डिक्री या आदेश के निष्पादन में, जो सिविल वाद में न्यायालय द्वारा दिया गया हो, या जिसके बारे में वह जानता है कि सिविल वाद में न्यायालय द्वारा उसका सुनाया जाना सम्भाव्य है, लिया जाना निवारित करे, वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।
183. ऐसी राशि के लिए जो शोध्य न हो, कपटपूर्वक डिक्री होने देना सहन करना- जो कोई किसी व्यक्ति के वाद में ऐसी राशि के लिएए जो ऐसे व्यक्ति को शोध्य न हो या शोध्य राशि से अधिक हो, या किसी ऐसी सम्पत्ति या सम्पत्ति में के हित के लिए, जिसका ऐसा व्यक्ति हकदार न हो, अपने विरूद्ध कोई डिक्री या आदेश कपटपूर्वक पारित करवाएगा, या पारित किया जाना सहन करेगा अथवा किसी डिक्री या आदेश को उसके तुष्ट कर दिए जाने के पश्चात् या किसी ऐसी बात के लिए, जिसके विषय में उस डिक्री या आदेश की तुष्टि कर दी गई हो, अपने विरूद्ध कपटपूर्वक निष्पादित करवाएगा या किया जाना सहन करेगाए वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास सेए जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।
दृष्टांत
य के विरूद्ध एक वाद क संस्थित करता है। य यह सम्भाव्य जानते हुए कि क उसके विरूद्ध डिक्री अभिप्राप्त कर लेगा, ख के वाद में, जिसका उसके विरूद्ध कोई न्यायासंगत दावा नहीं है, अधिक रकम के लिए अपने विरूद्ध निर्णय किया जाना इसलिए कपटपूर्वक सहन करता है कि ख स्वयं अपने लिए या य के फायदे के लिएए य की सम्पत्ति के किसी ऐसे विक्रय के आगमों का अंश ग्रहण करे, जो क की डिक्री के अधीन किया जाए। य ने इस धारा के अधीन अपराध किया है।
[इस धारा के तहत अपराध गठित होने के लिए अनिवार्य अवयव हैं:
- अभियुक्त ने अपने विरूद्ध डिक्री या आदेश पारित करवाया हो;
- ऐसा डिक्री जिस राशि के लिए पारित किया गया है वह या तो शोध्य राशि है ही नहीं या उससे अधिक है या उस राशि को पहले ही संतुष्ट किया जा चुका है;
- ऐसा डिक्री जिसके पक्ष में पारित किया गया हो वह उस राशि के लिए वास्तव में हकदार नहीं है;
- अभियुक्त ने ऐसा अपने डिक्री या आदेश अपने लाभ के लिए या दूसरे हकदारों के हिस्से को लेने के लिए कपटपूर्वक प्राप्त किया हो।]
184. बेईमानी से न्यायालय में मिथ्या दावा करना- जो कोई कपटपूर्वक या बेईमानी से या किसी व्यक्ति को क्षति या क्षोभ कारित करने के आशय से न्यायालय में कोई ऐसा दावा करेगा, जिसका मिथ्या होना वह जानता है, वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा, और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।
185. ऐसी राशि के लिए जो शोध्य नहीं है, कपटपूर्वक डिक्री अभिप्राप्त करना– जो कोई किसी व्यक्ति के विरूद्ध ऐसी राशि के लिए, जो शोध्य न हो, या शोध्य राशि से अधिक हो, किसी सम्पत्ति या सम्पत्ति में के हित के लिए, जिसका वह हकदार न हो, डिक्री या आदेश को कपटपूर्वक अभिप्राप्त कर लेगा या किसी डिक्री या आदेश को, जिसके तुष्ट कर दिए जाने के पश्चात् या ऐसी बात के लिए, जिसके विषय में उस डिक्री या आदेश की तुष्टि कर दी गई हो, किसी व्यक्ति के विरूद्ध या तो कपटपूर्वक निष्पादित करवाएगा, या अपने नाम में कपटपूर्वक ऐसा कोई कार्य किया जाना सहन करेगा या किए जाने की अनुज्ञा देगा, वह दोनों में से किसी भाँति के करावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।
