लोक सेवकों के विधिपूर्ण प्राधिकार के अवमान के विषय में- अध्याय 10

Share

लोक सेवकों के आदेश की अवहेलना को आईपीसी में दंडनीय बनाया गया है बशर्ते वह लोक सेवक वैसे आदेश देने के लिए विधि द्वारा प्राधिकृत किया गया हो।

आईपीसी का चैप्टर 9 ऐसे अपराधों के विषय में प्रावधान है जो या तो लोक सेवक (civil servant) द्वारा किया जाय या उनसे संबंधित हो। लेकिन इसका चैप्टर 10 वैसी स्थिति के लिए उपबंध करता है जब किसी लोक सेवक को विधि द्वारा कोई कार्य करने का अधिकार दिया गया हो। वह इस अधिकार के तहत किसी व्यक्ति से कोई कार्य करने के लिए कहता है। लेकिन वह व्यक्ति उसके इस आदेश या अधिकार की अवमानना करते हुए उसे नहीं मानता है।

लोक सेवक अपना दायित्व ठीक से निभा सके इसलिए इस तरह के दांडिक प्रावधान विधि में किए जाते हैं। चैप्टर 10 की धाराएँ और उससे संबंधित विषय इस प्रकार हैं: 

इन धाराओं में मुख्य रूप से जिन अपराधों का उल्लेख है उन्हे निम्न सारणी से एक दृष्टि में समझा जा सकता है:

SectionsProvisions
172समनों की तामील या अन्य कार्यवाही से बचने के लिए फरार हो जाना
173समन की तामील का या अन्य कार्यवाही का या उसके प्रकाशन का निवारण करना
174लोक सेवक का आदेश न मानकर गैर-हाजिर रहना
174क1974 के अधिनियम 2 की धारा 82 के अधीन किसी उद्घोषणा के उत्तर में गैर-हाजिरी
175दस्तावेज या इलेक्ट्रॉनिक अभिलेख पेश करने के लिए वैध रूप से आबद्ध व्यक्ति का लोक सेवक को दस्तावेज या  इलेक्ट्रॉनिक अभिलेख पेश करने का लोप
176सूचना या इत्तिला देने के लिए वैध रूप से आबद्ध व्यक्ति द्वारा लोक सेवक को सूचना या इत्तिला देने का लोप
177मिथ्या इत्तिला देना
178शपथ या प्रतिज्ञान से इन्कार करना जबकि लोक सेवक द्वारा वह वैसा करने के लिए सम्यक् रूप से अपेक्षित किया जाए
179प्रश्न करने के लिए प्राधिकृत लोक सेवक का उत्तर देने से इन्कार करना
180कथन पर हस्ताक्षर करने से इन्कार करना
181शपथ दिलाने या प्रतिज्ञान कराने के लिए प्राधिकृत लोक सेवक के, या व्यक्ति के समक्ष शपथ या प्रतिज्ञान पर मिथ्या कथन
182इस आशय से मिथ्या इत्तिला देना कि लोक सेवक अपनी विधिपूर्ण शक्ति का उपयोग दूसरे व्यक्ति को क्षति करने के लिए करे
183लोक सेवक के विधिपूर्ण प्राधिकार द्वारा सम्पत्ति लिए जाने का प्रतिरोध
184लोक सेवक के प्राधिकार द्वारा विक्रय के लिए प्रतिस्थापित की गई सम्पत्ति के विक्रय में बाधा उपस्थित करना
185लोक सेवक के प्राधिकार द्वारा विक्रय के लिए प्रस्थापित की गई संपत्ति का अवैध क्रय या उसके लिए अवैध बोली लगाना
186लोक सेवक के लोक कृत्यों के निर्वहन में बाधा डालना
187लोक सेवक की सहायता करने का लोप, जबकि सहायता देने के लिए विधि द्वारा आबद्ध हो
172. समनों की तामील या अन्य कार्यवाही से बचने के लिए फरार हो जाना
173. समन की तामील का या अन्य कार्यवाही का या उसके प्रकाशन का निवारण करना
174. लोक सेवक का आदेश न मानकर गैर-हाजिर रहना
174क. 1974 के अधिनियम 2 की धारा 82 के अधीन किसी उद्घोषणा के उत्तर में गैर-हाजिरी
175. दस्तावेज या इलेक्ट्रॉनिक अभिलेख पेश करने के लिए वैध रूप से आबद्ध व्यक्ति का लोक सेवक को दस्तावेज या  इलेक्ट्रॉनिक अभिलेख पेश करने का लोप
176. सूचना या इत्तिला देने के लिए वैध रूप से आबद्ध व्यक्ति द्वारा लोक सेवक को सूचना या इत्तिला देने का लोप
177. मिथ्या इत्तिला देना
178. शपथ या प्रतिज्ञान से इन्कार करना जबकि लोक सेवक द्वारा वह वैसा करने के लिए सम्यक् रूप से अपेक्षित किया जाए
179. प्रश्न करने के लिए प्राधिकृत लोक सेवक का उत्तर देने से इन्कार करना
180. कथन पर हस्ताक्षर करने से इन्कार करना
181. शपथ दिलाने या प्रतिज्ञान कराने के लिए प्राधिकृत लोक सेवक के, या व्यक्ति के समक्ष शपथ या प्रतिज्ञान पर मिथ्या कथन
182. इस आशय से मिथ्या इत्तिला देना कि लोक सेवक अपनी विधिपूर्ण शक्ति का उपयोग दूसरे व्यक्ति को क्षति करने के लिए करे
183. क सेवक के विधिपूर्ण प्राधिकार द्वारा संपत्ति लिए जाने का प्रतिरोध
184. लोक सेवक के प्राधिकार द्वारा विक्रय के लिए प्रतिस्थापित की गई संपत्ति के विक्रय में बाधा उपस्थित करना
185. लोक सेवक के प्राधिकार द्वारा विक्रय के लिए प्रस्थापित की गई संपत्ति का अवैध क्रय या उसके लिए अवैध बोली लगाना
186. लोक सेवक के लोक कृत्यों के निर्वहन में बाधा डालना
187. लोक सेवक की सहायता करने का लोप, जबकि सहायता देने के लिए विधि द्वारा आबद्ध हो
188. लोक सेवक द्वारा सम्यक् रूप से प्रख्यापित आदेश की अवज्ञा
189. लोक सेवक को क्षति करने की धमकी
190. लोक सेवक से संरक्षा के लिए आवेदन करने से विरत रहने के लिए किसी व्यक्ति को उत्प्रेरित करने के लिए क्षति की धमकी

172.   समनों की तामील या अन्य कार्यवाही से बचने के लिए फरार हो जाना- जो कोई किसी ऐसे लोक सेवक द्वारा निकाले गए सम्मन, सूचना या आदेश की तामील से बचने के लिए फरार हो जाएगा, जो ऐेसे लोक सेवक के नाते ऐसे समन, सूचना या आदेश को निकालने के लिए वैध रूप से सक्षम हो, वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि एक मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो पाँच सौ रूपये तक का हो सकेगा, या दोनों से,

  अथवा, यदि समन या सूचना या आदेश का किसी न्यायालय में स्वयं या अभिकर्ता द्वारा हाजिर होने के लिए, या दस्तावेज अथवा इलेक्ट्रॉनिक अभिलेख पेश करने के लिए हो तो वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रूपये तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

[इस धारा के तहत अपराध गठित होने के लिए अनिवार्य तत्व हैं:

  • अभियुक्त सम्मन, सूचना या किसी आदेश की तामिल से बचने के लिए फरार हो गया हो, और
  • ऐसा सम्मन, सूचना या आदेश किसी ऐसे लोक सेवक द्वारा जारी किया गया हो जो ऐसा करने के लिए विधितः सक्षम हो।]

173.   समन की तामील का या अन्य कार्यवाही का या उसके प्रकाशन का निवारण करना- जो कोई किसी लोक सेवक द्वारा जो लोक सेवक उस नाते कोई समन, सूचना या आदेश निकालने के लिए वैध रूप से सक्षम हो, निकाले गए समन, सूचना या आदेश की तामील अपने पर या किसी अन्य व्यक्ति पर होना किसी प्रकार साशय निवारित करेगा; 

अथवा किसी ऐसे समन, सूचना या आदेश का किसी ऐसे स्थान में विधिपूर्वक लगाया जाना साशय निवारित करेगा;

अथवा किसी ऐसे समन, सूचना या आदेश को किसी ऐसे स्थान से, जहाँ कि विधिपूर्वक लगाया हुआ है, साशय हटाएगा;

अथवा किसी लोक सेवक के प्राधिकाराधीन की जाने वाली किसी उद्घोषणा का विधिपूर्वक किया जाना साशय निवारित करेगा, जो ऐसे लोक सेवक के नाते ऐसी उद्घोषणा का किया जाना निर्दिष्ट करने के लिए वैध रूप से सक्षम हो;

वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि एक मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो पाँच सौ रूपये तक का हो सकेगा, या दोनों से;

अथवा, यदि समन, सूचना, आदेश या उद्घोषणा किसी न्यायालय में स्वयं या अभिकर्ता द्वारा हाजिर होने के लिए या दस्तावेज या इलेक्ट्रॉनिक अभिलेख पेश करने के लिए हो, तो सादा कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रूपये तक का हो सकेगाए या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

[इस धारा के तहत अपराध गठित होने के लिए अनिवार्य तत्व हैं:

(1) कोई प्रक्रिया (सम्मन, नोटिस या आदेश इत्यादि) जारी हुआ हो;

(2) ऐसी प्रक्रिया किसी ऐसे लोक सेवक द्वारा जारी हो जो ऐसा करने के लिए विधितः सक्षम हो;

(3) ऐसी प्रक्रिया अभियुक्त पर तामिल होना हो;

(4) अभियुक्त को यह ज्ञात हो;

(5) अभियुक्त इस प्रक्रिया को तामिल करने से साशय:

क. निवारित करेगा,

ख. हटाएगा,

(6) ऐसा निवारण या हटाया जाना वह अपने पर या किसी अन्य व्यक्ति पर करेगा।

Read Also  बेटियों की सुरक्षा: कुछ प्रासांगिक बिन्दु

     इस धारा द्वारा सम्मन, सूचना अथवा आदेश के साशय निवारण को दण्डित किया गया है। सम्मन पर हस्ताक्षर करने से इंकार करना, या सम्मन लेने से इंकार करना या सम्मन लेने के बाद उसे फेंक देना इत्यादि इस धारा के अन्तर्गत अपराध गठित नहीं करता है।)

174.   लोक सेवक का आदेश न मानकर गैर-हाजिर रहना- जो कोई किसी लोक सेवक द्वारा निकाले गए उस समन, सूचना, आदेश या उद्घोषणा के पालन में, जिसे ऐसे लोक सेवक के नाते निकालने के लिए वह वैध रूप से सक्षम हो, किसी निश्चित स्थान और समय पर स्वयं या अभिकर्ता द्वारा हाजिर होने के लिए वैध रूप से आबद्ध होते हुए;

       उस स्थान या समय पर हाजिर होने का साशय लोप करेगा, या उस स्थान से, जहाँ हाजिर होने के लिए वह आबद्ध है, उस समय से पूर्व चला जाएगा, जिस समय चला जाना उसके लिए विधिपूर्ण होता;

       वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि एक मास तक की हो सकेगी या जुर्माने से, जो पाँच सौ रूपये तक का हो सकेगा, या दोनों से;

       अथवा यदि समन, सूचना, आदेश या उद्घोषण किसी न्यायालय में स्वयं या किसी अभिकर्ता द्वारा हाजिर होने के लिए है, तो वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रूपये तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

दृष्टांत

(क) क कलकत्ता उच्च न्यायालय द्वारा निकाले गए समन के पालन में उस न्यायालय के समक्ष उपसंजात होने के लिए वैध रूप से आबद्ध होते हुए, उपसंजात होने में साशय लोप करता है, क ने इस धारा में परिभाषित अपराध किया है।

(ख) क जिला न्यायाधीश द्वारा निकाले गए समन के पालन में उस जिला न्यायाधीश के समक्ष साक्षी के रूप में उपसंजात होने के लिए वैध रूप से आबद्ध होते हुए, उपसंजात होने में साशय लोप करता है। क ने इस धारा में परिभाषित अपराध किया है। 

[इस धारा के तहत अपराध गठित होने के लिए अनिवार्य तत्व हैं:

  • किसी लोक सेवक द्वारा कोई प्रक्रिया (सम्मन, सूचना, आदेश या उद्घोषणा इत्यादि) जारी किया गया हो जिसे करने के लिए वह लोक सेवक विधितः सक्षम हो;
  • इस प्रक्रिया (सम्मन, सूचना, आदेश या उद्घोषणा इत्यादि) द्वारा किसी निश्चित स्थान और समय पर स्वयं या अभिकर्ता द्वारा हाजिर होने के लिए वह वैध रूप से आबद्ध; 
  • अभियुक्त उस स्थान और समय पर हाजिर नहीं हुआ या हाजिर हुआ लेकिन समय से पूर्व वहाँ से वापस चला गया हो;
  • ऐसा उसने साशय किया हो।

इस धारा के तहत अपराध गठित करने के लिए उपसंजात (appear) होने के लिए इन चार प्रकार से साशय लोप होना आवश्यक है-

  • भारत में निश्चित एक विशिष्ट स्थान पर;
  • एक निश्चित समय पर;
  • एक निश्चित लोक कार्यकारी के समक्ष;
  • सम्मन, सूचना या आदेश के पालन में।]

174क. 1974 के अधिनियम 2 की धारा 82 के अधीन किसी उद्घोषणा के उत्तर में गैर-हाजिरी- जो कोई दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 82 की उपधारा (1) के अधीन प्रकाशित उद्घोषणा की अपेक्षानुसार विनिर्दिष्ट स्थान तथा विनिर्दिष्ट समय पर उपस्थित होने में असफल रहेगा, तो वह तीन वर्ष तक के कारावास या जुर्माना या दोनों से दण्डनीय होगा और जहाँ इस धारा की उपधारा (4) के अधीन कोई ऐसी घोषणा की गई है जिसमें उस वांछित अपराधी घोषित किया गया है वहाँ वह सात वर्ष तक के कारावास से तथा जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

       [यह धारा 2005 के अधिनियम सं 25 की धारा 44 द्वारा 23.06.2006 से अंतःस्थापित किया गया।]

175.   दस्तावेज या इलेक्ट्रॉनिक अभिलेख पेश करने के लिए वैध रूप से आबद्ध व्यक्ति का लोक सेवक को दस्तावेज या इलेक्ट्रॉनिक अभिलेख पेश करने का लोप- जो कोई किसी लोक सेवक को, ऐसे लोक सेवक के नाते किसी दस्तावेज या इलेक्ट्रॉनिक अभिलेख को पेश करने या परिदत्त करने के लिए वैध रूप से आबद्ध होते हुए, उसको इस प्रकार पेश करने या परिदत्त करने का साशय लोप करेगा, वह सादा कारावास से जिसकी अवधि एक मास तक की हो सकेगी या जुर्माने से, जो पाँच सौ रूपये तक का हो सकेगा, या दोनों से;