186. क्षति कारित करने के आशय से अपराध का मिथ्या आरोप– जो कोई किसी व्यक्ति को यह जानते हुए कि उस व्यक्ति के विरूद्ध ऐसी कार्यवाही या आरोप के लिए कोई न्यायसंगत या विधिपूर्ण आधार नहीं है क्षति करित करने के आशय से उस व्यक्ति के विरूद्ध कोई दण्डिक कार्यवाही संस्थित करेगा, या करवाएगा या उस व्यक्ति पर मिथ्या आरोप लगाएगा, कि उसने वह अपराध किया है। वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा;
तथा यदि ऐसी दाण्डिक कार्यवाही मृत्यु, आजीवन कारावास या सात वर्ष या उससे अधिक के कारावास से दण्डनीय अपराध के मिथ्या आरोप पर संस्थित की जाए, तो वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।
187. अपराधी को संश्रय देना- जबकि कोई अपराध किया जा चुका हो, तब जो कोई किसी ऐसे व्यक्ति को, जिसके बारे में जानता हो या विश्वास करने का कारण रखता हो कि वह अपराधी है, वैध दण्ड से प्रतिच्छादित करने के आशय से संश्रय देगा या छिपाएगा;
यदि अपराध मृत्यु से दण्डनीय हो- यदि वह अपराध मृत्यु दण्ड से दण्डनीय हो तो वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि पाँच वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा;
यदि अपराध आजीवन कारावास या कारावास से दण्डनीय हो- और वह अपराध आजीवन कारावास से, या दस वर्ष तक के कारावास से, दण्डनीय हो, तो वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा;
और यदि वह अपराध एक वर्ष तक, न कि दस वर्ष तक के कारावास से दण्डनीय हो, तो उस अपराध के लिए उपबन्धित भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि उस अपराध के लिए उपबन्धित कारावास की दीर्घत्तम अवधि की एक-चौथाई तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से दण्डित किया जाएगा।
इस धारा में “अपराध” के अन्तर्गत भारत से बाहर किसी स्थान पर किया गया कार्य आता है, जो यदि भारत में किया जाता तो निम्नलिखित धारा अर्थात् 302, 304, 382, 392, 393, 394, 395, 396, 397, 398, 399, 402, 435, 436, 449, 450, 457, 458, 459 और 460 में से किसी धारा के अधीन दण्डनीय होता और हर एक ऐसा कार्य इस धारा के प्रयोजनों के लिए ऐसे दण्डनीय समझा जाएगा, मानो अभियुक्त व्यक्ति उसे भारत में करने का दोषी था।
अपवाद- इस उपबन्ध का विस्तार किसी ऐसे मामले पर नहीं है, जिसमें अपराधी को संश्रय देना या छिपाना उसके पति या पत्नी द्वारा हो।
दृष्टांत
क यह जानते हुए कि ख ने डकैती की है, ख को वैध दण्ड से प्रतिच्छादित करने के लिए जानते हुए छिपा लेता है। यहाँ ख आजीवन कारावास से दण्डनीय है, क तीन वर्ष से अनधिक अवधि के लिए दोनों में से किसी भाँति के कारावास से दण्डनीय है और जुर्माने से भी दण्डनीय है।
188. अपराधी को दण्ड से प्रतिच्छादित करने के लिए उपहार आदि लेना- जो कोई अपने या किसी अन्य व्यक्ति के लिए कोई परितोषण या अपने या किसी अन्य व्यक्ति के लिए किसी सम्पत्ति का प्रत्यास्थापना, किसी अपराध के छिपाने के लिए या किसी व्यक्ति को किसी अपराध के लिए वैध दण्ड से प्रतिच्छादित करने के लिए, या किसी व्यक्ति के विरूद्ध वैध दण्ड दिलाने के प्रयोजन से उसके विरूद्ध की जाने वाली कार्यवाही न करने के लिए, प्रतिफलस्वरूप प्रतिगृहित करेगा या अभिप्राप्त करने का प्रयत्न करेगा या प्रतिगृहित करने के लिए करार करेगा;
यदि अपराध मृत्यु से दण्डनीय हो- यदि अपराध मृत्यु से दण्डनीय हो, तो दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा, और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा;
यदि आजीवन कारावास या कारावास से दण्डनीय हो- यदि वह अपराध आजीवन कारावास या दस वर्ष तक के कारावास से दण्डनीय हो तो वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा, और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा;