       अथवा यदि वह दस्तावेज या इलेक्ट्रॉनिक अभिलेख किसी न्यायालय में पेश या परिदत्त की जानी हो, तो वह सादा कारावास से जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रूपये तक, हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

दृष्टांत

       क, जो एक जिला न्यायालय के समक्ष दस्तावेज या इलेक्ट्रॉनिक अभिलेख पेश करने के लिए वैध रूप से आबद्ध है, उसको पेश करने का साशय लोप करता है तो क ने इस धारा में परिभाषित अपराध किया है।

[इस धारा के तहत अपराध गठित होने के लिए अनिवार्य तत्व हैं:

  • अभियुक्त दस्तावेज प्रस्तुत करने (या सुपुर्द करने) के लिए विधितः आबद्ध हो;
  • ऐसा प्रस्तुत करना या सुपुर्द करना किसी लोक सेवक के समक्ष होना हो;
  • अभियुक्त ने वह दस्तावेज प्रस्तुत या सुपुर्द नहीं किया हो; और
  • ऐसा उसने साशय किया हो।]

176.   सूचना या इत्तिला देने के लिए वैध रूप से आबद्ध व्यक्ति द्वारा लोक सेवक को सूचना या इत्तिला देने का लोप– जो कोई किसी लोक सेवक को, ऐसे लोक सेवक के नाते किसी विषय पर सूचना देने या इत्तिला देने के लिए वैध रूप से आबद्ध होते हुए, विधि द्वारा अपेक्षित प्रकार से और समय पर ऐसी सूचना या इत्तिला देने का साशय लोप करेगा, वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि एक मास तक की हो सकेगी, या जुर्मााने से, जो एक हजार तक का हो सकेगा, या दोनों से;

       अथवा, यदि दी जाने के लिए अपेक्षित सूचना या इत्तिला किसी अपराध के किए जाने के विषय में हो, या किसी अपराध के किए जाने का निवारण किए जाने के प्रयोजन से, या किसी अपराधी को पकड़ने के लिए अपेक्षित हो, तो वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रूपये तक का हो सकेगा, या दोनों से;

       अथवा, यदि दी जाने के लिए अपेक्षित सूचना या इत्तिला दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1998 (1998 का 5) की धारा 565 की उपधारा (1) के अधीन दिए गए आदेश द्वारा अपेक्षित है, तो वह जुर्माने से, जो एक हजार रूपये तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

 [इस धारा के तहत अपराध गठित होने के लिए अनिवार्य तत्व हैं:

  • अभियुक्त लोक सेवक को वह सूचना देने के लिए विधिक रूप से आबद्ध हो;
  • अभियुक्त के पास वह सूचना या इत्तिला हो;
  • उसने सूचना देने से साशय लोप किया हो।]

177.   मिथ्या इत्तिला देना- जो कोई किसी लोक सेवक को ऐसे लोक सेवक के नाते किसी विषय पर इत्तिला देने के लिए वैध रूप से आबद्ध होते हुए उस विषय पर सच्ची इत्तिला के रूप में ऐसी इत्तिला देगा जिसका मिथ्या होना वह जानता है या जिसके मिथ्या होने का विश्वास करने का कारण उसके पास है, वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रूपये तक का हो सकेगा, या दोनों से;

       अथवा, यदि वह इत्तिला, जिसे देने के लिए वह वैध रूप से आबद्ध हो, किसी अपराध के किए जाने के विषय में हो, या किसी अपराध के किए जाने का निवारण करने के प्रयोजन से, या किसी अपराधी को पकड़ने के लिए अपेक्षित हो तो वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

दृष्टांत

(क) क, एक भू-धारक, यह जानते हुए कि उसकी भू-सम्पदा की सीमाओं के अन्दर एक हत्या की गई है, उस जिले के मजिस्ट्रेट को जानबूझकर यह मिथ्या इत्तिला देता है कि मृत्यु साँप के काटने के परिणामस्वरूप दुर्घटना से हुई है। क इस धारा में परिभाषित अपराध का दोषी है।

Read Also  अपराध किसे कहते हैं?-भाग 1.2

(ख) क, जो ग्राम का चौकीदार है, यह जानते हुए कि अनजाने लोगों का एक बड़ा गिरोह य के गृह में जो पड़ोस के गाँव का निवासी एक धनी व्यापारी है, डकैती करने के लिए उसके गाँव से होकर गया है और बंगाल संहिता, 1821 के विनियम 3 की धारा 7 के खण्ड 5 के अधीन निकटतम थाने के ऑफिसर को उपरोक्त घटना की इत्तिला शीघ्र और ठीक समय पर देने के लिए आबद्ध होते हुए, पुलिस ऑफिसर को जानबूझ कर यह मिथ्या इत्तिला देता है कि संदिग्घ लोगों का एक गिरोह किसी भिन्न दिशा में स्थित एक दूरस्थ स्थान पर डकैती करने के लिए गाँव से होकर गया है। यहाँ क इस धारा के दूसरे भाग में परिभाषित अपराध का दोषी है।

स्पष्टीकरण- धारा 176 में और इस धारा में “अपराध” शब्द के अन्तर्गत भारत से बाहर किसी स्थान पर किया गया कोई ऐसा कार्य आता है, जो यदि भारत में किया जाता, तो निम्नलिखित धारा अर्थात् 302, 304, 382, 392, 393, 394, 395, 396, 397, 398, 399, 402, 435, 436, 449, 450, 457, 458, 459 और 460 में से किसी धारा के अधीन दण्डनीय होता; और “अपराधी” शब्द के अन्तर्गत कोई भी ऐसा व्यक्ति आता है, जो कोई ऐसा कार्य करने का दोषी अभिकथित हो।

[इस धारा के तहत अपराध गठित होने के लिए अनिवार्य तत्व हैं:

  • अभियुक्त वह सूचना देने के लिए विधिक रूप से आबद्ध हो;
  • ऐसी सूचना किसी लोक सेवक का देने के लिए वह आबद्ध हो;
  • अभियुक्त ने ऐसी गलत सूचना सही सूचना की तरह दी हो जबकि वह जानता हो या विश्वास रखता हो कि यह सूचना गलत है; और
  • ऐसी सूचना किसी अपराध को रोकने के लिए या अपराधी को पकड़ने के लिए आवश्यक हो।]

178.   शपथ या प्रतिज्ञान से इन्कार करना जबकि लोक सेवक द्वारा वह वैसा करने के लिए सम्यक् रूप से अपेक्षित किया जाए- जो कोई सत्य कथन करने के लिए शपथ या प्रतिज्ञान द्वारा अपने आप को आबद्ध करने से इन्कार करेगा, जबकि उससे अपने को इस प्रकार आबद्ध करने की अपेक्षा ऐसे लोक सेवक द्वारा की जाए जो यह अपेक्षा करने के लिए वैध रूप से सक्षम हो कि वह व्यक्ति इस प्रकार अपने को आबद्ध करे, वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रूपये तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

[इस धारा के तहत अपराध गठित होने के लिए अनिवार्य तत्व हैं:

  • अभियुक्त के लिए यह आवश्यक हो कि वह अपने को शपथ या प्रतिज्ञान द्वारा आबद्ध करे;
  • ऐसी आवश्यकता किसी ऐसे लोक सेवक के समक्ष हो जो ऐसा करने के लिए विधितरू सक्षम हो;
  • लेकिन अभियुक्त ऐसे शपथ या प्रतिज्ञान से अपने को आबद्ध करने से इंकार करेगा।]

179.   प्रश्न करने के लिए प्राधिकृत लोक सेवक का उत्तर देने से इन्कार करना- जो कोई किसी लोक सेवक से किसी विषय पर सत्य कथन करने के लिए वैध रूप से आबद्ध होते हुएए ऐसे लोक सेवक की वैध शक्तियों के प्रयोग में उस लोक सेवक द्वारा उस विषय के बारे में उससे पूछे गए किसी प्रश्न का उत्तर देने से इंकार करेगा, वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रूपये तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

[इस धारा के तहत अपराध गठित होने के लिए अनिवार्य तत्व हैं:

  • अभियुक्त सत्य बोलने के लिए विधितः बाध्य हो;
  • ऐसा कथन उसे लोक सेवक के समक्ष करना हो;
  • वह लोक सेवक ऐसा करने की वैध शक्ति रखता हो;
  • अभियुक्त ने उत्तर देने से इंकार कर दिया हो।

इस धारा में प्रश्न करने के लिए प्राधिकृत लोक सेवक द्वारा पूछे गए प्रश्नों, जो लोक सेवक से संबंधित है या उसके क्षेत्राधिकार में आता है, का उत्तर देने से इंकार करना इस धारा के तहत दण्डनीय बनाया गया है लेकिन गलत उत्तर देने पर वह अभियुक्त इस धारा के तहत नहीं बल्कि धारा 193 के तहत दोषी होगा। दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 161 के अनुसार जाँच कर रहे पुलिस अधिकारी के प्रश्नों का उत्तर देने से इंकार करना इस धारा के तहत अपराध नहीं है।]

180.   कथन पर हस्ताक्षर करने से इन्कार करना- जो कोई अपने द्वारा किए गए किसी कथन पर हस्ताक्षर करने को ऐसे लोक सेवक द्वारा अपेक्षा किए जाने पर, जो उससे यह अपेक्षा करने के लिए वैध रूप से सक्षम हो कि वह उस कथन पर हस्ताक्षर करे, उस कथन पर हस्ताक्षर करने से इन्कार करेगा, वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि तीन मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रूपये तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

[इस धारा के तहत अपराध गठित होने के लिए अनिवार्य तत्व हैं:

  • अभियुक्त ने ऐसा कथन किसी लोक सेवक के समक्ष लिखित रूप से किया हो;
  • लोक सेवक ने अभियुक्त के कथन पर उसके हस्ताक्षर की अपेक्षा की हो;
  • वह लोक सेवक ऐसा करने के लिए विधिक रूप से प्राधिकृत हो; और
  • अभियुक्त ने ऐसा करने से इंकार कर दिया हो।]

181.   शपथ दिलाने या प्रतिज्ञान कराने के लिए प्राधिकृत लोक सेवक केए या व्यक्ति के समक्ष शपथ या प्रतिज्ञान पर मिथ्या कथन- जो कोई किसी लोक सेवक या किसी अन्य व्यक्ति से, जो ऐसे शपथ दिलाने या प्रतिज्ञान देने के लिए विधि द्वारा प्राधिकृत हो, किसी विषय पर सत्य कथन करने या शपथ या प्रतिज्ञान द्वारा वैध रूप से आबद्ध होते हुए ऐसे लोक सेवक या यथापूर्वोक्त अन्य व्यक्ति से उस विषय के सम्बन्ध में कोई ऐसा कथन करेगा, जो मिथ्या है, और जिसके मिथ्या होने का या तो उसे ज्ञान है, या विश्वास है या जिसके सत्य होने का उसे विश्वास नहीं है, वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

[इस धारा के तहत अपराध गठित होने के लिए अनिवार्य तत्व हैं: 

  • अभियुक्त ऐसा व्यक्ति हो जो शपथ या प्रतिज्ञान द्वारा सत्य कथन करने के लिए विधि द्वारा आबद्ध हो;
  • अभियुक्त मिथ्या कथन किया है अभियुक्त इस कथन का मिथ्या होना जानता था या ऐसा होने का विश्वास रखता हो; और
  • कथन कराने वाला या तो लोक सेवक है या कोई ऐसा अन्य व्यक्ति है जो शपथ या प्रतिज्ञान देने के लिए विधिक रूप से प्राधिकृत है।

यह धारा शपथ दिलाने या प्रतिज्ञान कराने के लिए प्राधिकृत लोक सेवक या व्यक्ति के समक्ष शपथ या प्रतिज्ञान पर मिथ्या कथन को दण्डनीय बनाता है। लेकिन यदि कोई व्यक्ति किसी ऐेसे लोक सेवक के समक्ष शपथ या प्रतिज्ञान पर मिथ्या कथन करता है, जो पूर्णतः अपने क्षेत्राधिकार से परे शक्ति का प्रयोग कर रहा हैए या ऐसे शपथ या प्रतिज्ञान पर कथन लेने के लिए वह विधिक रूप से सक्षम नहीं है तो अभियुक्त इस धारा के तहत अपराधी नहीं होगा।]                 

182.   इस आशय से मिथ्या इत्तिला देना कि लोक सेवक अपनी विधिपूर्ण शक्ति का उपयोग दूसरे व्यक्ति को क्षति करने के लिए करे- जो कोई किसी लोक सेवक को कोई ऐसी इत्तिला, जिसके मिथ्या होने का उसे ज्ञान या विश्वास हैए इस आशय से देगा कि वह उस लोक सेवक को प्रेरित करे या यह सम्भाव्य जानते हुए देगा कि वह उसको एतद्द्वारा प्रेरित करे कि वह लोक सेवक-

(क) कोई ऐसी बात करे या करने का लोप करे जिसे वह लोक सेवकए यदि उसे उस सम्बन्ध मेंए जिसके बारे में ऐसी इत्तिला दी गई है, तथ्यों की सही स्थिति का पता होता, तो न करता या करने का लोप न करता, अथवा

Read Also  अपराध के लिए सामूहिक दायित्व (केस लॉ)-part 2.3

(ख) ऐसे लोक सेवक विधिपूर्ण शक्ति का उपयोग करें जिस उपयोग से किसी व्यक्ति को क्षति या क्षोभ हो;

      वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रूपये तक का हो सकेगा, या दोनों से दंडित किया जाएगा।

दृष्टांत

(क) क एक मजिस्ट्रेट को यह इत्तिला देता है कि य एक पुलिस ऑफिसर है, जो ऐसे मजिस्ट्रेट का अधीनस्थ है, कर्तव्य पालन में उपेक्षा या अवचार का दोषी है यह जानते हुए देता है कि ऐसी इत्तिला मिथ्या है, और यह सम्भाव्य है कि उस इत्तिला से वह मजिस्ट्रेट य को पदच्युत कर देगा। क ने इस धारा में परिभाषित अपराध किया है।

(ख) क एक लोक सेवक को यह मिथ्या इत्तिला देता है कि य के पास गुप्त स्थान में विनिषिद्ध नमक है। वह इत्तिला यह जानते हुए देता है कि ऐसी इत्तिला मिथ्या है, और यह जानते हुए देता है कि यह सम्भाव्य है कि उस इत्तिला के परिणामस्वरूप य के परिसर की तलाशी ली जाएगी, जिससे य को क्षोभ होगा। क ने इस धारा में परिभाषित अपराध किया है।