तथा यदि वह अपराध दस वर्ष से कम तक के कारावास से दण्डनीय हो तो वह उस अपराध कि लिए उपबंधित कारावास की दीर्घत्तम अवधि की एक-चौथाई तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।
189. अपराधी के प्रतिच्छादन के प्रतिफलस्वरूप उपहार की प्रस्थापना या सम्पत्ति का प्रत्यावर्तन- जो कोई किसी व्यक्ति को कोई अपराध उस व्यक्ति द्वारा छिपाए जाने के लिए या उस व्यक्ति द्वारा किसी व्यक्ति को किसी अपराध के लिए वैध दण्ड से प्रतिच्छादित किए जाने के लिए या उस व्यक्ति द्वारा किसी व्यक्ति को वैध दण्ड दिलाने के प्रयोजन से उसके विरूद्ध की जाने वाली कार्यवाही न की जाने के लिए प्रतिफलस्वरूप कोई परितोषण देगा या दिलाएगा या देने या दिलाने की प्रस्थापना या करार करेगा, या कोई सम्पत्ति प्रत्यावर्तित करेगा या कराएगा।
यदि अपराध मृत्यु से दण्डनीय हो- यदि वह अपराध, जिसके लिए वह व्यक्ति अभिरक्षा में था या पकड़े जाने के लिए आदेशित है, मृत्यु से दण्डनीय हो, तो वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा;
यदि आजीवन कारावास या कारावास से दण्डनीय हो- यदि वह अपराध आजीवन कारावास से या दस वर्ष तक के कारावास से दण्डनीय हो, तो वह जुर्माने सहित या रहित दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा;
यदि वह अपराध दस वर्ष से कम के कारावास से दण्डनीय हो, तो वह उस अपराध के लिए उपबन्धित भाँति के कारावास की दीर्घत्तम अवधि की एक-चौथाई तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।
अपवाद 5- धारा 213 और 214 के उपबन्धों का विस्तार किसी ऐसे मामले पर नहीं है, जिसमें कि अपराध का शमन विधिपूर्वक किया जा सकता है।
190. चोरी की सम्पत्ति इत्यादि के वापस लेने में सहायता करने के लिए उपहार लेना- जो कोई किसी व्यक्ति की किसी ऐसी जंगम सम्पत्ति के वापस करा लेने में जिससे इस संहिता के अधीन दण्डनीय किसी अपराध द्वारा वह व्यक्ति वंचित कर दिया गया हो, सहायता करने के बहाने या सहायता करने की बाबत कोई परितोषण लेगा या लेने का करार करेगा या लेने को सहमत होगा, वहाँ जब तक कि अपनी शक्ति में के सब साधनों को अपराधी को पकड़वाने के लिए और अपराध के लिए दोषसिद्धि कराने के लिए उपयोग में न लाए, दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।
191. ऐसे अपराधी को संश्रय देना, जो अभिरक्षा से निकल भागा है या जिसको पकड़ने का आदेश दिया जा चुका है- जब किसी अपराध के लिए दोषसिद्ध या आरोपित व्यक्ति उस अपराध के लिए वैध अभिरक्षा में होते हुए ऐसी अभिरक्षा से निकल भागे;
अथवा, जब कभी कोई लोक सेवक ऐसे लोक सेवक की विधिपूर्ण शक्तियों का प्रयोग करते हुए किसी अपराध के लिए किसी व्यक्ति को पकड़ने का आदेश दे, तब जो कोई ऐसे निकल भागने को या पकड़े जाने के आदेश को जानते हुए, उस व्यक्ति को पकड़ा जाना निवारित करने के आशय से उसे संश्रय देगा या छिपाएगा, वह निम्नलिखित प्रकार से दण्डित किया जाएगा अर्थात्-
यदि अपराध मृत्यु से दण्डनीय हो- यदि वह अपराध, जिसके लिए वह व्यक्ति अभिरक्षा में था या पकड़े जाने के लिए आदेशित है, मृत्यु से दण्डनीय हो, तो वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा, और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।
यदि आजीवन कारावास या कारावास से दण्डनीय हो- यदि वह अपराध आजीवन कारावास से या दस वर्ष के कारावास से दण्डनीय हो तो वह जुर्माने सहित या रहित दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा।