(ग)  एक पुलिसजन को क यह मिथ्या इत्तिला देता है कि एक विशिष्ट ग्राम के पास उस पर हमला किया गया है उसे लूट लिया गया है। वह अपने पर हमलावर के रूप में किसी व्यक्ति का नाम नहीं लेता। किन्तु वह यह जानता है कि वह सम्भाव्य है कि इस इत्तिला के परिणामस्वरूप पुलिस उस ग्राम में जाँच करेगी और तलाशियाँ लेगी, जिससे ग्रामवासियों या उनमें से कुछ को क्षोभ होगा। क ने इस धारा में परिभाषित अपराध किया है।

[यह धारा किसी लोक सेवक को दिग्भ्रमित करने वाले झूठे सूचना के संबध में प्रावधान करता है। अगर कोई व्यक्ति किसी लोक सेवक को कोई झूठी सूचना देता है और वह लोक सेवक उस झूठे सूचना के कारण कार्य करता है या करने का लोप करता है जो वह अन्यथा नहीं करता। इस धारा के तहत अपराध तभी गठित होगा जबकि ऐसी सूचना देने वाला व्यक्ति ऐसी सूचना के झूठ होने का आशय या ज्ञान रखता है।]

183.   लोक सेवक के विधिपूर्ण प्राधिकार द्वारा संपत्ति लिए जाने का प्रतिरोध- जो कोई किसी लोक सेवक के विधिपूर्ण प्राधिकार द्वारा किसी संपत्ति के ले लिए जाने का प्रतिरोध यह जानते हुए या यह विश्वास करने का कारण रखते हुए करेगा कि वह लोक सेवक है, वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि एक मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रूपये तक हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।    

[इस धारा के तहत अपराध गठित होने के लिए अनिवार्य तत्व हैं:

  • अभियुक्त ने सम्पत्ति लिए जाने का प्रतिरोध किया हो;
  • यह सम्पत्ति किसी लोक सेवक के विधिपूर्ण प्राधिकार द्वारा लिया जा रहा हो;
  • अभियुक्त जानता हो या विश्वास करने का कारण रखता हो कि उसका प्रतिरोध लोक सेवक के विधिपूर्ण प्राधिकार के विरूद्ध है।]

 184.  लोक सेवक के प्राधिकार द्वारा विक्रय के लिए प्रतिस्थापित की गई सम्पत्ति के विक्रय में बाधा उपस्थित करना-जो कोई ऐसी किसी सम्पत्ति विक्रय में, जो लोक सेवक के नाते लोक सेवक के विधिपूर्ण प्राधिकार द्वारा विक्रय के लिए प्रस्थापित की गई हो, साशय बाधा डालेगा, वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि एक मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो पाँच सौ रूपये तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

185.   लोक सेवक के प्राधिकार द्वारा विक्रय के लिए प्रस्थापित की गई सम्पत्ति का अवैध क्रय या उसके लिए अवैध बोली लगाना- जो कोई सम्पत्ति के किसी ऐसे विक्रय में, जो लोक सेवक के नाते लोक सेवक के विधिपूर्ण प्राधिकार द्वारा हो रहा हो, किसी ऐसे व्यक्ति के निमित्त चाहे वह व्यक्ति स्वयं हो, या कोई अन्य हो, किसी सम्पत्ति का क्रय करेगा या किसी सम्पत्ति के लिए बोली लगाएगा जिसके बारे में वह जानता हो कि वह व्यक्ति उस विक्रय में उस सम्पत्ति को क्रय करने के बारे में  किसी विधिक असमर्थता के अधीन है या ऐसी सम्पत्ति के लिए के लिए यह आशय रख कर बोली लगाएगा कि ऐसी बोली लगाने में जिन बाध्यताओं के अधीन वह अपने आपको डालता है उन्हें उस पूरा नहीं करना है, वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि एक मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो दो सौ रूपये तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

   [इस धारा के तहत अपराध गठित होने के लिए अनिवार्य तत्व हैं: 

  • सम्पत्ति किसी लोक सेवक के विधिपूर्ण प्राधिकार के तहत विक्रय किया जा रहा हो;
  • अभियुक्त या तो ऐसी सम्पत्ति खरीदता है या उसके लिए बोली लगाता है जबकि;
  • अभियुक्त यह जानता है कि वह सम्पत्ति खरीदने या बोली लगाने के लिए विधिक रूप से अयोग्य है;
  • वह किसी अन्य व्यक्ति के लिए खरीदता है या बोली लगाता है जो इसके लिए विधिक रूप से अयोग्य है;
  • वह सम्पत्ति खरीदने के लिए बोली लगाता है किन्तु इसके तहत लिए गए बाध्यताओं का पालन करने का आशय नहीं रखता है।]  

186.   लोक सेवक के लोक कृत्यों के निर्वहन में बाधा डालना- जो कोई किसी लोक सेवक के लोक कृत्यों के निर्वहन में स्वेच्छया बाधा डालेगा, वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से जो पाँच सौ रूपये तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

187.   लोक सेवक की सहायता करने का लोपए जबकि सहायता देने के लिए विधि द्वारा आबद्ध हो- जो कोई किसी लोक सेवक को, उसके लोक कर्तव्य के निष्पादन में सहायता देने या पहुँचाने के लिए विधि द्वारा आबद्ध होते हुए, ऐसी सहायता देने के साशय लोप करेगा, वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि एक मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो दो सौ रूपये तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा;

और यदि ऐसी सहायता की माँग उससे ऐसे लोक सेवक द्वारा, जो ऐसी माँग करने के लिए वैध रूप से सक्षम हो, न्यायालय द्वारा वैध रूप से निकाली गई किसी आदेशिका के निष्पादन के, या अपराध के किए जाने का निवारण करने के, या बल्वे या दंगे को दबाने के, या ऐसे व्यक्ति को, जिस पर अपराध का आरोप है या जो अपराध का या विधिपूर्ण अभिरक्षा से निकल भागने का दोषी है, पकड़ने के प्रयोजन से की जाए, तो वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो पाँच सौ रूपये तक का हो सकेगा, या दोनों से दण्डित किया जाएगा।

[यह धारा किसी लोक सेवक को उसके लोक दायित्वो के निर्वहन में सहायता देने के लिए विधि द्वारा बाध्य व्यक्ति द्वारा ऐसी सहायता के साशय लोप को दण्डनीय बनाता है। इस धारा के अन्तर्गत उन मामलों के लिये भी दण्ड का प्रावधान है जब किसी लोक सेवक द्वारा किसी व्यक्ति से किसी विशिष्ट उद्देश्य के लिए सहायता माँगी जाती है और वह व्यक्ति सहायता करने में लोप करता है।]

188.   लोक सेवक द्वारा सम्यक् रूप से प्रख्यापित आदेश की अवज्ञा- जो कोई यह जानते हुए कि वह ऐसे लोक सेवक द्वारा प्रख्यापित किसी आदेश से, जो ऐसे आदेश को प्रख्यापित करने के लिए विधिपूर्वक सशक्त है, कोई कार्य करने के लिए विरत रहने के लिए या अपने कब्जे में की, या अपने प्रबन्धनाधीन, किसी सम्पत्ति के बारे में कोई विशेष व्यवस्था करने के लिए निर्दिष्ट किया गया है, ऐसे निर्देश की अवज्ञा करेगा;

यदि ऐसी अवज्ञा विधिपूर्वक नियोजित किन्हीं व्यक्तियों को बाधा, क्षोभ या क्षति, अथवा बाधा, क्षोभ या क्षति की जोखिम, कारित करे, या कारित करने की प्रवृति रखती हो, तो सादा कारावास से, जिसकी अवधि एक मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो दो सौ रूपये तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

और यदि ऐसी अवज्ञा मानव जीवन, स्वास्थ्य, या क्षेम को संकट कारित करे, या कारित करने की प्रवृति रखती हो, या बल्वा या दंगा कारित करती हो, या कारित करने की प्रवृति रखती हो, तो वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रूपये तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

स्पष्टीकरण- यह आवश्यक नहीं है कि अपराधी का आशय अपहानि उत्पन्न करने का हो या उसके ध्यान में यह हो कि उसकी अवज्ञा करने से अपहानि होना सम्भाव्य है। यह पर्याप्त है कि जिस आदेश की वह अवज्ञा करता है उस आदेश का उसे ज्ञान है और यह भी ज्ञान है कि उसके अवज्ञा करने से अपहानि उत्पन्न होती या होनी सम्भाव्य है।

दृष्टांत

एक आदेश, जिसमें यह निदेश है कि अमुक धार्मिक जुलूस अमुक सड़क से होकर न निकले, ऐसे लोक सेवक द्वारा प्रख्यापित किया जाता है, जो ऐसे आदेश प्रख्यापित करने के लिए विधिपूर्वक सशक्त है। क जानते हुए उस आदेश की अवज्ञा करता है, और तद्द्वारा बल्वे का संकट कारित करता है। क ने इस धारा में परिभाषित अपराध किया है।

[इस धारा में वर्णित अपराध के निम्नलिखित अवयव हैं:

  • किसी लोक सेवक द्वारा  कोई विधिपूर्ण आदेश प्रख्यापित किया गया हो तथा उसे प्रख्यापित करने के लिए वह विधिक रूप से सशक्त हो;
  • प्रख्यापित आदेश का ज्ञान जो सामान्य या विशिष्ट हो सकता है, ऐसे प्रख्यापित आदेश की अवज्ञा, तथा
  • ऐसी अवज्ञा के परिणामस्वरूप उत्पन्न परिणाम।

       इस धारा के तहत यह आवश्यक है कि अभियुक्त को उस आदेश का ज्ञान हो जिसकी अवज्ञा का आरोप उस पर लगाया गया है। किसी आदेश की मात्र अवज्ञा स्वतः अपराध गठित नहीं करती, अपितु यह सिद्ध होना चाहिए कि ऐसी अवज्ञा के परिणामस्वरूप क्षोभ या क्षति कारित हुई है।]

189.   लोक सेवक को क्षति करने की धमकी- जो कोई किसी लोक सेवक को या ऐसे किसी व्यक्ति को जिससे उस लोक सेवक के हितबद्ध होने का उसे विश्वास हो, इस प्रयोजन से क्षति की कोई धमकी देगा कि उस लोक सेवक को उत्प्रेरित किया जाए कि वह ऐसे लोक सेवक के कृत्यों के प्रयोग से सशक्त कोई कार्य करे, या करने से प्रविरत रहे, या करने में विलम्ब करे, वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

190.   लोक सेवक से संरक्षा के लिए आवेदन करने से विरत रहने के लिए किसी व्यक्ति को उत्प्रेरित करने के लिए क्षति की धमकी- जो कोई किसी व्यक्ति को इस प्रयोजन से क्षति की कोई धमकी देगा कि वह उस व्यक्ति को उत्प्रेरित करे कि वह किसी क्षति से संरक्षा के लिए कोई वैध आवेदन किसी ऐसे लोक सेवक से करने से विरत रहे, या प्रतिविरत रहे, जो ऐसे लोक सेवक के नाते ऐसी संरक्षा करने या कराने के लिए वैध रूप से सशक्त हो, वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।