तथा यदि वह अपराध ऐसे कारावास से दण्डनीय हो, जो एक वर्ष तक का हो सकता है, तो वह उस अपराध के लिए उपबन्धित भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि उस अपराध के लिए उपबन्धित कारावास की दीर्घत्तम अवधि की एक-चौथाई तक की हो सकेगी, या जुर्माने से या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।
इस धारा में “अपराध” के अन्तर्गत कोई भी ऐसा कार्य या लोप भी आता है, जिसका कोई व्यक्ति भारत से बाहर दोषी होना अभिकथित हो, जो यदि वह भारत में उसका दोषी होता तो अपराध के रूप में दण्डनीय होता और जिसके लिए वह प्रत्यर्पण से सम्बन्धित किसी विधि के अधीन या अन्यथा भारत में पकड़े जाने या अभिरक्षा में निरूद्ध किए जाने के दायित्व के अधीन हो, और ऐसा कार्य या लोप इस धारा के प्रयोजनों के लिए ऐसे दण्डनीय समझा जाएगा, मानो अभियुक्त व्यक्ति भारत में उसका दोषी हुआ था।
अपवाद- इस उपबन्ध का विस्तार ऐसे मामले पर नहीं है, जिसमें संश्रय देना या छिपाना पकड़े जाने वाले व्यक्ति के पति या पत्नी द्वारा हो।
216क. लुटेरों या डाकुओं को संश्रय देने के लिए शास्ति- जो कोई यह जानते हुए या विश्वास करने का कारण रखते हुए कि कोई व्यक्ति लूट या डकैती, हाल ही में करने वाले हैं या हाल की में लूट या डकैती कर चुके हैं, उनको या उनमें से किसी को, ऐसी डकैती या लूट सुकर बनाने के, या उनको या उनमें से किसी को दण्ड से प्रतिच्छादित करने के आशय से संश्रय देगा, वह कठिन कारवास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।
स्पष्टीकरण- इस धारा में प्रयोजनों के लिए यह तत्वहीन है कि लूट या डकैती भारत में करनी आशयित है या की जा चुकी है या भारत से बाहर।
अपवाद- इस उपबन्ध का विस्तार ऐसे मामले पर नहीं है, जिसमें संश्रय देना या छिपाना अपराधी के पति या पत्नी द्वारा हो।
216ख. संश्रय की परिभाषा- भारतीय दण्ड संहिता (संशोधन) अधिनियम, 1942 (1942 का 8) की धारा 3 द्वारा निरसित
192. लोक सेवक द्वारा किसी व्यक्ति को दण्ड से या किसी सम्पत्ति को समपहरण से बचाने के आशय से विधि के निदेश की अवज्ञा- जो कोई लोक सेवक होते हुए विधि के ऐसे निदेशों की, जो उस सम्बन्ध में हो कि उससे ऐसे लोक सेवक के नाते किस ढ़ंग का आचरण करना चाहिए, यह जानते हुए अवज्ञा किसी व्यक्ति को वैध दण्ड से बचाने के आशय से या सम्भाव्यतः तद्द्वारा बचाएगा, वह जानते हुए अथवा उतने दण्ड की अपेक्षा, जिससे वह दण्डनीय है, तद्द्वारा कम दण्ड दिलवाएगा यह सम्भाव्य जानते हुए अथवा किसी सम्पत्ति को ऐसे समपहरण या किसी भार से, जिसके लिए वह सम्पत्ति विधि के द्वारा दायित्व के अधीन है, बचाने के आशय से या सम्भाव्यतः तद्द्वारा बचाएगा, यह जानते हुए करेगा, वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।
193. किसी व्यक्ति को दण्ड से या किसी सम्पत्ति को समपहरण से बचाने के आशय से लोक सेवक द्वारा अशुद्ध अभिलेख या लेख की रचना- जो कोई लोक सेवक होते हुए और ऐसे लोक सेवक के नाते अभिलेख या अन्य लेख तैयार करने का भार रखते हुए, उस अभिलेख या लेख की इस प्रकार से रचनाए जिसे वह जानता है कि अशुद्ध है लोक को या किसी व्यक्ति को हानि या क्षति कारित करने के आशय से या सम्भाव्यतः तद्द्वारा कारित करेगा यह जानते हुए अथवा किसी व्यक्ति को वैध दण्ड से बचाने के आशय से या सम्भाव्यतः तद्द्वारा बचाएगा यह जानते हुए अथवा किसी सम्पत्ति को ऐसे समपहरण या अन्य भार से, जिसके दायित्व के अधीन वह सम्पत्ति विधि के अनुसार है, बचाने के आशय से या सम्भाव्यतः तद्द्वारा बचाएगा यह जानते हुए करेगा, वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।