धाराअपराधअपराध के अवयवदंड
172समनों की तामिल या अन्य कार्यवाही से बचने के लिये फरार हो जाना1. अभियुक्त सम्मनए सूचना या किसी आदेश की तामिल से बचने के लिए फरार हो गया होए और 2. ऐसा सम्मनए सूचना या आदेश किसी ऐसे लोक सेवक द्वारा जारी किया गया हो जो ऐसा करने के लिए विधितरू सक्षम हो। 3. ऐसा समन, सूचना या आदेश अभियुक्त के नाम से होना चाहिए । (इसलिए वारण्ट, जो कि पुलिस को आदेश होता है, से बचने के लिये फरार हो जाना इस धारा के तहत दण्डनीय नहीं है। फरार का आशय भागना नहीं बल्कि अपने को छिपाना है।)क माह तक के सादा कारावास, या 500 रू तक के जुर्माना, या दोनों यदि यह किसी न्यायालय में   हाजिर होने के लिये हो तो-छः माह तक का सादा कारावास, या 1000 रू तक का जुर्माना, या दोनों
173समन की तामील का या अन्य कार्यवाही का या उसके प्रकाशन का निवारण करना1. कोई प्रक्रिया (सम्मन, नोटिस या आदेश इत्यादि) जारी हुआ हो; 2. ऐसी प्रक्रिया किसी ऐसे लोक सेवक द्वारा जारी हो जो ऐसा करने के लिए विधितः सक्षम हो; 3. ऐसी प्रक्रिया अभियुक्त पर तामिल होना हो; 4. अभियुक्त को यह ज्ञात हो; 5. अभियुक्त इस प्रक्रिया को तामिल करने से साशय:     (क) निवारित करेगा;     (ख) हटाएगा; 6.  ऐसा निवारण या हटाया जाना वह अपने पर या किसी अन्य व्यक्ति पर करेगा। (इस धारा द्वारा सम्मनए सूचना अथवा आदेश के साशय निवारण को दण्डित किया गया है। सम्मन पर हस्ताक्षर करने से इंकार करनाए या सम्मन लेने से इंकार करना या सम्मन लेने के बाद उसे फेंक देना इत्यादि इस धारा के अन्तर्गत अपराध गठित नहीं करता है।)एक माह तक के सादा कारावास, या 500 रू तक का जुर्माना, या दोनों   लेकिन यदि यह समन, सूचना, आदेश या उद्घोषणा न्यायालय में उपस्थित होने के लिये हो तो दण्ड होगा- छः माह तक के सादा कारावास, या 1000 रू तक का जुर्माना, या दोनो
174लोक सेवक का आदेश न मानकर गैर हाजिर रहना1. किसी लोक सेवक द्वारा कोई प्रक्रिया (सम्मन, सूचना, आदेश या उद्घोषणा इत्यादि) जारी किया गया हो जिसे करने के लिए वह लोक सेवक विधितः सक्षम हो; 2. इस प्रक्रिया (सम्मन, सूचना, आदेश या उद्घोषणा इत्यादि) द्वारा किसी निश्चित स्थान और समय पर स्वयं या अभिकर्त्ता  द्वारा हाजिर होने के लिए वह वैध रूप से आबद्ध हो; 3. अभियुक्त उस स्थान और समय पर हाजिर नहीं हुआ या हाजिर हुआ लेकिन समय से पूर्व वहाँ से वापस चला गया हो; 4. ऐसा उसने साशय किया हो।   इस धारा के तहत अपराध गठित करने के लिए उपसंजात (appear)होने के लिए इन चार प्रकार से साशय लोप होना आवश्यक है- (क) भारत में निश्चित एक विशिष्ट स्थान पर, (ख) एक निश्चित समय पर, (ग) एक निश्चित लोक कार्यकारी के समक्ष, (घ) सम्मन, सूचना या आदेश के पालन मेंएक माह तक के सादा कारावास, या 500 रू तक का जुर्माना, या दोनो
174dसीआरपीसी की धारा 82 की धारा के अधीन किसी उद्घोषणा के उत्तर में गैर हाजिरी धारा 82 की उपधारा (1) के अधीन गैर हाजिरी- तीन वर्ष तक के कारावास, या जुर्माना, या दोनों   धारा 82 की उपधारा (4) के अधीन गैर हाजिरी- सात वर्ष तक का कारावास और जुर्माना
175दस्तावेज या इलेक्ट्रानिक अभिलेख पेश करने के लिये वैध रूप से आबद्ध व्यक्ति का लोक सेवक को दस्तावेज पेश करने का लोप1.अभियुक्त दस्तावेज प्रस्तुत करने; (या सुपुर्द करने) के लिए विधितः आबद्ध हो; 2. ऐसा प्रस्तुत करना या सुपुर्द करना किसी लोक सेवक के समक्ष होना हो; 3. अभियुक्त ने वह दस्तावेज प्रस्तुत या सुपुर्द नहीं किया हो; और 4. ऐसा उसने साशय किया हो।एक माह तक के सादा कारावास, या 500 रू तक का जुर्माना, या दोनों   अगर वह किसी न्यायालय में पेश या परिदत्त की जानी हो तो- एक छः माह तक के सादा कारावास, या 1000 रू तक का जुर्माना, या दोना
176सूचना या इत्तिला देने के लिये वैध रूप से आबद्ध व्यक्ति द्वारा लोक सेवक को सूचना या इत्तिला देने का लोप1. अभियुक्त लोक सेवक को वह सूचना देने के लिए विधिक रूप से आबद्ध हो; 2. अभियुक्त के पास वह सूचना या इत्तिला हो; 3. उसने सूचना देने से साशय लोप किया हो।   एक माह तक के सादा कारावास, या 500 रू तक का जुर्माना, या दोनों लेकिन यदि सूचना किसी अपराध के किये जाने विषय में हो – छः माह तक के सादा कारावास, या 1000 रू तक का जुर्माना, या दोनों
177मिथ्या इत्तिला देना1. अभियुक्त वह सूचना देने के लिए विधिक रूप से आबद्ध हो; 2. ऐसी सूचना किसी लोक सेवक का देने के लिए वह आबद्ध हो; 3. अभियुक्त ने ऐसी गलत सूचना सही सूचना की तरह दी हो जबकि वह जानता हो या विश्वास रखता हो कि यह सूचना गलत है; और 4. ऐसी सूचना किसी अपराध को रोकने के लिए या अपराधी को पकड़ने के लिए आवश्यक हो।छः माह तक के सादा कारावास, या 1000 रू तक का जुर्माना, या दोनों   लेकिन यदि ऐसी इत्तिला किसी अपराध किये जाने के विषय में हो तो- दो वर्ष तक के  कारावास, या जुर्माना, या दोनों
178शपथ या प्रतिज्ञान से इंकार करना जबकि लोक सेवक द्वारा वह वैसा करने के लिये सम्यक् रूप से अपेक्षित किया जाए1. अभियुक्त के लिए यह आवश्यक हो कि वह अपने को शपथ या प्रतिज्ञान द्वारा आबद्ध करे, 2. ऐसी आवश्यकता किसी ऐसे लोक सेवक के समक्ष हो जो ऐसा करने के लिए विधितः  सक्षम हो, 3. लेकिन अभियुक्त ऐसे शपथ या प्रतिज्ञान से अपने को आबद्ध करने से इंकार करेगा।छः माह तक के सादा कारावास, या 1000 रू तक का जुर्माना, या दोनों
179प्रश्न करने के लिए प्राधिकृत लोक सेवक का उत्तर देनें से इंकार करना1. अभियुक्त सत्य बोलने के लिए विधितः बाध्य हो; 2. ऐसा कथन उसे लोक सेवक के समक्ष करना हो; 3. वह लोक सेवक ऐसा करने की वैध शक्ति रखता हो; 4. अभियुक्त ने उत्तर देने से इंकार कर दिया हो। (इस धारा में प्रश्न करने के लिए प्राधिकृत लोक सेवक द्वारा पूछे गए प्रश्नों, जो लोक सेवक से संबंधित है या उसके क्षेत्राधिकार में आता है, का उत्तर देने से इंकार करना इस धारा के तहत दण्डनीय बनाया गया है लेकिन गलत उत्तर देने पर वह अभियुक्त इस धारा के तहत नहीं बल्कि धारा 193 के तहत दोषी होगा। दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 161 के अनुसार जाँच कर रहे पुलिस अधिकारी के प्रश्नों का उत्तर देने से इंकार करना इस धारा के तहत अपराध नहीं है।)  छः माह तक के सादा कारावास, या 1000 रू तक का जुर्माना, या दोनों
180कथन पर हस्ताक्षर करने से इंकार1. अभियुक्त ने ऐसा कथन किसी लोक सेवक के समक्ष लिखित रूप से किया हो; 2. लोक सेवक ने अभियुक्त के कथन पर उसके हस्ताक्षर की अपेक्षा की हो; 3. वह लोक सेवक ऐसा करने के लिए विधिक रूप से प्राधिकृत हो; और 4. अभियुक्त ने ऐसा करने से इंकार कर दिया हो।तीन माह तक के सादा कारावास, या 500 रू तक का जुर्माना, या दोनों
181शपथ दिलाने या प्रतिज्ञान कराने के लिए प्राधिकृत लोक सेवक, के या व्यक्ति के, समक्ष शपथ या प्रतिज्ञान पर मिथ्या कथन1. अभियुक्त ऐसा व्यक्ति हो जो शपथ या प्रतिज्ञान द्वारा सत्य कथन करने के लिए विधि द्वारा आबद्ध हो; 2. अभियुक्त ने मिथ्या कथन किया है। 3. अभियुक्त इस कथन का मिथ्या होना जानता था या ऐसा होने का विश्वास रखता हो। और 4. कथन कराने वाला या तो लोक सेवक है या कोई ऐसा अन्य व्यक्ति है जो शपथ या प्रतिज्ञान देने के लिए विधिक रूप से प्राधिकृत है। (यह धारा शपथ दिलाने या प्रतिज्ञान कराने के लिए प्राधिकृत लोक सेवक या व्यक्ति के समक्ष शपथ या प्रतिज्ञान पर मिथ्या कथन को दण्डनीय बनाता है। लेकिन यदि कोई व्यक्ति किसी ऐेसे लोक सेवक के समक्ष शपथ या प्रतिज्ञान पर मिथ्या कथन करता है, जो पूर्णतः अपने क्षेत्राधिकार से परे शक्ति का प्रयोग कर रहा है,  या ऐसे शपथ या प्रतिज्ञान पर कथन लेने के लिए वह विधिक रूप से सक्षम नहीं है तो अभियुक्त इस धारा के तहत अपराधी नहीं होगा।)                           तीन वर्ष तक का सादा या कठोर कारावास और जुर्माना
182इस आशय से मिथ्या इत्तिला देना कि लोक सेवक अपनी विधिपूर्ण शक्ति का उपयोग दूसरे व्यक्ति को क्षति करने के लिये करे1. जिसे सूचना दी गई हो वह लोक सेवक हो 2. सूचना का उद्देश्य लोक सेवक को अपनी विधिपूर्ण शक्ति का ऐसा उपयोग करने के लिये प्रेरित करना हो जो उसे नहीं करना चाहिये। 3. इस कार्य के द्वारा किसी व्यक्ति को क्षोभ या क्षति कारित कराना हो। (इस धारा के अन्तर्गत ऐसी सूचना देना दण्डनीय है तद्नुसार कार्य होना आवश्यक नहीं है।)छः माह तक के सादा या कठोर कारावास, या 1000 रू तक का जुर्माना, या दोनों
183लोक सेवक के विधिपूर्ण प्राधिकार द्वारा सम्पत्ति लिये जाने का प्रतिरोध1. अभियुक्त ने संपत्ति लिए जाने का प्रतिरोध किया हो; 2. यह संपत्ति किसी लोक सेवक के विधिपूर्ण प्राधिकार द्वारा लिया जा रहा हो; 3. अभियुक्त जानता हो या विश्वास करने का कारण रखता हो कि उसका प्रतिरोध लोक सेवक के विधिपूर्ण प्राधिकार के विरूद्ध है। छः माह तक के सादा या कठोर कारावास, या 1000 रू तक का जुर्माना, या दोनों
184लोक सेवक के प्राधिकार द्वारा विक्रय के लिये प्रतिस्थापित की गई सम्पत्ति के विक्रय में बाधा उपस्थित करना1. ऐसी सम्पत्ति का विक्रय लोक सेवक के विधिपूर्ण प्राधिकार से हो; 2. अभियुक्त इस विक्रय में साशय बाधा डालेगा; (बाधा किसी भी प्रकार से हो सकता है, शारीरिक प्रतिरोध होना आवश्यक नहीं है।) 3. यह बाधा साशय डाला गया हो।एक माह तक के सादा या कठोर कारावास, या 500 रू तक का जुर्माना, या दोनों
185लोक सेवक के प्राधिकार द्वारा विक्रय के लिए प्रस्थापित की गई सम्पत्ति का अवैध क्रय या उसके लिए अवैध बोली लगाना1. संपत्ति किसी लोक सेवक के विधिपूर्ण प्राधिकार के तहत विक्रय किया जा रहा हो, 2. अभियुक्त या तो ऐसी संपत्ति खरीदता है या उसके लिए बोली लगाता है जबकि: (क) अभियुक्त यह जानता है कि वह संपत्ति खरीदने या बोली लगाने के लिए विधिक रूप से अयोग्य है; (ख) वह किसी अन्य व्यक्ति के लिए खरीदता है या बोली लगाता है जो इसके लिए विधिक रूप से अयोग्य है; (ग) वह संपत्ति खरीदने के लिए बोली लगाता है किन्तु इसके तहत लिए गए बाध्यताओं का पालन करने का आशय नहीं रखता है।एक माह तक के सादा या कठोर कारावास, या 200 रू तक का जुर्माना, या दोनों
186लोक सेवक के लोक कृत्यों के निर्वहन में बाधा डालना1. लोक सेवक विधि द्वारा प्राधिकृत किसी लोक दायित्व का निर्वहन कर रहा हो; 2. अभियुक्त इस कार्य में बाधा या प्रतिरोध उपस्थित करे; 3. अभियुक्त ऐसा स्वेच्छया करे।तीन माह तक के सादा या कठोर कारावास, या 500 रू तक का जुर्माना, या दोनों
187लोक सेवक की सहायता करने का लोप, जबकि सहायता देने के लिए विधि द्वारा आबद्ध हो1. अभियुक्त (क) लोक सेवक को उसके लोक दायित्वों के निर्वहन में सहायता देने के लिए विधि द्वारा बाध्य हो, या (ख) उससे किसी लोक सेवक द्वारा किसी विशिष्ट उद्देश्य (न्यायालय के वैध आदेशिका के निष्पादन, अपराध किये जाने के निवारण, बल्वे या दंगे को दबाने, किसी अपराध के लिये आरोपित या विधिपूर्ण अभिरक्षा से भागे व्यक्ति को पकड़ने के उद्देश्य) से सहायता माँगता है। ऐसा लोक सेवक सहायता माँगने में विधिक रूप से सक्षम हो 2. अभियुक्त ऐसी सहायता देने में लोप करेगा 3. ऐसा वह साशय करेगा।अभियुक्त यदि विधि द्वारा सहायता के लिए आबद्ध है- एक माह तक के सादा कारावास, या 200 रू तक का जुर्माना, या दोनों   अभियुक्त से यदि सहायता माँगी गई है- छः माह तक के सादा कारावास, या 500 रू तक का जुर्माना, या दोनों
188लोक सेवक द्वारा सम्यक् रूप से प्रख्यापित आदेश की अवज्ञा1. किसी लोक सेवक द्वारा  कोई विधिपूर्ण आदेश प्रख्यापित किया गया हो 2. ऐसा प्रख्यापित करने के लिए वह विधिक रूप से सशक्त हो 3. ऐस प्रख्यापित आदेश द्वारा (1) कोई कार्य करने से विरत रहने, या (2) अपने कब्जे की सम्पत्ति का विशेष व्यवस्था करने के लिए कहा गया हो 4. अभियुक्त ऐसे प्रख्यापित आदेश की अवज्ञा करेगा 5. ऐसे आदेश की अभियुक्त को ज्ञान हो। 6. ऐसी अवज्ञा के परिणामस्वरूप: (क) विधिपूर्ण नियोजित व्यक्तियों को क्षोभ, क्षति या बाधा कारित हो, या (ख) मानव जीवन, स्वास्थ्य या क्षेम को संकट कारित हो या ऐसी प्रवृति रखती हो, या (ग) बल्वा या दंगा कारित करती हो या करने की प्रवृति रखती हो   (किसी आदेश की मात्र अवज्ञा स्वतः अपराध गठित नहीं करतीए अपितु यह सिद्ध होना चाहिए कि ऐसी अवज्ञा के परिणामस्वरूप क्षोभ या क्षति कारित हुई है। लेकिन यह आवश्यक नहीं है कि अपराधी का आशय अपहानि कारित करने का हो या उसके ध्यान में यह हो कि उसकी अवज्ञा करने से अपहानि होना संभाव्य है। आदेश का ज्ञान होना और इस बात की संभावना का ज्ञान होना कि अपहानि संभावित है, ही पर्याप्त है।)एक माह तक के सादा कारावास, या 200 रू तक का जुर्माना, या दोनों लेकिन यदि ऐसी अवज्ञा यदि मानव जीवन, स्वास्थ्य, या क्षेम को संकट कारित करे, या बल्वा या दंगा कारित करे तो- छः माह तक के सादा या कठोर कारावास, या 1000 रू तक का जुर्माना, या दोनों
189लोक सेवक को क्षति करने की धमकी1. अभियुक्त किसी क्षति की धमकी देगा। 2. ऐसी धमकी वह लोक सेवक या लोक सेवक से हितबद्ध किसी व्यक्ति को क्षति कारित करने के लिये देगा 3. ऐसा वह इस प्रयोजन से करेगा कि लोक सेवक अपने कृत्यों के प्रयोग से (1) संसक्त कोई कार्य करे, या (2) कोई कार्य न करे, या (3) करने में विलम्ब करे।दो वर्ष तक के सादा या कठोर कारावास, या जुर्माना, या दोनों
190लोक सेवक से संरक्षा के लिए आवेदन करने से विरत रहने के लिए किसी व्यक्ति को उत्प्रेरित करने के लिए क्षति की धमकी1. अभियुक्त किसी व्यक्ति को किसी क्षति की धमकी देगा। 2. ऐसी धमकी वह इस प्रयोजन से देगा कि वह किसी ऐसे लोक सेवक को किसी क्षति की संरक्षा के लिये आवेदन नहीं देगा जो कि ऐसी संरक्षा के लिये वैध रूप से आबद्ध हो।एक वर्ष तक के सादा या कठोर कारावास, या जुर्माना, या दोनों

Leave a Comment