194. न्यायिक कार्यवाही में विधि के प्रतिकूल रिपोर्ट आदि का लोक सेवक द्वारा भ्रष्टतापूर्वक दिया जाना- जो कोई लोक सेवक होते हुए, न्यायिक कार्यवाही के किसी प्रक्रम में कोई रिपोर्ट, आदेश, अधिमत या विनिश्चय, जिसका विधि के प्रतिकूल होना वह जानता हो, भ्रष्टतापूर्वक या विद्वेषपूर्वक देगा, या सुनाएगा, वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।
195. प्राधिकार वाले व्यक्ति द्वारा जो यह जानता है कि वह विधि के प्रतिकूल कार्य कर रहा है, विचारण के लिए या परिरोध करने के लिए सुपुर्दगी- जो कोई किसी ऐसे पद पर होते हुएए जिससे व्यक्तियों को विचारण या परिरोध के लिए सुपुर्दगी करने का, या व्यक्तियो को परिरोध में रखने का उसे वैध प्राधिकार हो, किसी व्यक्ति को उस प्राधिकार के प्रयोग में यह जानते हुए भ्रष्टतापूर्वक या विद्वेषपूर्वक विचारण या परिरोध के लिए सुपुर्द करेगा या परिरोध में रखेगा कि ऐसा करने में वह विधि के प्रतिकूल कार्य कर रहा है, वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, या जुमाने से, या दोनों से दण्डित किया जाएगा।
196. पकड़ने के लिए आबद्ध लोक सेवक द्वारा पकड़ने का साशय लोप- जो कोई ऐसे लोक सेवक होते हुए, जो किसी अपराध के लिए आरोपित या पकड़े जाने के दायित्व के अधीन किसी व्यक्ति को पकड़ने या परिरोध में रखने के लिए सेवक के नाते वैध रूप से आबद्ध है, ऐसे व्यक्ति को पकड़ने का साशय लोप करेगा या ऐसे परिरोध में से ऐसे व्यक्ति का निकल भागना सहन करेगा या ऐसे व्यक्ति के निकल भागने में या निकल भागने के लिए प्रयत्न करने में साशय मदद करेगा, वह निम्नलिखित रूप से दंडित किया जाएगा, अर्थात्
यदि परिरूद्ध व्यक्ति या जो व्यक्ति पकड़ा जाना चाहिए था, वह मृत्यु से दण्डनीय अपराध के लिए आरोपित या पकड़े जाने के दायित्व के अधीन होए तो वह जुर्माने सहित या रहित दोनों में से किसी भाँति के कारावास सेए जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, अथवा
यदि परिरूद्ध व्यक्ति या जो व्यक्ति पकड़ा जाना चाहिए थाए वह आजीवन कारावास या दस वर्ष तक की अवधि के कारावास से दण्डनीय अपराध के लिए आरोपित या पकड़े जाने के दायित्व के अधीन हो, तो वह जुर्माने सहित या रहित दोनों में से किसी भाँति के कारावास सेए जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगीए अथवा
यदि परिरूद्ध व्यक्ति या जो व्यक्ति पकड़ा जाना चाहिए थाए वह दस से कम की अवधि के लिए कारावास से दण्डनीय अपराध के लिए आरोपित या पकड़े जाने के दायित्व के अधीन हो, तो वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास सेए जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डनीय होगा।
197. दण्डादेश के अधीन या विधिपूर्वक सुपुर्द किए गए व्यक्ति को पकड़ने के लिए आबद्ध लोक सेवक द्वारा पकड़ने का साशय लोप– जो कोई ऐसा लोक सेवक होते हुए, जो किसी अपराध के लिए न्यायालय के दण्डादेश के अधीन या अभिरक्षा में रखे जाने के लिए विधिपूर्वक सुपुर्द किए गए किसी व्यक्ति को पकड़ने या परिरोध में रखने के लिए ऐसे लोक सेवक के नाते वैध रूप से आबद्ध है, ऐसे व्यक्ति को पकड़ने का साशय लोप करेगा, या ऐसे परिरोध में से साशय ऐसे व्यक्ति का निकल भागना सहन करेगा या ऐसे व्यक्ति को निकल भागने में या निकल भागने के प्रयत्न में साशय मदद करेगा, वह निम्नलिखित रूप से दण्डित किया जाएगा अर्थात्-
यदि परिरूद्ध व्यक्ति या जो व्यक्ति पकड़ा जाना चाहिए था, वह मृत्यु दण्डादेश के अधीन हो, तो वह जुर्माने सहित या रहित आजीवन कारावास से, या दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि चौदह वर्ष तक की हो सकेगी, अथवा
यदि परिरूद्ध व्यक्ति या जो व्यक्ति पकड़ा जाना चाहिए था, वह न्यायालय के दण्डादेश से, या ऐसे दण्डादेश से लघुकरण के आधार पर आजीवन कारावास या दस वर्ष तक की या उससे अधिक की अवधि के लिए कारावास के अध्यधीन हो, तो वह जुर्माने सहित या रहित दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, अथवा
यदि परिरूद्ध व्यक्ति या जो व्यक्ति पकड़ा जाना चाहिए था, वह न्यायालय के दण्डादेश से दस वर्ष से कम की अवधि के लिए कारावास के अध्यधीन हो या यदि वह व्यक्ति अभिरक्षा में रखे जाने के लिए विधिपूर्वक सुपुर्द किया गया हो, वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डनीय होगा।
198. लोक सेवक द्वारा उपेक्षा से परिरोध या अभिरक्षा में से निकल भागना सहन करना- जो कोई ऐसा लोक सेवक होते हुए, जो अपराध के लिए आरोपित या दोषसिद्धि या अभिरक्षा में रखे जाने के लिए विधिपूर्वक सुपुर्द किए गए किसी व्यक्ति को परिरोध में रखने के लिए ऐसे लोक सेवक के नाते वैध रूप से आबद्ध हो, ऐसे व्यक्ति का परिरोध में से निकल भागना उपेक्षा से सहन करेगा, वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने सेए या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।
199. किसी व्यक्ति द्वारा किसी विधि के अनुसार अपने पकड़े जाने में प्रतिरोध या बाधा- जो कोई किसी ऐसे अपराध के लिए, जिसका उस पर आरोप हो, या जिसके लिए वह दोषसिद्ध किया गया हो, विधि के अनुसार अपने पकड़े जाने में साशय प्रतिरोध करेगा, या अवैध बाधा डालेगा, या किसी अभिरक्षा से, जिसमें वह किसी ऐसे अपराध के लिएए विधिपूर्वक निरूद्ध हो, निकल भागेगा, या निकल भागने का प्रयत्न करेगा, वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।
स्पष्टीकरण- इस धारा में उपबन्धित दण्ड उस दण्ड के अतिरिक्त है जिसके लिए वह व्यक्ति, जिसे पकड़ा जाना हो, या अभिरक्षा में निरूद्ध रखा जाना हो, उस अपराध के लिए दण्डनीय था, या जिसका उस पर आरोप लगाया गया था या जिसके लिए दोषसिद्ध किया गया था।
200. किसी अन्य व्यक्ति के विधि के अनुसार पकड़े जाने में प्रतिरोध या बाधा– जो कोई किसी अपराध के लिए किसी दूसरे व्यक्ति के विधि के अनुसार पकड़े जाने में साशय प्रतिरोध करेगा या अवैध बाधा डालेगा, या किसी दूसरे व्यक्ति को किसी ऐसे अभिरक्षा से, जिसमें वह व्यक्ति किसी अपराध के लिए विधिपूर्वक निरूद्ध हो, साशय छुड़ाएगा या छुड़ाने का प्रयत्न करेगा, वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा;
अथवा यदि उस व्यक्ति पर जिसे पकड़ा जाना हो या जो छुड़ाया गया हो, या जिसके छुड़ाने का प्रयत्न किया गया हो, आजीवन कारावास से, या दस वर्ष तक की अवधि के कारावास से, दंडनीय अपराध का आरोप हो या वह उसके लिए पकड़े जाने के दायित्व के अधीन हो, तो वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा;
अथवा यदि उस व्यक्ति पर, जिसे पकड़ा जाना हो, या जो छुड़ाया गया हो, या जिसके छुड़ाने का प्रयत्न किया गया हो, मृत्युदण्ड से दण्डनीय अपराध का आरोप हो या वह उसके लिए पकड़ जाने के दायित्व के अधीन हो तो, वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा;
अथवा यदि वह व्यक्ति, जिसे पकड़ा जाना हो, या जो छुड़ाया गया हो, या जिसके छुड़ाने का प्रयत्न किया गया हो, किसी न्यायालय के दंडादेश के अधीन, या वह ऐसे दंडादेश के लघुकरण के आधार पर आजीवन कारावास या दस वर्ष या उससे अधिक अवधि के कारावास से दंडनीय हो, तो वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा;
अथवा यदि वह व्यक्ति, जिसे पकड़ा जाना हो, या जो छुड़ाया गया हो, या जिसके छुड़ाने का प्रयत्न किया गया हो, मृत्यु के दंडादेश के अधीन हो, तो वह आजीवन कारावास से, या दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, या इतनी अवधि के लिए जो दस वर्ष से अनधिक है, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा;
225क. उन दशाओं में जिनके लिए अन्यथा उपबन्ध नहीं है लोक सेवक द्वारा पकड़ने का लोप या निकल भागना सहन करना- जो कोई ऐसा लोक सेवक होते हुए, जो किसी व्यक्ति को पकड़ने या परिरोध में रखने के लिए लोक सेवक के नाते वैध रूप से आबद्ध हो उस व्यक्ति को किसी ऐसी दशा में, जिसके लिए धारा 221, धारा 222 या धारा 223 अथवा किसी अन्य तत्समय प्रवृत विधि में कोई उपबन्ध नहीं है, पकड़ने का लोप करेगा या परिरोध में से निकल भागना सहन करेगा-
- यदि वह ऐसा साशय करेगा तो वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से; तथा
- यदि वह ऐसा उपेक्षापूर्ण करेगा तो वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।
225ख. अन्यथा अनुबन्धित दशाओं में विधिपूर्वक पकड़ने में प्रतिरोध या बाधा या निकल भागना या छुड़ाना- जो कोई स्वयं अपने या किसी अन्य व्यक्ति के विधिपूर्वक पकड़े जाने में साशय कोई प्रतिरोध करेगा या अवैध बाधा डालेगा या किसी अभिरक्षा में से, जिसमें वह व्यक्ति विधिपूर्वक निरूद्ध हो निकल भागेगा या निकल भागने का प्रयत्न करेगा या किसी अन्य व्यक्ति को ऐसी प्रतिरक्षा में से, जिसमें वह विधिपूर्वक निरूद्ध हो, से छुड़ाएगा या छुड़ाने का प्रयत्न करेगा, वह किसी ऐसी दशा में, जिसके लिए धारा 224 या धारा 225 या किसी अन्य तत्समय प्रवृत्त विधि में उपबन्ध नहीं है, दोनों में से किसी भाँति के कारावास से जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।
[1886 के अधिनियम सं 10 की धारा 24 (1) द्वारा धारा 225क तथा 225ख को धारा 225क, जो 1870 के अधिनियम सं 27 की धारा 9 द्वारा अन्तःस्थापित की गई थी के स्थान पर प्रतिस्थापित किया गया।]
201. निर्वासन से विधि विरूद्ध वापसी- दण्ड प्रक्रिया संहिता (संशोधन) अधिनियम, 1955 (1955 का 26) की धारा 117की अनुसूची द्वारा निरसित।
202. दण्ड के परिहार की शर्त का अतिक्रमण- जो कोई दण्ड की सशर्त परिहार प्रतिगृहित कर लेने पर किसी शर्त का जिस पर ऐसा परिहार दिया गया था, जानते हुए अतिक्रमण करेगा, यदि वह उस दण्ड का, जिसके लिए वह मूलतः दण्डादिष्ट किया गया था, कोई भाग पहले ही न भोग चुका हो, तो वह उस दण्ड से और यदि वह उस दण्ड का कोई भाग भोग चुका हो, तो उस दण्ड के उतने भाग से, जितने को वह पहले ही भोग चुका हो, दण्डित किया जाएगा ।
203. न्यायिक कार्यवाही में बैठे हुए लोक सेवक का साशय अपमान या उसके कार्य में विघ्न- जो कोई किसी लोक सेवक का उस समय, जबकि ऐसा लोक सेवक न्यायिक कार्यवाही के किसी प्रक्रम में बैठा हुआ हो, साशय कोई अपमान करेगा या उसके कार्य में कोई विघ्न डालेगा, वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।
228क. कतिपय अपराध आदि से पीड़ित व्यक्ति की पहचान का प्रकटीकरण- (1) जो कोई किसी नाम या अन्य बात को, जिससे किसी ऐसे व्यक्ति की जिसे इस धारा में इसके पश्चात् पीड़ित व्यक्ति कहा गया है पहचान हो सकती है, जिसके विरूद्ध धारा 376, धारा 376क, धारा 376ख, धारा 376ग, धारा 376घ या धारा 376ङ के अधीन किसी अपराध का किया जाना अभिकथित है या किया गया पाया गया है, मुद्रित या प्रकाशित करेगा वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।
(2) उपधारा (1) की किसी भी बात का विस्तार किसी नाम अथवा अन्य बात के मुद्रण या प्रकाशन पर यदि उससे पीड़ित व्यक्ति की पहचान हो सकती है, तब नहीं होता है, जब ऐसा मुद्रण या प्रकाशन पर-
(क) पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी के या ऐसे अपराध का अन्वेषण करने वाले पुलिस अधिकारी के, जो ऐसे अन्वेषण के प्रयोजन के लिए सद्भावपूर्वक कार्य करता है, द्वारा या उसके लिखित आदेश के अधीन किया जाता है; या
(ख) पीड़ित व्यक्ति द्वारा या उसके लिखित प्राधिकार से किया जाता है; या
(ग) जहाँ पीड़ित व्यक्ति की मृत्यु हो चुकी है अथवा वह अवयस्क या विकृतचित्त है वहाँ, पीड़ित व्यक्ति के निकट सम्बन्धी द्वारा या उसके लिखित प्राधिकार से किया जाता है;
परन्तु निकट सम्बन्धी द्वारा कोई ऐसा प्राधिकार किसी मान्यता प्राप्त कल्याण संस्था या संगठन के अध्यक्ष या सचिव से, चाहे उसका जो भी नाम हो, से भिन्न किसी अन्य व्यक्ति को नहीं दिया जाएगा।
स्पष्टीकरण- इस उपधारा के प्रयोजनों के लिए, “मान्यता प्राप्त कल्याण संस्था या संगठन” से केन्द्रीय या राज्य सरकार द्वारा इस उपधारा के प्रयोजनों के लिए मान्यता प्राप्त कोई समाज कल्याण संस्था या संगठन अभिप्रेत है।
(3) जो कोई उपधारा (1) में निर्दिष्ट किसी अपराध की बाबत किसी न्यायालय के समक्ष किसी कार्यवाही के सम्बन्ध में कोई बात, उस न्यायालय की पूर्व अनुज्ञा के बिना मुद्रित या प्रकाशित करेगा, वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा, और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।
स्पष्टीकरण- किसी उच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय में निर्णय का मुद्रण या प्रकाशन इस धारा के अर्थ में अपराध की कोटि में नहीं आता है।
[1983 के अधिनियम सं 43 की धारा 2 द्वारा (25.02.1983 से) अन्तःस्थापित।]
204. जूरी सदस्य या असेसर का प्रतिरूपण- जो कोई किसी मामलें में प्रतिरूपण द्वारा या अन्यथा, अपने को यह जानते हुए जूरी सदस्य या असेसर के रूप में तालिकांकित, पेनलित या गृहितशपथ साशय कराएगा या होने देना जानते हुए सहन करेगा कि वह इस प्रकार तालिकांकित, पेनलित या गृहितशपथ विधि के प्रतिकूल हुआ है ऐसे जूरी में या ऐसे असेसर के रूप में स्वेच्छया सेवा करेगा, वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा।
229क. जमानत या बन्धपत्र पर छोड़े गए व्यक्ति द्वारा न्यायालय में हाजिर होने में असफलता- जो कोई, किसी अपराध से आरोपित किए जाने पर और जमानत पर या अपने बंधपत्र पर छोड़ दिए जाने पर, जमानत या बंधपत्र के निबंधनों के अनुसार न्यायालय में प्रर्याप्त कारणों के बिना जो साबित करने का भार उस पर होगा हाजिर होने में असफल रहेगा वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी या जुर्माने से या दोनों से, दंडित किया जाएगा।
[स्पष्टीकरण- इस धारा के अधीन दंड-
(क) उस दंड के अतिरिक्त है, जिसके लिए अपराधी उस अपराध के लिए, जिसके लिए उसे आरोपित किया गया है, दोषसिद्धि पर दायी होता; और
(ख) न्यायालय की बंधपत्र के समपहरण का आदेश करने की शक्ति पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाला नहीं है।
(दण्ड प्रक्रिया (संशोधन) अधिनियम, 2005 (2005 का 25) की धारा 44 द्वारा अन्तःस्थापित।]